सिटी ऑफ भारत रत्नः ज्ञान की अलख जगाने से लेकर सुर साधना तक, इस शहर से निकलीं एक से एक शख्सियत

नई दिल्ली: बनारस देश में पहला ऐसा शहर है जहां के रहने वाले या उससे जुड़ी 8 हस्तियां देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान `भारत रत्न` से सम्मानित की जा चुकी हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो बाबा विश्वनाथ की नगर वाराणसी `भारत रत्नों का शहर` बन गया है. इस सम्मान को पाने वाली वाराणसी की ये विभूतियां कौन हैं, यदि इस पर नज़र डालें तो न सिर्फ हमें बनारस की गंगा-जमुनी तहजीब की जीवन्तता पता चलती है, बल्कि घाटों के शहर कहे जाने वाले बनारस में ज्ञान-विज्ञान और संगीत की त्रिवेणी के होने का एहसास भी पुख्ता हो जाता है. देश के उच्चतम नागरिक सम्मान भारत रत्न की स्थापना 2 जनवरी, 1954 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने की थी.

ज़ी न्यूज़ डेस्क Sat, 02 Jan 2021-5:25 pm,
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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया. उनका जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुतनी ग्राम में हुआ था. युवावस्था में विवेकानंद, वीर सावरकर को पढ़ा और उनके विचारों को आत्मसात किया. उन्होंने अपने लेखों और भाषणों से दुनिया को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया. कई विश्वविद्यालयों के कुलपति, रूस में भारत के राजदूत भी रहे. बीएचयू में 1939 से लेकर 1948 तक कुलपति रहे. जीवन में करीब 40 वर्ष शिक्षक रहे राधाकृष्णन 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किए गए. मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार ने टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया, जो धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है. यह पुरस्कार पाने वाले वह प्रथम गैर-ईसाई थे. 17 अप्रैल 1975 को निधन हुआ.

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भगवान दास

वर्ष 1955 में भारत रत्न सम्मान बनारस में 12 जनवरी, 1869 को साह परिवार में जन्मे भगवान दास को दिया गया. वह बड़े चिंतक, विचारक, शिक्षाविद और दार्शनिक थे. भगवान दास की लिखी दर्जनों किताबें उनके ज्ञान की गवाही देती हैं. बहुत कम लोग जानते होंगे कि भगवान दास ने एक तरफ मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की नींव रखी थी, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने काशी विद्यापीठ की स्थापना भी की थी. उन्होंने एनी बेसेंट के साथ थियोसॉफिकल सोसायटी की शुरुआत में भी भूमिका निभाई थी.

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लाल बहादुर शास्त्री

वर्ष 1966 में देश को 'जय जवान जय किसान' का नारा देने वाले बनारस के लाल बहादुर शास्त्री को 'भारत रत्न' से से नवाजा गया. लालबहादुर शात्री बनारस के रामनगर में जन्में थे. उनके बारे में लोग बताते हैं कि वह अच्छे तैराक थे और पढ़ाई के दौरान अक्सर गंगा तैरकर इस पार आते थे. देश के दूसरे प्रधानमंत्री रहे लालबहादुर शात्री की सादगी और ईमानदारी का पूरा देश कायल है. उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए उसी वर्ष मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

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पंडित रविशंकर

विश्व में भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्कृष्टता के सबसे बड़े उद्घोषक पंडित रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल 1920 को काशी में हुआ था. उन्हें विदेशों में बहुत अधिक प्रसिद्धि मिली. वह जब दस वर्ष के थे, संगीत के प्रति उनका लगाव शुरू हुआ. पंडित रविशंकर को वर्ष 1999 में भारत सम्मान से नवाजा गया. हालांकि पंडित रविशंकर ने अमेरिका की नागरिकता ले ली थी, लेकिन उनका बनारस से नाता बना रहा. 11 दिसंबर 2012 को अमेरिका के सैन डिएगो में उन्होंने अंतिम सांस ली.

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उस्ताद बिस्मिल्लाह खान

वर्ष 2001 में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को 'भारत रत्न' से नवाज़ा गया, लेकिन वह सम्मान उनसे कहीं ज़्यादा उनकी 'जादुई फूंक' के लिए था. दरअसल, वाद्ययंत्र शहनाई दशकों तक शुभ अवसरों पर लोगों के घरों की चौखट पर बजता आ रहा था, लेकिन उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने उसमें ऐसी फूंक मारी कि वह लोगों की ड्योढ़ी से उठकर आंगन में बजने लगा, लिहाज़ा वह सम्मान उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की उस 'जादुई फूंक' को मिला था.

