Wedding Tradition:धरती पर किसने रचाया पहला विवाह? सात फेरों, सिंदूर से मंगलसूत्र की शुरू की रस्में
विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है. ये दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है. ऐसे में आइए जानते हैं ये परंपरा कैसे शुरू हुई और धरती पर पहला विवाह किसका हुआ था?
Wedding Tradition: विवाह...शादी...ये दो लोगों के बीच का सबसे पवित्र बंधन माना जाता है. हिन्दू धर्म में विवाह से जुड़ी कई बातें बताई गई हैं. उनमें विवाह के नियम, रीति-रिवाज, विवाह का महत्व जैसी बातें शामिल हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि यह परंपरा शुरू कैसे हुई और धरती पर सबसे पहला विवाह किसका हुआ था. आइए जानते हैं.
पुरुष तत्व और स्त्री तत्त्व
ब्रह्म पुराण के मुताबिक, सृष्टि की रचना के बाद ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो भाग कर दिए थे. यह भाग मनुष्य की उत्पत्ति के लिए हुए थे. ब्रह्मा जी के शरीर का एक भाग 'का' कहलाया और दूसरा भाग 'या' कहलाया. दोनों को मिलाकर बना 'काया'. इसी काया से पुरुष तत्व और स्त्री तत्त्व ने जन्म लिया.
स्त्री-पुरुष की हुई रचना
ब्रह्म पुराण के मुताबिक, ब्रह्मा जी ने पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा रखा. इन्हीं दोनों को ब्रह्मा ने सृष्टि का ज्ञान दिया और धरती पर भेज दिया. फिर जब दोनों का धरती पर आमने-सामने आए तो ब्रह्मा जी ने जो सांसारिक और पारिवारिक ज्ञान दिए थे, उनके हिसाब से दोनों ने एक दूसरे को स्वीकार किया.
यहीं थे पहले दंपत्ति
शास्त्रों की मानें तो मनु-शतरूपा ही पहले दंपत्ति थे. ऐसी मान्यता है कि पृथ्वी पर पहला विवाह मनु और शतरूपा ने किया था. इस विवाह के बाद मनु और शतरूपा को सात पुत्र और तीन पुत्रियां हुई थीं. हालांकि कुछ धर्म ग्रंथों में माना जाता है कि मनु और शतरूपा ने विवाह तो किया था, लेकिन वह निति सांगत नहीं था.
परंपरा की स्थापना
मान्यता है कि विवाह जैसी परंपरा की स्थापना श्वेत ऋषि ने की थी. उन्होंने ही विवाह के सभी नियम, विवाह की मर्यादा, विवाह का महत्व, विवाह में फेरों का स्थान, विवाह में सिन्दूर और मंगलसूत्र का महत्व बताया था. आज भी ये सभी परंपराएं निभाई जाती हैं.
विवाह में वचन
कहा जाता है कि श्वेत ऋषि ने ही विवाह में वचनों का आदान-प्रदान जैसी परंपराओं की स्थापना की थी, जो आज तक चली आ रही हैं. हिन्दू धर्म में विवाह से जुड़ी ये परंपराएं बेहद अहम मानी जाती हैं. इनके बिना हिन्दू धर्म में विवाह संभव नहीं माना जाता.
क्या है सच?
अधिकतर शादियों में फेरों के दौरान बोला जाता है कि शादी के बाद पत्नी-पति की आज्ञा लिए बिना कोई काम नहीं करेगी या पत्नी विवाह के बाद पति के अधीन है, लेकिन असल में ऋषि श्वेत ने जो नियम बनाए थे, उसके अनुसार पति-पत्नी को एक समान स्थान दिए गए थे.
नहीं थी ये परंपरा
कहा जाता है कि शुरुआत में विवाह जैसी कोई परंपरा नहीं थी. स्त्री और पुरुष दोनों की स्वतंत्र थे. जिसकी वजह से कोई भी पुरुष किसी भी स्त्री को पकड़कर ले जाता था. इस संबंध में महाभारत में एक कथा मिलती है. एक बार उद्दालक ऋषि के पुत्र श्वेतकेतु ऋषि अपने आश्रम में बैठे हुए थे. तभी वहां एक अन्य ऋषि आए और उनकी माता को उठाकर ले गए.
क्यों बनाए नियम?
पौराणिक कथा के मुताबिक, ये सब देखकर श्वेत ऋषि को बहुत गुस्सा आया. उसके पिता ने उन्हें समझाया की प्राचीन काल से यहीं नियम चलता आ रहा है. उन्होंने आगे कहा कि संसार में सभी महिलाएं इस नियम के अधीन है. श्वेत ऋषि ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह तो पाशविक प्रवृत्ति है यानी जानवरों की तरह जीवन जीने के समान है. इसके बाद उन्होंने विवाह का नियम बनाया.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां लोक मान्यताओं/ ब्रह्म पुराण पर आधारित हैं. इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. Zeeupuk इसकी किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है.