सपा को 8 सीटों पर चोट पहुंचा सकते हैं स्वामी प्रसाद, 40 साल के सफर में मायावती-मुलायम को भी नहीं छोड़ा
Swami Prasad Maurya Political Career: स्वामी प्रसाद मौर्य ने समजावादी पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इसे अखिलेश के लिए बड़ा झटका नामा जा रहा है. स्वामी प्रसाद मौर्य का अब तक का सियासी सफर कैसा रहा है और प्रदेश की राजनीति में उनकी क्या ताकत है.
Loksabha Election 2024: लोकसभा चुनाव से पहले नेताओं के पाला बदलने का सिलसिला शुरू हो गया है. सोमवार को स्वामी प्रसाद मौर्य ने समाजवादी पार्टी को बड़ा झटका देते हुए पार्टी और एमएलसी पद से इस्तीफा दे दिया है. आगे की राजनीतिक पारी का आगाज वह नई पार्टी बनाकर करेंगे. स्वामी प्रसाद के इस फैसले को अखिलेश यादव के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि मौर्य आगामी लोकसभा चुनाव में सपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं. आइए समझते हैं स्वामी प्रसाद मौर्य का अब तक का सियासी सफर कैसा रहा है और प्रदेश की राजनीति में उनकी क्या ताकत है.
स्वामी का सियासी सफर
यूपी के प्रतापगढ़ जिले से आने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश की राजनीति में करीब 4 दशक से सक्रिय हैं. वह पांच बार विधायक रहे. स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपना सियासी सफर लोकदल के साथ शुरू किया था. इसके बाद वह 1996 में बसपा में शामिल हो गए. 20 साल की लंबी पारी खेलने के बाद वह 2107 में मौर्य ने बीजेपी का दामन थाम लिया. भाजपा के टिकट पर 2017 में पडरौना से विधायक बने. 2022 में वह सपा में शामिल हुए. फाजिलनगर से सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उनको पार्टी ने विधान परिषद भेजा था.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब 2016 में 20 सालों के साथ के बाद बीएसपी छोड़ी तो उन्हें मुलायम ने खुला ऑफर दिया, लेकिन सत्ता की लहर भांपते हुए वो बीजेपी में शामिल हुए. बीजेपी सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया. स्वामी प्रसाद मौर्य ने घनिष्ठ रिश्तों के बावजूद 2009 में अपनी बेटी संघमित्रा मौर्य को उनके खिलाफ मैनपुरी लोकसभा चुनाव मैदान में उतार दिया. संघमित्रा मौर्य अभी बदायूं लोकसभा सीट से सांसद हैं.
गैर यादव ओबीसी वोटरों में पैंठ
यूपी के सियासी समीकरणों देखें तो प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं. इनमें से सबसे ज्यादा 52 फीसदी वोटर ओबीसी वर्ग और दलित वर्ग के हैं. वहीं सवर्ण मतदाता 23 प्रतिशत जबकि मुस्लिम 20 प्रतिशत के करीब हैं. ओबीसी वोटर में से यादव मतदाताओं को समाजवादी पार्टी का कोर वोट बैंक माना जाता है. जबकि गैर यादव ओबीसी के वोटरों में स्वामी प्रसाद मौर्य की अच्छी पकड़ मानी जाती है. इनमें कोइरी वोटरों में अच्छी पैंठ रखते हैं. कोइरी समाज शाक्य, मौर्य और कोली नाम से जाने जाते हैं.
किन सीटों पर है प्रभाव
पूर्वांचल की गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, मऊ, गाजीपुर, बलिया और जौनपुर से लेकर आगरा तक कोइरी (कुशवाहा) समाज की बड़ी आबादी रहती है. चुनाव के समय यह वोटर जीत हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य की भूमिका उन सीटों पर और अहम हो जाती है, जहां कुशवाहा समाज वाली सीटों पर कांटे की लड़ाई होती है.
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