अतीक, मुख्तार और धनंजय सिंह की लोकसभा सीटों का हाल, बाबा बुलडोजर के आगे माफिया पस्त
Loksabha Chunav Results 2024: यूपी में वोटों की गिनती के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. यूपी में कुछ सीटें ऐसी हैं जिन पर कभी माफियाओं का राज रहता था. आइए जानते हैं कैसा रहेगा इन सीटों का हाल
UP Lok Sabha Result 2024: यूपी में लोकसभा चुनाव के लिए मतगणना शुरू हो गई है. नतीजों से आज पता चलेगा कि फिर केंद्र में मोदी सरकार ही रहेगी या इंडिया गठबंधन कुछ कमाल करेगा. कुछ सीटें ऐसी हैं जिन पर बाहुबली का रुतबा देखने को मिलता है. ये जानने के लिए सब बैचेन हैं कि क्या रहने वाला है जनता का फैसला.
माफिया की सीटों पर क्या प्रदर्शन-चुनाव छोटा हो या बडा. गांव के चुनाव में प्रत्याशी से लेकर सांसद, विधायक तक के चुनाव में उन्हीं की हनक चलती थी. इन बाहुबलियों की मर्जी के बिना गांवों में प्रतिनिधि का पर्चा तक लोग भरने से घबराते थे, लेकिन समय बदला तो इनमें से तमाम बाहुबलियों की जमीन खिसक गई. कुछ दुनिया में ही नहीं रहे तो कुछ की हनक नहीं रही.
मुख्तार अंसारी
एक समय था जब जरायम और सियासत की दुनिया में माफिया मुख्तार अंसारी की तूंती बोलती थी. अंसारी ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के एक उम्मीदवार के रूप में अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता. मुख्तार अंसारी पांच बार विधायक रहा. 15 साल से ज्यादा वक्त जेल में काटा. 1996, 2002, 2007, 2012 और 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में मुख्तार अंसारी जीता. तीन विधानसभा चुनावों में मुख्तार अंसारी ने जेल में रहकर ही जीत हासिल की थी. उन्होंने अपने भाइयों के साथ अपनी पार्टी क़ौमी एकता दल का गठन किया. वह यूपी विधायी विधानसभा चुनाव 2012 में मऊ सीट से विधायक चुने गए. उसने आखिरी चुनाव वर्ष 2017 में लड़ा और वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में वह मैदान में नहीं उतरा. पिछले 4 दशक से मुख्तार का पूर्वांचल में बोलबाला था. मुख्तार के खिलाफ लगभग 65 मामले दर्ज थे. 28 मार्च 2024 को कार्डियक अरेस्ट की वजह से मुख़्तार अंसारी की मौत हो गई.
चुनावी मैदान में भाई अफजाल अंसारी
मुख्तार अंसारी की मौत के बाद पहली बार अफजाल अंसारी चुनाव मैदान में है. अफजाल ने पहली बार 1985 में भाकपा के टिकट पर मुहम्मदाबाद से विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बना. ये सिलसिला 1989, 1991, 1993 व 1996 तक चलता रहा. 2002 के विधानसभा चुनाव में वह बीजेपी के कृष्णानंद राय से चुनाव हार गए. 2004 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सांसद बने. 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार मिली. 2019 में अफजाल अंसारी ने सपा-बसपा गठबंधन में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर तत्कालीन रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा को हराया था.
हरिशंकर तिवारी
पूर्वांचल की राजनीति में हरिशंकर तिवारी एक ऐसा नाम है जो पहले माफिया था और फिर सफेदपोश बना. 1980 के दशक में गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी की हनक चलती थी. हरिशंकर तिवारी,बाबा के नाम से पॉपुलर थे. छात्र राजनीति से निकले हरिशंकर तिवारी की गिनती बाहुबलियों में होती थी. तिवारी कई बार चुनाव जीते और मुलायम सिंह यादव की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने. हरिशंकर तिवारी ने 1985 में राजनीति में एंट्री ली और जेल में रहते हुए चिल्लूपार से विधायक चुने गए. वह लगातार 22 साल तक यहां से चुनाव जीते. सरकार किसी की हो, वह मंत्री भी बन जाते थे. 16 मई 2023 को उनका निधन हो गया.
