Iskcon Latest News in Hindi: दुनिया में आज 450 से ज्यादा इस्कॉन मंदिर है, जो पिछले 60 सालों में देश दुनिया में स्थापित किए गए हैं. इसमें भारत में ही 4 सौ से ज्यादा इस्कॉन मंदिर और श्रीकृष्ण से जुड़े संस्थान हैं. 20वीं और 21वीं सदी में दुनिया में कृष्ण भक्ति और श्री मद्भागवतगीता के संदेशों के प्रचार का सबसे बड़ा श्रेय इस्कॉन को जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि इस्कॉन के संस्थापक कौन थे. कैसे उन्होंने इतना धन और शिष्यों की ताकत जुटाई. इस्कॉन के पाकिस्तान में भी 12 मंदिर हैं, बांग्लादेश में भी 20 से ज्यादा संस्थान हैं. लेकिन चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद वहां भी इस्कॉन पर भी बैन लगाने की मांग उठ रही है. 


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इस्कॉन के संस्थापक का नाम था भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी महाराज. अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद यानी स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद का जन्म  1 सितंबर 1896 को हुआ था. उनका जन्म कोलकाता में बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था और उनका शुरुआती नाम अभयचरण डे था. धार्मिक आध्यात्मिक गुरु बनने से पहले भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद आयुर्वेदिक दवा तैयार करने का काम करते थे. आयुर्वेद दवा तैयार करने के लिए वो प्राय: झांसी का दौरा करते थे. 


स्वामी प्रभुपाद वहां 1922 से लगातार आयुर्वेदिक कॉलेज में जाते थे. झांसी में ही प्रसिद्ध आंतियां तालाब में वो अक्सर अपने दोस्तों के साथ ध्यानमग्न रहते थे. राधाबाई स्मारक पर कृष्ण भक्ति के मंत्रों का जाप करते थे. यहीं से उन्हें देश दुनिया में श्रीकृष्ण भक्ति का प्रचार करने और उनकी संस्थाएं स्थापित करने का ख्याल आया. झांसी में पहली कृष्ण भक्ति स्थापना का निर्णय हुआ. लेकिन जिस जमीन पर इसकी नींव रखी जानी थी, वो धोखे से उनके कुछ सहयोगियों ने छीन लिया. झांसी से मन खिन्न हुआ तो स्वामी प्रभुपाद मथुरा वृंदावन आ गए. वहां राधाकृष्ण की भक्ति में वो रम गए और काफी समय वहीं गुजारा. 


भक्तिसिद्धांत ठाकुर सरस्वती को बनाया गुरु
प्रभुपाद के गुरु भक्तिसिद्धांत ठाकुर सरस्वती से थे, जिससे उनकी भेंट 1922 में हुई. वो गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के प्रमुख गुरु और धर्म प्रचारक थे. उनका असली नाम विमल प्रसाद दत्त था.इंग्लिश में वेदों और गीता का उपदेश घर घर पहुंचाने का बीड़ा उन्होंने उठाया. गीता और अन्य धर्मग्रंथों का अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाओं में संपादन का कार्य उन्होंने स्वयं किया. वृंदावन में रहकर उन्होंने श्रीमदभागवतपुराण के कई हिस्सों का अंग्रेजी में अनुवाद कार्य किया. 


1957 में शुरू किया भक्तों का संघ
1947 में गौड़ीय समाज ने उन्हें उनके कार्यों के लिए भक्तिवेदांत की उपाधि दी. स्वामी प्रभुपाद ने कृष्ण भक्ति संस्था यानी अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना की. अखबारों में विज्ञापन देकर शिक्षित युवाओं से आह्वान किया गया कि विश्व भर में गीता के संदेश को फैलाने के लिए संस्था से जुड़ें. प्रभुपाद ने 1957 में इस संस्था की नींव रखी.


अमेरिका में इस्कॉन की स्थापना
बिना किसी संसाधन के प्रभुपाद 1965 में अमेरिका दौरे पर पहुंचे. वो जगह-जगह श्री मदभागवत गीता से जुड़े व्याख्यान देते, जिससे लोग प्रभावित होते चले गए. उन्होंने 13 जुलाई को 1966 में  न्यूयॉर्क के लोअर ईस्ट साइड में इस्कॉन की नींव रखी. दो हजार एकड़ में शिष्यों के साथ अमेरिका के वर्जीनिया प्रांत में नया वृंदावन बनाया. भगवत गीता में लिखे श्रीकृष्ण के संदेशों का अमेरिका में भी बड़ी आबादी पर असर हुआ. आज लाखों करोड़ों लोग इस संस्था से जुड़े हैं. भारत ही नहीं, ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका और यूरोप में इस्कॉन आज धर्म आध्यात्म का सबसे बड़ा केंद्र है. इस्कॉन का हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे...' का नारा पूरे विश्व में गुंजायमान हो रहा है.  


इस्कॉन का पूरा नाम
इस्कॉन का पूरा नाम इस्कॉन यानी इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कांशियसनेस है, जिसे हरे कृष्ण मूवमेंट (International Society for Krishna Consciousness, ISKCON) के नाम भी जाना जाता है. विश्वभर में इस्कॉन के आज 450 से ज्यादा मंदिर, 50 से अधिक सामुदायिक केंद्र और 100 से ज्यादा भोजनालय चल रहे हैं. 


स्वामी प्रभुपाद का लेखन कार्य
उन्होंने भगवद गीता के अलावा चैतन्य चरितामृत और श्रीमद्भागवत के साथ करीब 60 ग्रंथों का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया. भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट की स्थापना की.श्रीमद्भागवत गीता के साथ इस्कॉन वेदों और वैदिक ग्रंथों की शिक्षा का प्रचार भी करता है.वैष्णव संप्रदाय या कृष्ण भक्ति भाव से अनुयायी जुड़ते हैं. ब्रह्म माधव गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय से जुड़े उपदेश अनुयायी सीखते और सिखाते हैं. इस्कॉन के अनुयायी गीता और हिंदू धर्म संस्कृति का प्रचार प्रसार में जुड़े रहते हैं. 


इस्कॉन के नियम
उन्हें तामसी चीजों जैसे मांस-मदिरा, लहसुन- प्याज से दूर रहना होता है
इस्कॉन के अनुयायी हरे कृष्ण की माला 16 बार रोज जपते हैं.
गीता और भारतीय धर्म-इतिहास से जुड़े शास्त्र पढ़ना और प्रचार करना होता है
इस्कॉन के अनुयायी को गलत आचरण से दूर रहकर सादगी का जीवन जीना होता है.


उन्होंने 14 नवंबर 1977 को मथुरा वृंदावन में देहत्याग दी. कोलकाता में वृंदावन में स्वामी प्रभुपाद की समाधिस्थल है.


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