देहरादून: उत्तराखंड में हुए पिछले दो लोकसभा चुनाव में अगर नेशनल कांग्रेस की भागीदारी मत प्रतिशत से आंकी जाए तो इसमें लगातार तेजी से गिरा आई है. इस पर भी इस बार के लोकसभा चुनाव में यानी 2024 में कांग्रेस के प्रदेश से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक में न तो सतर्कता देखने को मिल रही है और न तो जीत की भूख दिखाई देती है. 


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हालांकि ध्यान देने वाली बात है कि 31 प्रतिशत से अधिक ही पार्टी का मत प्रतिशत रहा पर मत प्राप्ति में गिरावट ही देखी गई है. पहले प्रत्याशियों का चुनाव फिर ठंडा चुनाव प्रचार और इसे लेकर ढेर सारा कंन्फ्यूजन पार्टी में साफ दिखाई देता है. आंतरिक गुटबाजी की छाया भी पार्टी की चमक को कम कर रही है. 


2009 का आंकड़ा और 2014 और 2019 में वोट शेयर
उत्तराखंड में इस बार पांचवा लोकसभा चुनाव हैं और मुकाबले में कांग्रेस पिछले दो लोकसभा चुनाव में अपने मत प्रतिशत में कमी झेलती आ रही है. लेकिन यहां पर कांग्रेस की स्थिति हमेशा से ऐसी नहीं थी बल्कि साल 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने प्रदेश की सभी पांच सीट पर जीत दर्ज किया था. तब पार्टी को 43.13 फीसदी वोट मिले जो अब का सर्वाधिक है. 2014 की बात करें तो 34.40 फीसदी और 2019 में 31.73 फासदी वोट ही पार्टी ने पाएं, उस पर से पार्टी के लिए दिक्कत तब बढ़ जाती है जह इस गहरी होती परेशानी को दूर करने के लिए पार्टी की ओर से कोई रणनीति धरातल नहीं दिखती है. साल 2004 में पार्टी को 38.31 फासदी वोट मिले. 


ओझल स्टार प्रचारक
प्रदेश की पांचों लोकसभा सीट के लिए चुनावी युद्ध का दिन करीब आ रहा है लेकिन कांग्रेस पार्टी में एकजुटता की कमी दिख रही है. प्रदेश के लिए चुनाव अभियान व  समन्वय के साथ ही कई अहम समितियों का हाईकमान भी अब तक गठन नहीं कर पाया है. कौन कहां के लिए स्टार प्रचारक के रूप में मैदान में उतरेगा इस पर भी कुछ साफ नहीं है, लगता है पार्टी इसके लिए भी केवल प्रत्याशियों से उम्मीद लगाए बैठी है. इन सारी कमियों के साथ अगर पार्टी उत्तराखंड के चुनाव में उतरती है तो साफ-साफ पचा चलता है कि जनाधार के मोर्चे पर यहां के पांच सीटों को जीत पाना पार्टी के लिए कड़ी परीक्षा होगी. 


इस सब के बीच फिलहाल उत्तराखंड की सत्ता पर बैठी बीजेपी ने बढ़त ली है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की प्रदेश में रैलिया होती हैं. अन्य प्रचारकों के समय तय कर दिए गए हैं. वहीं पर कांग्रेस ने स्टार प्रचारकों की लिस्ट भी अब तक नहीं निकाली है. नेशनल लेवल पर देखें तो कांग्रेस के पास पहले ही बहुत कम लोकसभा की सीटे हैं लेकिन पार्टी का इस तरह का रवैया उसके आगे की राह को और चुनौतीपूर्ण कर देने वाला है.