यूपी के इस मंदिर में माता के दांतों से निकलता है खून, दुर्गा सप्तशती पाठ में भी शक्तिपीठ का उल्‍लेख

यूपी के जालौन में बेतवा नदी के किनारे अलग-अलग पहाड़ों पर बने ऐतिहासिक एवं प्राचीन शक्तिपीठ मंदिरों की अलग पहचान व मान्यताएं हैं. इनकी प्राचीनता का अनुमान लगाना बेहद ही मुश्किल है.

अमितेश पांडेय Mon, 07 Oct 2024-11:39 am,
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रक्तदंतिका देवी एवं मां अक्षरा देवी

न केवल जालौन बल्कि आसपास के जिलों के लोगों में दोनों शक्तिपीठों पर अटूट विश्वास बना हुआ है. नवरात्रि पर भारी संख्‍या में भक्‍त रक्तदंतिका देवी एवं मां अक्षरा देवी पर मत्‍था टेकने आते हैं. 

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रक्तदंतिका मंदिर

जालौन के डकोर ब्लॉक की ग्राम पंचायत सैदनगर में रक्तदंतिका नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. जालौन के मुख्यालय उरई से इसकी दूरी 50 किलोमीटर है. 

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दुर्गा सप्‍तशती पाठ में जिक्र

सैदनगर गांव से निकली बेतवा नदी किनारे एक ओर पहाड़ों पर बसी रक्तदंतिका शक्तिपीठ का वर्णन दुर्गा सप्तशती पाठ के दो श्लोकों में मिलता है. 

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बलि देने पर रोक

देवी रक्तदंतिका का यह मंदिर सदियों पुराना है. पहले यह शक्तिपीठ तंत्र साधना का केंद्र हुआ करता था. यहां पर बलि देने का प्रावधान था. कोई भी साधक रात में मंदिर परिसर में नहीं रुक सकता था. 

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पहले पुजारी

कई वर्षों पहले यहां लंका वाले महाराज आकर रुक गए थे. उन्होंने यहां पर साधना शुरू की, वह किसी से बोलते-चालते नहीं थे. धीरे-धीरे भक्‍त आने लगे.  

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हनुमान जी का मंदिर

लंका वाले महाराज के समय से ही नवरात्रि के दिनों में कुछ देवी भक्त मंदिर में रुकने लगे थे. पहाड़ में देवी के मंदिर के साथ ही दूसरी तरफ एक हनुमान जी का मंदिर बना हुआ है. 

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रक्‍त‍िम शिलाएं

इस मंदिर की विशेषता यह है कि देवी मंदिर में दो शिलाएं रखी हुई हैं, यह शिलाएं रक्तिम हैं. सती के दांत यहीं पर गिरे थे. 

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यह मान्‍यता

बताया जाता है कि अगर शिलाओं को पानी से धुल दिया जाए तो कुछ ही देर में यह शिलाएं फिर से रक्तिम हो जाती हैं. 

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दंत शिलाओं की पूजा

अब इस मंदिर में एक देवी की प्रतिमा स्‍थापित कर दी गई है. वास्तिवक पूजा दंत शिलाओं की ही होती है. पहले बलि प्रथा भी प्रचलित थी. अब इस पर पाबंदी लगा दी गई है. 

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दूर दराज से आते हैं भक्‍त

नवरात्रि के मौके पर दूर-दराज से भारी संख्या में श्रद्धालु मंदिर की सीढ़ियों पर अपना मत्था टेकने के लिए आते हैं. 

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तंत्र साधना का केंद्र

देवी रक्तदंतिका स्फटिक के पहाड़ पर विराजमान हैं और यह मंदिर सदियों पुरानी है. पहले यह शक्तिपीठ तंत्र साधना का केंद्र हुआ करता था. 

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इन राज्‍यों से भी आते हैं श्रद्धालु

अब इस पर रोक लगा दी गई है और नवरात्रि में माता के मंदिर में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली सहित कई अन्य राज्यों से आने वाले भक्तों की भीड़ माता के दर्शनों के लिए उमड़ती है. 

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गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं

मंदिर के पुजारी कृष्ण चंद्र गौतम ने बताया कि गर्भगृह में किसी को जाने की अनुमति नहीं है. यह मंदिर सृष्टि के निर्माण के समय का है. दूर-दूर से श्रदालु यहां पहुंचते हैं. जो एक बार भी यहां आता है उसकी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है. 

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डिस्क्लेमर

लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की जिम्मेदारी हमारी नहीं है. एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.

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