बेटे भीष्म तिवारी को टिकट
डुमरियागंज से अखिलेश ने यहां से बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्म शंकर तिवारी पर दांव खेला है.भीष्म शंकर तिवारी का जन्म गोरखपुर के टांडा गांव में 30 सितम्बर 1960 को हुआ. इन्होंने इंटरमीडिएट तक शिक्षा प्राप्त की और भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में राजनीति में जुड़ गए.2007 में भीष्म तिवारी सपा छोड़ बसपा के साथ गए.इसके बाद खलीलाबाद में हुए उपचुनाव में बसपा प्रत्यासी के रूप में चुनाव लड़ा और जीते. संतकबीरनगर सीट से इन्होंने 2009 में फिर से बसपा के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और बीजेपी के शरद त्रिपाठी को शिकस्त दी. 2014 में हुए चुनाव में तिवारी ने बसपा के सिंबल पर फिर से संतकबीरनगर से चुनाव लड़ा लेकिन इस बार शरद त्रिपाठी ने इन्हें चुनाव में हराकर जीत दर्ज की. 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में तिवारी ने सपा और बसपा गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा. मगर इस बार भाजपा के प्रवीण निषाद से तिवारी चुनाव हार गए. 2019 के चुनाव में प्रवीण निषाद को 4,64,998 मत मिले तो वही भीष्म शंकर तिवारी 4,29,507 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे.
धनंजय सिंह
धनंजय सिंह के नाम का सिक्का भी पूर्वांचल में खूब चलता था. धनंजय का आपराधिक रिकॉर्ड 3 दशक से अधिक पुराना है. रेलवे के ठेके और सरकारी टेंडर लेने के लिए गैंगवॉर की कहानी काफी फेमस है. बसपा ने उनकी पत्नी श्रीकला को जौनपुर से टिकट दिया, लेकिन कुछ दिन बाद ही पार्टी ने उनका टिकट काट दिया गया. ऐसी चर्चा थी कि धनंजय सिंह पत्नी श्रीकला के साथ अमित शाह से मुलाकात के बाद उनके बीजेपी में शामिल होने की चर्चा थी. जौनपुर की सियासत में धनंजय सिंह के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी जौनपुर की जिला पंचायत अध्यक्ष हैं.
धनंजय सिंह की 2002 में राजनीति में एंट्री
धनंजय सिंह खुद जौनपुर से सांसद रह चुके हैं और दो बार विधायक रहे हैं. धनंजय सिंह ने वर्ष 2002 में राजनीति में एंट्री ली और रारी से विधायक बन गए. धनंजय सिंह 2009 में जौनपुर सीट से बसपा के टिकट पर सांसद बन चुके हैं. इसके अलावा धनंजय सिंह जब भी चुनाव लड़े हैं, उनके आगे बीजेपी अपनी जमानत भी नहीं बचा सकी, चाहे विधानसभा चुनाव रहा हो या फिर लोकसभा का. 2014 के बाद भी धनंजय सिंह के आगे बीजेपी कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी. इसके पीछे वजह यह की है कि जौनपुर की सियासत में उनकी मजबूत पकड़. तीन दशक से धनंजय सिंह के खिलाफ 1991 से 2023 के बीच कुल 43 मामले दर्ज है. ये मामले लखनऊ और जौनपुर ही नहीं, दिल्ली तक में दर्ज है, हालांकि 22 मामलों में धनंजय सिंह को दोषमुक्त किया. हाल ही में धनंजय सिंह को एक इंजीनियर के अपहरण के मामले में दोषी ठहराया गया था और 7 साल की सजा सुनाई गई थी. जिसके बाद अब धनंजय सिंह भविष्य में कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे.
अतीक अहमद का नहीं है कोई राजनीतिक विरासत संभालने वाला
एक समय था जब पूर्वांचल की दर्जन भर सीटों पर अतीक अहमद का दबदबा माना जाता था.एक समय में पहले के इलाहाबाद और अब के प्रयागराज समेत पूर्वांचल के कई जिलों में अतीक अहमद की दहशत थी. जमीनें कब्जाने से लेकर कई तरह के गैरकानूनी कामों का दूसरा नाम बन था अतीक. 1980 से लेकर 2015 तक अतीक और अशरफ का खौफ पूर्वांचल में बरकरार था. यह कहा जाता था कि ये सीटें अतीक के प्रभाव वाली हैं और तो और वह खुद इलाहाबाद शहर पश्चिमी सीट से 5 बार विधायक और एक बार सांसद भी रहा. अतीक और अशरफ दोनों की हत्या पुलिस कस्टडी में हुई थी.अतीका का बेटा भी एनकाउंटर में मारा गया.अतीक की पत्नी फरार है. ऐसे में उसकी राजनीतिक विरासत संभालने वाला कोई नहीं बचा.
1989 में रखा कदम
माफिया अतीक अहमद ने 1989 के यूपी विधानसभा चुनाव के ज़रिए राजनीति में कदम रखा. वह इलाहाबाद की पश्चिमी सीट से लगातार 5 बार विधायक चुना गया. इसके अलावा साल 2004 में कभी पंडित नेहरू का चुनाव क्षेत्र रही प्रयागराज की फूलपुर सीट से सांसद निर्वाचित हुआ. अतीक ने अपने भाी अशरफ को भी साल 2006 में विधायक बनाया. 2018 के फूलपुर उपचुनाव में अतीक जेल में था तो उसके प्रचार की कमान बड़े बेटे उमर अहमद ने संभाली थी. हालांकि इस चुनाव में उसकी जमानत जब्त हो गई थी.