फर्रुखाबाद: उस नेता के पास न तो मजबूत संगठन था, न तो पानी की तरह बहाने के लिए पैसा लेकिन उस नेता ऐसी परिस्थितियों में भी जनसभा में चुनाव की व्यवस्था के लिए खुद ही जनता से चंदा जुटाने को कह दिया. सोचिए उस नेता का जनता पर कितना सकारात्मक प्रभाव रहा होगा और वह नेता कितनी सादगी से भरा होगा. हम बात कर रहे हैं समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया की जिन्होंने साल 1963 के उपचुनाव में बड़ी सादगी से फर्रुखाबाद की जनता के मन में अपना स्थान बना लिया. यही वजह है कि करीब 57 हजार से अधिक मतों से वो विजयी भी हुए थे. 


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सादगी का परिचय
कांग्रेस सांसद पं. मूलचंद्र दुबे का निधन हुआ जिसके बाद साल 1963 के उपचुनाव में फर्रुखाबाद से मैदान में उतारे गए डॉ. राममनोहर लोहिया. एक साल पहले ही 1962 में चीन से भारत को जो हार मिली थी उससे देश में कांग्रेस के खिलाफ काभी आक्रोश भरा था. तब फर्रुखाबाद में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने अपनी अच्छी पकड़ बना ली थी. कम सदस्यों वाली इस पार्टी में डॉ. लोहिया थे जिन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी डॉ. बीके केशकर खिलाफ मैदान में उतरने का फैसला किया. बताया जाता है कि डॉ. बीके केशकर के पक्ष में देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा जनसभा किया गया. इतना ही नहीं हेलीकाप्टर से अपील लिखे पंपलेट भी आकाश से बरसाए गए. लेकिन इसके एकदम विपरीत डॉ. लोहिया ने पूरे चुनाव में सादगी का परिचय दिया. 


कांग्रेस को हार का स्वाद
चुनाव के दौरान उन्होंने केवल और केवल दो जनसभाएं ही कीं जिसमें लोगों से उन्होंने अपने लिए वोट की मांग तो की ही, इसके साथ ही चुनाव खर्च के लिए जनता से उन्होंने खुद ही चंदा भी जुटाने को कह दिया. डॉ. लोहिया की सादगी पर जनता ने दिल लुटाकर वोट किया और उन्हें हाथों हाथ लेते हुए विजयी बनाया. इस चुनाव में इंदिरा गांधी की चमक दमक वाले चुनाव प्रचार पर लोहिया की सादगी इतनी भारी पड़ी कि कांग्रेस को हार का स्वाद चखना पड़ा. 


वोटों का आंकड़ा
डा. राममनोहर लोहिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ा था, 1,07,816 वोट पाए थे.
डा. बीके केशकर ने कांग्रेस से चनाव लड़ा था, 50,528 वोट पाए थे.
भारत सिंह राठौर ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ा था, 19,395 वोट पाए थे.
छेदी लाल ने रिपब्लिकन पार्टी से चुनाव लड़ा था, 5,422 वोट पाए थे.
अवैध : 4,340


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