UP Nagar Nikay Chunav 2022 : यूपी नगर निकाय चुनाव पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का OBC आरक्षण पर बड़ा फैसला
UP Nagar Nikay Chunav 2022 : यूपी नगर निकाय चुनाव टले, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का OBC आरक्षण पर बड़ा फैसला
UP Nagar Nikay Chunav 2022 : उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का बड़ा फैसला आय़ा है. OBC आरक्षण पर हाईकोर्ट ने सरकार को बड़ा झटका दिया है. जब तक ट्रिपल टेस्ट न हो तब तक ओबीसी रिजर्वेशन नहींदिया जा सकता है. राज्य सरकार जल्द चुनाव कराए, ओबीसी रिजर्वेशन के बिना. हाईकोर्ट ने 12.15 आर्डर पढ़ते हुए बड़ी बात कही. हाईकोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि ओबीसी आरक्षण में ट्रिपल टेस्ट कराया जाए. जब तक ट्रिपल टेस्ट न हो तब तक अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण के बगैर ही चुनाव कराए जाएं. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने करीब 20 दिनों तक चली सुनवाई के बाद ये फैसला दिया है.
याचिकाकर्ता संदीप पांडेय ने कहा है कि नितांत चुनाव अत्यंत आवश्यक हैं, तो ओबीसी आरक्षण के बगैर ही तुरंत चुनाव कराएं. ऐसे में गेंद अब सरकार के पाले में है कि वो या तो ओबीसी आरक्षण के बगैर चुनाव कराए. या फिर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए ट्रिपल टेस्ट के लिए आयोग गठित किया जाए. उसकी सिफारिशों के आधार पर आरक्षण दिया जाए औऱ फिर चुनाव कराया जाए.
याचिकाकर्ता संदीप पांडेय ने कहा कि आज हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कोई बहस नहीं. कोर्ट ने 24 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज सिर्फ जज ने अपना फैसला पढ़ा. ऐसे में अगर सरकार ओबीसी आरक्षण के बगैर ही निर्णय़ लेती है तो एससी-एसटी और सामान्य सीटों के आरक्षण के साथ चुनाव जनवरी में कराए जाएं.
अगर सरकार ट्रिपल टेस्ट कराती है और आयोग गठित करती है तो 31 जनवरी तक ये प्रक्रिया पूरी करनी होगी. ऐसे में आयोग की अनुशंसा के साथ हर जिले में जिलाधिकारी आरक्षण को लेकर अपनी सिफारिशें भेजेगा. ट्रिपल टेस्ट के तहत सरकार को एक डेडिकेटेड कमीशन बनाना होगा. फिर ये कमीशन ओबीसी की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट देगा. इस रिपोर्ट की सिफारिशें के अनुसार ही हर जिले में नगर निगम, नगरपालिका औऱ नगर पंचायतों का आरक्षण तय होगा.
याचिकाकर्ता संदीप पांडेय के अनुसार, अगर सरकार ओबीसी के लिए ट्रिपल टेस्ट नहीं कराती है तो ओबीसी को सामान्य की तरह ही मानकर सिर्फ एससी-एसटी आरक्षण के साथ वो आगे बढ़े. ओबीसी की शैक्षणिक, सामाजिक आर्थिक स्थिति के अलावा उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को देखा जाएगा. आयोग ने सरकार की रैपिड टेस्ट की दलील को नहीं माना और 2017 की तरह इस बार भी उसी आधार पर चुनाव कराने की मांग को खारिज कर दिया.
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