UP Politics: लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए यूपी में सभी राजनीतिक पार्टियां पूरी तरह से सक्रिय हो गई हैं. बीजेपी से मुकाबले के लिए यूपी में भी विपक्षी गठबंधन को आकार देने की कवायद चल रही है, लेकिन सपा-कांग्रेस और रालोद का ये अलायंस बनने के पहले ही बिखरता नजर आ रहा है. सपा और कांग्रेस के बीच सीट साझेदारी की अंतिम घोषणा नहीं हुई है, वहीं रालोद और सपा के बीच गठबंधन भी एक सीट को लेकर टूट सकता है. सियासी जगत में चर्चा है कि जयंत चौधरी भी पाला बदलकर पीएम मोदी की अगुवाई में एनडीए में शामिल हो सकते हैं. 


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सपा मुखिया अखिलेश यादव और रालोद चीफ जयंत चौधरी के बीच पश्चिमी यूपी की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर पेंच फंसता हुआ नजर आ रहा है. अभी इस सीट पर अंतिम फैसला नहीं हुआ है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि सीटों को लेकर चल रहे विवाद को छोड़ इंडिया गठबंधन को छोड़कर एनडीए का हिस्सा हो सकते हैं. मुजफ्फरनगर सीट चौधरी परिवार की कोर सीट मानी जाती है. इसलिए जयंत चौधरी या तो खुद के लिए या अपने किसी करीबी को यहां से लड़ना चाहते हैं. सपा अपने नेता को लड़ाना चाहती है.


सात सीटों पर डील
पार्टी सूत्रों के अनुसार,दोनों के बीच सात सीटों पर डील हो गई थी. इन 7 सीटों में 5  बागपत, मुजफ्फरनगर, कैराना, मथुरा, हाथरस तो तय हैं लेकिन दो सीटों पर अभी भी नाम को लेकर संशय बना हुआ है. अभी यह नहीं हो पा रहा कि मेरठ, बिजनौर, अमरोहा, नगीना और फतेहपुर सीकरी में से कौन सी और 2 सीट आरएलडी को दी जाएगी. सपा ने कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर में प्रत्याशी अपना और निशान रालोद का रहने की शर्त रखी है. रालोद, कैराना और बिजनौर पर तो राजी है, लेकिन मुजफ्फरनगर पर पेंच फंस गया गया है. आरएलडी ने अपने हिस्से की सीटें बढ़ाने की बात रखी हैं.


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रालोद के पास है मुजफ्फरनगर नहीं छोड़ने का कारण
रालोद के पास मुजफ्फरनगर नहीं छोड़ने का वाजिब कारण भी हैं.  यहां से पिछला चुनाव चौधरी अजित सिंह मात्र साढ़े छह हजार वोटों से भाजपा के डॉ. संजीव बालियान से हारे थे.  इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 5 विधासनभा सीटों में से दो बुढ़ाना और खतौली पर जयंत की पार्टी  का कब्जा है.  रालोद ने खतौली सीट उपचुनाव में जीती थी. बात करें कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच तो वहां पर भी बात बनती हुई नहीं दिखाई दे रही है. कांग्रेस 11 सीटों से संतुष्ट नहीं है.


यूं तो यूपी में रालोद का सपा के साथ गठबंधन हो चुका है. रालोद के हिस्से में 7 सीटें आई हैं. ये सीटें हैं, बागपत, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ या अमरोहा, हाथरस और मथुरा हैं. सपा की ओर से कुछ शर्तें होने से गठबंधन में अभी से दरार नजर आने लगी है.


12 फरवरी को अजित सिंह की जन्मतिथि
12 फरवरी पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत अजित सिंह की जन्मतिथि है. इस मौके पर पर छपरौली के श्री विद्या मंदिर इंटर कालेज में उनकी 12 कुंतल वजनी आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया जाना था.  इस कार्यक्रम को रालोद के लोकसभा चुनाव प्रचार के श्रीगणेश के तौर पर भी देखा जा रहा था. अभी ये कार्यक्रम टल गया है.  इसके टलने से एक बार फिर रालोद के आइएनडीआइए या एनडीए के साथ जाने के फायदे और नुकसान का आंकलन शुरू हो गया है.


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पिता की राह पर जयंत
जयंत चौधरी के पिता अजित सिंह का सियासी सफर भी काफी प्रभावी रहा.  पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह को 1986 में राज्‍यसभा भेजा गया था. 1989 में वीपी सिंह सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया. फिर इसके बाद वह 1991 में फिर बागपत से ही लोकसभा पहुंचे थे. इस बार वो कांग्रेस की नरसिम्हाराव की सरकार में मंत्री बने. अपने राजनीतिक सफर में एक अध्‍याय और जोड़ते हुए 1997 में उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल की स्थापना की. 1998 में चुनाव में वह हार गए, लेकिन 1999 के चुनाव में फिर जीतकर लोकसभा पहुंचे.  2001 से 2003 तक अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में चौधरी अजित सिंह मंत्री रहे थे.


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