उत्तराखंड में किस नाम से जाना जाता है भाई दूज, त्योहार मनाने की है अनोखी परंपरा
Bhai Dooj: भाई दूज के के दिन बहन भाई को चूड़ा से पूजती है. इस दिन सुबह पूजा पाठ के बाद चूड़ा मंदिर में चढ़ाया जाता है. सरसों के तेल को दूब के तिनकों से सिर में लगाया जाता है. उसके बाद परिवार के लोगों के सिर में चूड़ा चढ़ाए जाते हैं.
दुत्ती त्यार
उत्तराखंड की पहचान दुनियाभर में न सिर्फ देवभूमि के रूप में है बल्कि यहां की अपनी एक विशेष संस्कृति भी है. यहां हर एक त्योहार अपने एक विशेष ढंग से मनाया जाता है. ऐसा ही कुछ भाई दूज के त्योहार के साथ भी है. भाई दूज उत्तराखंड में अपनी एक विशेष परंपरा के साथ मनाया जाता है.इसे यहां दुत्ती त्यार नाम से जाना जाता है.
प्रकृति का प्रभाव
उत्तराखंड के लोग प्रकृति से विशेष रूप से जुड़े होते हैं. इसका असर उनके रिवाजों पर भी देखने को मिलता है. यहां भाई दूज के त्योहार में भी त्योहार और प्रकृति का संगम हुआ है.
भाई दूज की अनोखी संस्कृति
भाई दूज पर उत्तराखंड में धान से बने चूड़ा पूजने की परंपरा वर्षों से चली आ ही है. यह यहां की संस्कृति का हिस्सा है.
भाई दूज के पहले से तैयारी
चूड़ा बनाने के लिए धान भिगोया जाता है. उत्तराखंड के कुमाऊं में धान भाई दूज से तीन दिन पहले या पांच रात पहले भिगोया जाता है.
भाई दूज की अनोखी परंपरा
भाई दूज से पहले गर्म धान को ओखल में कूटने के बाद चूड़ा बनाया जाता है. भाई दूज के दिन चूड़ा को बहन भाई के सिर में चढ़ाती है और उसकी खुशहाली व लंबी उम्र की कामना करती है.
ओखल की पूजा
भाई दूज से पहले चूड़ा को कूटने के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले ओखल की भी पूजा की जाती है.
धान को भिगोया जाता है
आपको बता दें कि धान को भिगोने के बाद इसे तेल की कढ़ाई में कुछ देर तक आग में भूना जाता है. इसके बाद तुरंत गर्मागर्म ओखली में कूटा जाता है. यह धान से चावल को अलग करने का एक पुराना तरीका है.
चूड़ा भूना जाता है
आग में भुने हुए होने के कारण यह बहुत स्वादिष्ट होता है. इसे ही चूड़ा कहा जाता है.
चूड़े से पूजा जाता है
भाई दूज के के दिन बहन भाई को चूड़ा से पूजती है.इस दिन सुबह पूजा पाठ के बाद चूड़ा मंदिर में चढ़ाया जाता है.
तेल और दूब का प्रयोग
सरसों के तेल को दूब के तिनकों से सिर में लगाया जाता है. उसके बाद परिवार के लोगों के सिर में चूड़ा चढ़ाए जाते हैं.