लखनऊ में करोड़ों के प्लॉट कौड़ियों के भाव बेचने वाले LDA अफसरों को सजा का ऐलान, जानें क्या है 40 साल पुराना जानकीपुरम भूखंड आवंटन घोटाला
Lucknow News: जानकीपुरम प्लॉट आवंटन घोटाले में सीबीआई कोर्ट ने तत्कालीन LDA सचिव समेत चार पर जुर्माना और सजा सुनाई है. यह घोटाला 1987 से 1999 के बीच जानकीपुरम प्लाट आवंटन में हुआ था.
Lucknow News: लखनऊ में जानकीपुरम प्लॉट आवंटन घोटाले के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के तत्कालीन संयुक्त सचिव समेत चार लोगों को सज़ा सुनाई है. यह मामला 1987 से 1999 के बीच जानकीपुरम क्षेत्र में 123 प्लॉट आवंटन में हुए घोटाले से जुड़ा है.
LDA के तत्कालीन सचिव समेत 4 लोगों को सजा
सीबीआई कोर्ट ने एलडीए के तत्कालीन संयुक्त सचिव आर.एन. सिंह को तीन साल की सजा सुनाई है और उन पर 35,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है. इसी मामले में एलडीए के तत्कालीन क्लर्क राज नारायण द्विवेदी को चार साल की कैद की सजा सुनाई गई है और उन पर 60,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. इसके अलावा, महेंद्र सिंह सेंगर और दिवाकर सिंह को भी तीन-तीन साल की कैद की सजा सुनाई गई है। कोर्ट ने सेंगर और दिवाकर पर 15,000-15,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
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40 साल पहले हुआ प्लॉट आवंटन मे घोटाला
इस मामले की शुरुआत 28 फरवरी 2006 को हुई थी, जब सीबीआई ने हाईकोर्ट के आदेश पर इस मामले को दर्ज किया था. कोर्ट ने यह पाया कि 1987 से 1999 के बीच जानकीपुरम में प्लॉट आवंटन में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुई थीं, जिसके परिणामस्वरूप यह घोटाला सामने आया था. आरोप था कि वर्ष 1987 से 1999 के दौरान एलडीए की जानकीपुरम योजना के तहत 123 भूखंडों को आवंटन किया गया था. यह आवंटन संयुक्त सचिव और उप सचिव स्तर के विभिन्न अधिकारियों द्वारा एलडीए के तत्कालीन प्रधान लिपिकों और अन्य लिपिकों की मिलीभगत से उन लोगों को किया गया था, जिन्होंने पंजीकरण फॉर्म ही नहीं भरे थे और आवंटन एवं वितरण के लिए अपेक्षित रकम जमा नहीं की थी.
2010 में दाखिल हुआ आरोप पत्र
इस मामले में जांच के बाद साल 2010 में सात आरोपियों के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया गया था. न्यायालय पूरे केस, गवाह और साक्ष्यों पर विचार करने के बाद चार आरोपियों को दोषी ठहराया और उन्हों सजा सुनाई है. बता दें कि इस 40 साल की अवधि में दो आरोपियों की मृत्यु हो गई, जिसकी वजह से उनके विरुद्ध मुकदमा समाप्त कर दिया गया जबकि एक आरोपी को न्यायालय ने बरी कर दिया.
सीबीआई कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के खिलाफ कानून का शिकंजा कसता जा रहा है और दोषियों को उनके कृत्यों के लिए सज़ा दी जा रही है। यह फैसला भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत संदेश है और भविष्य में ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई की उम्मीद जगाता है.
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