यूपी निकाय चुनाव: भावी उम्मीदवारों की उम्मीदों पर फिर गया पानी, आरक्षण ने बदल दिए सियासी समीकरण
UP Nikay Chunav 2022: आरक्षण सूची में बदलाव का असर उन भावी उम्मीदवारों पर पड़ा है जो सालों से चेयरमैन और मेयर बनने का ख्बाव पाले बैठे थे. जानिए अब क्या समीकरण बनते दिखाई दे रहे हैं.
मनीष गुप्ता/आगरा: सालों से चेयरमैन और मेयर बनने का ख्बाव पाले बैठे दावेदार इन दिनों बेरौनक हैं. उनकी सालों की मेहनत पर आरक्षण सूची ने पानी फेर दिया है, जो दावेदार ये मान कर चल रहे थे, कि इस बार उनको टिकट ही मिल जाएगी, मगर आरक्षण ने सब कुछ उलट पुलट कर दिया. हम बात कर रहे हैं उन दावेदारों की, जिनकी सीट का आरक्षण अब बदल गया है.
नगर पंचायत औऱ पालिकाओं में हो रहा विरोध
आरक्षण सूची में बदलाव का असर शमसाबाद नगर पालिका पर पड़ा है, यहां से चेयरमैन पद के लिए सालों से बल्लो गुप्ता तैयारी कर रहे थे. पिछले चेयरमैन के चुनाव में पूर्व मंत्री शिवकुमार राठौर की पत्नी लक्ष्मी राठौर ने उनको थोड़े अंतराल पर पर ही हराया था, माना जाता जा रहा था कि इस बार भाजपा टिकट देकर बल्लो गुप्ता को ही मैदान में उतारेगी, मगर नई आरक्षण सूची में ये सीट अब अन्य पिछड़ा वर्ग में चली गई है. उनके अरमानों पर पानी फिर गया है. इसी तरह से पिनाहट नगर पालिका में भी हुआ है, ये सीट अब रिजर्व कोटे में चली गई है. इस सीट पर अब तक सपा की किशोरी देवी गुप्ता चेयरमैन थीं, मगर अब सीट रिजर्व हो जाने पर उनके राजनीतिक राह मुश्किल हो गई है. कुछ ऐसा ही हाल किरावली, एत्मादपुर और बाह नगर पंचायतों में हुआ है.
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मेयर सीट पर हाथ लगी मायूसी
आगरा मेयर सीट को लेकर दावा किया जा रहा था कि ये सीट इस बार सामान्य रह सकती है, अगर आरक्षण बदला भी तो सामान्य महिला सीट हो जायेगा. इसी को मद्देनजर रख कर इस सीट पर पूरन डाबर, रेणुका डंग, बीना लवानिया, खुद वर्तमान के मेयर नवीन जैन को खुद के रिपीट हो जाने का भरोसा था. इनके अलावा बबिता चौहान, आलोक अग्रवाल और भी तमाम तरह लोग सालों से दावेदारी कर रहे थे, मगर आगरा सीट एससी महिला सीट हो जाने से इन सभी लोगों के हाथ मायूसी लगी है.
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राजनीतिक दलों को भी बदलनी पड़ रही रणनीति
इतना ही नहीं, राजनीतिक दलों को भी अपनी रणनीति में फेर बदल करना पड़ रहा है. अब भाजपा में भी एससी महिला की दमदार प्रत्याशी की खोज जारी है, अभी तक भाजपा के एससी कोटे के नेता अब अपनी पुत्रवधुओं और बहन बेटियों के माध्यम से अपनी दावेदारी आगे बढ़ा रहे हैं, भाजपा नेतृत्व भी सकते जैसी हालत में है. बदले माहौल में अच्छे औऱ जिताऊ प्रत्याशी की तलाश जारी है, कुछ ऐसा ही हाल बसपा और सपा का भी है.
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