विशाल सिंह/लखनऊ: आंखों का गलत इलाज करने पर राज्य उपभोक्ता आयोग ने दो डाक्टरों पर 7.5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. जुर्माने की ये रकम उन्हें साल 2015 से 12 फीसदी सालाना ब्याज के साथ अदा करना होगी. गाजियाबाद की रहने वाली कृतिका अरोरा (उम्र 23 वर्ष) की ऑंखों में सूजन आ गई थी. उन्होंने गाजियाबाद के अस्पताल में दिखाया. डॉक्टरों ने आंखों की जांच की और प्रेड-फोर्ट की दवा आंख में डालने के लिए दी. आराम नहीं मिलने पर अन्य दवा दी गई. दूसरे अस्पताल में दिखाने पर पीड़ित को अपने साथ हुई लापरवाही के बारे में पता चला.  कृतिका ने इस सम्बन्ध में जिला उपभोक्ता आयोग गाजियाबाद में एक परिवाद दाखिल किया जिसे खारिज कर दिया गया.


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आंखों के साथ की गई लापरवाही, दोनों Eyes में मोतियाबिंद
गाजियाबाद की रहने वाली पीड़िता  को आंख में परेशानी हुई थी, उसने स्थानीय आंखों के अस्पताल में दिखाया. पीड़िता ने  मानव हास्पिटल एण्ड लेजर आई सेंटर के डॉ हरीश गुप्ता और डॉ एसडी तायल को दिखाया. डॉक्टरों ने आंखों की जांच की और प्रेड-फोर्ट की दवा आंख में डालने के लिए दी. आराम नहीं मिलने पर उसे एक अन्य दवा पोटाडे आंख में डालने के लिए दी. आंख में आराम नहीं मिलने पर ये दवाऐं कई महीनों तक लगातार दी गईं. आराम नहीं मिलने पर कृतिका ने दूसरे आंख के हॉस्पिटल में दिखाया, तब पता चला कि उसकी दोनों आंखों में मोतियाबिन्द हो चुका है. एक में 60 फीसदी और दूसरी में 40 फीसदी.  उन्हें बताया गया कि यह आपरेशन से ठीक हो सकती हैं.  कृतिका ने इस संबंध में जिला उपभोक्ता आयोग गाजियाबाद में एक परिवाद दाखिल किया जिसे खारिज कर दिया गया.


राज्य उपभोक्ता आयोग लखनऊ में की अपील
गाजियाबाद की रहने वाली पीड़िता ने राज्य उपभोक्ता आयोग लखनऊ में अपील की.  इसकी सुनवाई राज्य आयोग के सदस्य राजेन्द्र सिंह और विकास सक्सेना ने की. प्रिसाइडिंग जज राजेन्द्र सिंह ने दोनों ऑंखों की दवाओं के बारे में विस्तृत विवेचना की. विवेचना में पाया गया कि ये दवाऐं स्टेरॉयड श्रेणी की हैं. आंखों के लिए बहुत दिन तक इनका इस्तेमाल करना हानिकारक हो सकता है. इसके चलते आंख में धुंधलापन, जलन, हड्डियों के घनत्व में कमी, आंखों से पानी निकलना आदि परेशानियां होने लगती हैं.  काफी टाइम तक इन दवाओं को यूज करना घातक होता है. सम्बन्धित डॉक्टर को अत्यन्त सावधानी के साथ इन दवाओं को दिया जाना चाहिए. 


बनती है डॉक्टर की जिम्मेदारी


डॉक्टर की जिम्मेदारी बनती है कि वह मरीज को इसके बारे में बताए, लेकिन कृतिका के मामले में ऐसा नहीं किया गया. राज्य उपभोक्ता आयोग ने अपनी जांच में पाया कि इस मामले में डॉक्टरों ने बहुत लापरवाही की. इस लापरवाही के चलते कृतिका की ऑंखों में 60 प्रतिशत और 40 प्रतिशत मोतियाबिन्द हो गया, जिसके इलाज के लिए उसे भारी खर्चा करना पड़ा. उपभोक्ता आयोग ने दोनों डाक्टरों को आदेश दिया कि वे कृतिका को 7.5 लाख रुपये और निर्णय के 30 दिन के अन्दर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज 4 जुलाई 2015 से अदा करें.


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