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रसायनविद सीएनआर राव

चिंतामणि नागेश रामचंद्र राव का जन्म 30 जून, 1934 को बेंगलुरु में हुआ था. उन्होंने बीएचयू से एमएससी और आइआइटी खड़गपुर से पीएचडी की. महज 24 साल की आयु में पीएचडी करने वाले वह सबसे युवा वैज्ञानिकों में थे वर्ष 2001 के बाद अगले 'भारत रत्न' के लिए बनारस को 12 वर्ष इंतज़ार करना पड़ा, और वर्ष 2013 में प्रसिद्ध रसायनविद सीएनआर राव को सम्मानित किए जाते ही प्रतीक्षा की घड़ियां समाप्त हुईं. वैसे, सीएनआर राव बनारस में नहीं जन्मे थे, लेकिन बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी उनकी कर्मभूमि रही थी. 

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महामना मदन मोहन मालवीय

वर्ष 2014 में बनारस के जिस शख्स को 'भारत रत्न' से नवाज़ा गया, वह किसी उपाधि या 'रत्न' कहे जाने से बहुत बड़े हैं, क्योंकि वह तो स्वयं 'महामना' थे. खैर, देर से ही सही, लेकिन महामना मदन मोहन मालवीय को 'भारत रत्न' दिए जाने से सभी प्रसन्न हैं, हालांकि हमारा मानना है कि यह सम्मान शुरू होते ही 'महामना' को मिल जाना चाहिए था.

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भूपेन हजारिका

असम के शदिया में 8 सितंबर 1926 को जन्मे भूपेन हजारिका को असम नहीं बल्कि पूरे संसार के लिए विश्व रत्न कहना श्रेष्ठ होगा. शुरुआती पढ़ाई गुवाहाटी, तेजपुर में हुई. बीएचयू से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किया. 1952 में अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की. 10 वर्ष की उम्र में अपना पहला गीत लिखा और गाया. गंगा पर लिखे और गाए उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए. फिल्म रूदाली के गीत 'दिल हूं हूं करे के जरिए उन्हें लोगों ने जाना. उनकी चिरंजीवी आवाज में बिहू के गीत अमर हैं. 1992 में दादा साहेब फाल्के और 2019 में भारत रत्न से सम्मानित किए गए. 5 नवंबर 2011 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा.

 

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भारत रत्न के बारे में कुछ खास तथ्य

यह भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. यह 26 जनवरी को भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है. इस पुरस्कार विजेता को प्रोटोकॉल में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, पूर्व राष्ट्रपति, उपप्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा स्पीकर, कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री और संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता के बाद जगह मिलती है. शुरुआत में इस सम्मान को मरणोपरांत देने का प्रावधान नहीं था, 1955 में इसे जोड़ा गया. भारत रत्न सम्मान प्रतिवर्ष देने की कोई अनिवार्यता नहीं है. इसमें किसी तरह की धनराशि नहीं दी जाती है. एक साल में अधिकतम तीन लोगों को ही भारत रत्न दिया जा सकता है. आपातकाल के चलते 13 जुलाई, 1977 से 26 जनवरी, 1980) के लिए इसे पुरस्कार को निलंबित कर दिया गया था. 2011 में खेलकूद के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि प्राप्त करने वाले खिलाड़ियों को भी शामिल किया गया.

 

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सबसे कम उम्र में किसे दिया गया?

भारत रत्न को लेकर ऐसा कहीं भी नहीं लिखा गया है यह सिर्फ भारतीय नागरिकों को दिया जाएगा. भारत रत्न को 1987 में विदेशी मूल की पहली शख्सियत खान अब्दुल गफ्फार खान को सम्मानित किया गया. 1990 में नेल्सन मंडेला नवाजे गए. भारत रत्न से सम्मानित पहली भारतीय महिला इंदिरा गांधी थीं. जबकि सबसे कम उम्र में यह सम्मान राजीव गांधी को दिया गया. उन्हें 47 साल में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया. डी.के. कर्वे सबसे अधिक उम्रदराज भारत रत्न थे. 100 साल की उम्र में नवाजे गए. सुभाष चंद्र बोस को 1992 में मरणोपरांत सम्मान दिया गया, लेकिन एक जनहित याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मरणोपरांत शब्द हटा लिया गया. 

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