यूपी की वो 8 हस्तियां, जिन्होंने हिन्दी को बुलंदियों पर पहुंचाया, वाराणसी-प्रयागराज से प्रतापगढ़ तक कनेक्शन
हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. हिंदी दिवस मनाने के पीछे का उद्देश्य इसके महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना है. साथ ही न केवल देश बल्कि विदेश में भी हिंदी का प्रचार-प्रसार करना है.
मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में हुआ. उनका बचपन का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. 13 साल की उम्र में ही उन्होंने उपन्यास लिखना शुरू कर दिया था. मुंशी प्रेमचंद को हिंदी साहित्य के इतिहास में उपन्यास सम्राट के रूप में जाना जाता है.
इन महान कहानियां
मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास और कहानियां आम आदमी और देश भक्ति से जुड़ी हुई होती थी. उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी साहित्य से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की. प्रेमचंद की 21 कहानी संग्रह में 300 के लगभग कहानियां प्रकाशित हुईं. इनमें शोजे -वतन, सप्त सरोज, नमक का दारोगा, प्रेम पचीसी, प्रेम प्रसून, पूस की रात आदि मुख्य हैं.
महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद में 26 मार्च 1907 में हुआ था. महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है. कहा जाता है कि इनके घर में सात पीढ़ियों के बाद किसी लड़की का जन्म हुआ था. इसलिए घरवालों ने इनका नाम महादेवी रखा था.
समाज सेवा में जुट गईं
महादेवी वर्मा महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद समाज-सेवा में लग गईं. 1932 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संस्कृत से उन्होंने मास्टर की पढ़ाई की. वह प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रिंसिपल और कुलपति भी रहीं. उन्होंने 1955 में इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की.
जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को वाराणसी में हुआ था. जयशंकर प्रसाद ने संस्कृत, हिंदी, फारसी, उर्दू के लिए टीचर नियुक्त थे.
9 साल में शुरू की रचना
कहा जाता है कि 9 साल की उम्र में ही जयशंकर प्रसाद ने कलाधर उपनाम से ब्रजभाषा में एक सवैया लिखकर अपने गुरु रसमयसिद्ध को दिखाया था. उनकी शुरुआती रचनाएं ब्रजभाषा में मिलती हैं. बाद में धीरे-धीरे वे खड़ी बोली को अपनाते गए.
सुभद्रा कुमारी चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म साल 1904 में इलाहाबाद के निहालपुर गांव में हुआ था. इलाहाबाद में असहयोग आंदोलन के प्रभाव में पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर वह राजनीति में सक्रिय हो गईं. शादी के बाद वे जबलपुर में बस गईं.
काव्य रचना से स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया
सुभद्रा कुमारी चौहान हिंदी काव्य जगत में एकलौती ऐसी कवयित्री हैं, जिनकी काव्य रचनाओं से लाखों भारतीयों में स्वतंत्रता संग्राम में अपने को समर्पित कर देने के लिए प्रेरित किया था. उनकी भाषा सीधी, सरल तथा स्पष्ट एवं आडंबरहीन खड़ी बोली है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म वाराणसी में 1850 को हुआ था. बचपन में ही माता-पिता के निधन हो जाने के बाद वह घर पर ही रह कर हिंदी, मराठी, बंगला, उर्दू तथा अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त किया.
15 साल में साहित्य सेवा शुरू की
15 साल की उम्र में भारतेंदु ने साहित्य सेवा प्रारंभ कर दी थी. 18 साल में उन्होंने कवि वचन-सुधा नामक पत्र निकाला. इसमें उस समय के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं छपती थीं.
सोहन लाल द्विवेदी
सोहन लाल द्विवेदी का जन्म 22 फरवरी साल 1906 को फतेहपुर के बिंदकी में हुआ था. सोहन लाल द्विवेदी काशी हिंदू यूनिवर्सिटी से एमए, एलएलबी की डिग्री ली.
रचनाओं की सराहना हुई
सोहन लाल द्विवेदी ने आजीविका के लिए जमींदारी और बैंकिंग का काम करते रहे. साल 1938 से 1942 तक वे राष्ट्रीय पत्र दैनिक अधिकार के संपादक भी थे. आजादी के लड़ाई के दौरान उनकी देश-भक्ति और ऊर्जा से ओतप्रोत रचनाओं की काफी सराहना हुई थी.
हरिवंशराय बच्चन
हरिवंशराय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को प्रतापगढ़ के पट्टी गांव में हुआ था. हरिवंशराय ने 1938 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इंग्लिश में एमए किया, वे 1952 तक इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रवक्ता भी रहे.
भारत सरकार में नौकरी
हरिवंशराय बच्चन साल 1952 में पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए. वहां कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य/काव्य पर शोध किया. 1955 में कैम्ब्रिज से वापस आने के बाद भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किया.
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
सूर्यकांत निराला का जन्म 21 फरवरी 1899 को प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में हुआ था. निराला के पिता पंडित रामसहाय त्रिपाठी सरकारी कर्मचारी थे.
निराला की कविताएं
निराला की रचनाओं में कई तरह के भाव पाए जाते हैं. वह खड़ी बोली के कवि थे, पर ब्रजभाषा और अवधी भाषा में भी कविताएं बना लेते थे.