लखनऊ: निकाय चुनाव को लोकसभा चुनाव के सियासी प्रयोग के तौर पर देखा जा रहा है. बीएसपी की बात करें तो उसने नगर निकाय चुनावों में मेयर पदों के लिए 64 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. माना जा रहा है कि पार्टी इससे राज्य के 20 फीसदी वोटबैंक को साधना चाहती है. जाहिर है कि इसका सबसे अधिक नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा. सपा का मुस्लिम-यादव गठजोड़ बिखरेगा. इससे पहले 2017 में मेयर की 16 सीट में से 14 पर बीजेपी और दो बीएसपी के खाते में गई थी. समाजवादी पार्टी का खाता भी नहीं खुला था.


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इस मुद्दे पर सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी का कहना है कि "एक-एक मतदाता जानता है कि बसपा ने मुसलमानों को इतने टिकट क्यों दिए? वह खुद तो जीत नहीं सकती, इसलिए किसी और के इशारे पर ऐसा किया है.'' चौधरी ने बीएसपी को बीजेपी की ‘बी’ टीम करार दिया और कहा कि यह वोट काटने की उसकी रणनीति है, लेकिन अब सभी उसकी चाल से वाकिफ हो गए हैं.


खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मंगलवार को लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान इसी बात की ओर संकेत किया. उन्होंने कहा कि सब जानते हैं कौन किसके लिए लड़ रहा है. अखिलेश और मायावती पहले भी एक-दूसरे को बीजेपी की बी टीम साबित करने में बयानबाजी करते रहे हैं. 


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बीजेपी ने यूपी नगर निकाय चुनाव में अपना सियासी गुणा-गणित बदला है. 2014 के बाद से बीजेपी ने यूपी में होने वाले चुनावों में मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव लगाने से बचती रही है. लेकिन, 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' के नारों के साथ आगे बढ़ती बीजेपी ने अब इस वोटबैंक में सेंधमारी तेज कर दी है. नगर निकाय चुनाव में विभिन्न पदों पर 391 मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है. निकाय चुनाव में बीजेपी की इस रणनीति पर अब राजनीतिक विश्लेषकों की पैनी नजर है. इसे लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा है. दरअसल, प्रदेश के 760 नगरीय निकायों में 14,864 पदों के लिए 4 और 11 मई को दो फेज में वोट डाले जाएंगे. 13 मई को नगर निकाय चुनाव के नतीजे आएंगे.


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