Kanshi Ram Jayanti: यूपी में दलित राजनीति को दिशा देने वाले कांशीराम ने कैसे मायावती को बनाया मुख्यमंत्री

कांशीराम भारतीय राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे. उन्होंने भारतीय वर्ण व्यवस्था में बहुजनों के राजनीतिक एकीकरण तथा उत्थान के लिए कार्य किया. इसके अन्त में उन्होंने दलित शोषित संघर्ष समिति, 1971 में अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदायों कर्मचारी महासंघ और 1984 में बहुजन समाज पार्ट.

प्रीति चौहान Mar 14, 2023, 23:15 PM IST
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नौकरी के लिए गए थे पुना

कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 पंजाब के एक दलित परिवार में हुआ था. बीएससी (B.SC) की पढ़ाई पूरी करने के बाद कांशीराम को सर्वे ऑफ इंडिया में पहली सरकारी नौकरी मिली.  लेकिन, उन्होंने यह नौकरी नहीं की और बॉन्ड साइन नहीं किया. इसके बाद वह साल 1958 में एक्सप्लोसिव रिसर्च एंड डिवेलपमेंट लैबोरेटरी में बतौर रिसर्च असिस्टेंट जॉइन किया, जिसके लिए उन्हे पुना आना पड़ा. इस दौरान कांशीराम अंबेडकर और ज्योतिबा फुले के लेखन के संपर्क में आए और यहीं से उनके कायांतरण की शुरुआत हुई.

 

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अंबेडकर जयंती के दिन अवकाश की मांग उठाई

कांशीराम ने दलितों से जुड़े सवाल और अंबेडकर जयंती के दिन अवकाश घोषित करने की मांग उठाई. अंबेडकर के जन्मदिन के दिन 14 अप्रैल 1973 को ऑल इंडिया बैकवर्ड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लॉईज फेडरेशन (बामसेफ) का गठन किया.इसके बाद देश भ्रमण के लिए कांशीराम निकल गए. इस दौरान उन्हें सबसे ज्यादा गुंजाइश उत्तर प्रदेश में समझ आई. 1984 में बीएसपी के गठन के साथ ही कांशीराम चुनावी राजनीति में कूद पड़े.

 

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मायावती से हुई मुलाकात

चुनावी राजनीति आने के बाद कांशीराम की मुलाकात मौजूदा बसपा सुप्रीमो मयावती से हुई. इसके बाद बीएसपी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी एक अलग छाप छोड़ी.उत्तर भारत की राजनीति में गैर-ब्राह्मणवाद की शब्दावली बीएसपी ही प्रचलन में लाई. राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान पश्चिम यूपी में जब भी उपचुनाव हुए, कांशीराम ने मायावती को मैदान में उतारा. एक बार बिजनौर से, एक बार हरिद्वार से और आखिर में 1989 के चुनाव में बिजनौर सीट से बीएसपी का खाता खुला. मायावती लोकसभा पहुंचीं. बसपा को राजनीति में एक ताकत के रूप में खड़ा किया.

 

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जब बसपा ने यूपी में जमाई थी अपनी जड़ें

कांशीराम के नेतृत्व में बीएसपी का मूवमेंट लगातार मजबूत होता गया. राममंदिर और मंडल के दौर में कांशीराम ने अपने मूल सपने की तरफ लौटना रणनीतिक तौर पर मुनासिब समझा. बसपा ने मुलायम सिंह यादव की नई बनी समाजवादी पार्टी के साथ गठजोड़ कर चुनाव लड़ा. चुनाव के बाद 1993 में मुलायम सिंह के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी. बीएसपी के कार्यकर्ता कैबिनेट मंत्री बने.

 

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1955 में मायावती बनी मुख्यमंत्री

राजनीति में आने के बाद मायावती के भाषण का लोगों पर खासा प्रभाव पड़ने लगा. यह बात अंदर ही अंदर मुलायम सिंह यादव को खटकने लगी. कुछ दिन बाद भाजपा ने अपने साथ गठबंधन के लिए कांशीराम को राजी कर लिया. कांशीराम की चाहत भी धीरे धीरे पूरी होन की ओर जा रही थी. दलित की बेटी को मुख्यमंत्री बनाना उनकी चाहत थी. बीजेपी और बसपा की गठबंधन की सरकार में पहली बार 1995 में मयावती मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी.

 

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