UP BJP LOk Sabha Election Result Report: उत्तर प्रदेश से लोकसभा चुनाव में करारी हार को लेकर बीजेपी में जारी सियासी पंचनामा तेज हो गया है. सूत्रों के हवाले से खबर है कि यूपी में हार पर भाजपा की प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार हो गई है. हार के कारणों पर पहली मंडल लेवल की रिपोर्ट तैयार हो गई है. अभी दो और रिपोर्ट आने के बाद तीनों रिपोर्ट का मिलान किया जाएगा. एक रिपोर्ट जो 80 नेताओं की स्पेशल टीम टीम तैयार कर रही है. दूसरी रिपोर्ट जो हारे हुए प्रत्याशीयो की तरफ से यूपी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को सौंपी जा रही है. इन तीनों रिपोर्ट के आधार पर मुख्य रिपोर्ट शीर्ष नेतृत्व को भेजी जाएगी.


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मोदी-योगी के भरोसे बैठे रहे प्रत्याशी
पहली मंडल स्तर पर तैयार रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि मोदी और योगी के नाम पर खुद को जीता हुआ मानकर प्रत्याशी बहुत ज्यादा अतिउत्साही हो गए थे. दो बार से ज्यादा जीते हुए सांसदों से जनता में नाराज़गी थी. कुछ सांसदों का व्यवहार भी ठीक नहीं था. राज्य सरकार ने करीब 3 दर्जन सांसदों के टिकट काटने या बदलने के लिए कहा था लेकिन उसकी अनदेखी हुई. अगर टिकट बदले जाते तो परिणाम और बेहतर होते. 


सांसद-विधायकों में मतभेद पड़े भारी
कुछ जिलों मे विधायकों की अपने ही सांसद प्रत्याशियों से नहीं बनी. विधायकों ने सपोर्ट ठीक ढंग से नहीं किया और नतीजा हार हुई. विधायकों और सांसदों के बीच खुलेआम बयानबाजी देखी गई. मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान और संगीत सोम इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.


संविधान बदलने-आरक्षण खत्म करने का झूठ
सूत्रों ने कहा, विपक्ष के संविधान बदलने और आरक्षण ख़त्म करने की बात का बीजेपी सही ढंग से जवाब नहीं दें पाई. विपक्ष अपनी ओर से भ्रम फैलाने में कामयाब रहा.पार्टी पदाधिकारियों का सांसदों के साथ तालमेल अच्छा नहीं रहा. यही वजह थी कि मदतदाताओं की वोट वाली पर्ची इस बार बहुत कम घरों तक पहुंची.


पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी
कार्यकर्ताओं की अनदेखी भी बड़ा मुद्दा रही है. निराश और उदासीन कार्यकर्ताओं ने पार्टी के लिए तो वोट किया लेकिन दूसरों को घर से वोट करने के लिए नहीं निकाला. संघ और बीजेपी के कार्यकर्ताओं के बीच भी पहले जैसा सामंजस्य और संवाद नहीं दिखा. प्रचार भी जमीनी स्तर पर वोटर्स से जुड़ाव के बजाय मशीनी स्तर पर दिखा. गली-गली नुक्कड़ घूमने की बजाय नेता ऊपरी स्तर पर ही चुनाव प्रचार से खुद को जीता मान बैठे. 


दलित वोट का खिसकना
भाजपा की सबसे कमजोर कड़ी रही कि दलित वर्ग का उससे दूर छिटक गया. मायावती का दरकता वोटबैंक इस बार सपा के पीडीए के साथ जाता दिखाई दिया. सपा ने इस बार पूर्वांचल समेत जगहों पर दलित उम्मीदवारों को तवज्जो दी. मायावती की पार्टी बसपा से सपा में आए नेताओं या उनके बेटे-बेटियों पर भरोसा किया. इससे युवा वोटर तेजी से उधर खिंचता चला गया.


लाभार्थी वर्ग का खिसकना
पूरे प्रदेश में बीजेपी के लाभार्थी वर्ग को 8500 रुपए महीने की गारंटी (कांग्रेस की तरफ से) ने आकर्षित किया. यहां भी लाभार्थियों से सीधा संवाद न होना हार की वजह बना. कई जिलों मे सांसद प्रत्याशी की अलोकप्रियता इतनी हावी हो गई की बीजेपी कार्यकर्ता अपने घरों से नहीं निकला. हर सीट पर उसके अपने कुछ फैक्टर रहे जैसे पेपर लीक और अग्निवीर जैसी योजनाओं पर विपक्ष लोगों को भ्रमित करने में कामयाब रहा. बीजेपी ठीक ढंग से काउंटर नहीं कर पाई.


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