55 साल से संस्कृत पढ़ा रहे हयात उल्लाह को चारों वेदों का ज्ञान, फटाफट सुनाते हैं श्लोक और दोहे
Kaushambi News: कौशांबी जिले के हयात उल्लाह ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें मुस्लिम होकर भी अपना सारा जीवन संस्कृत के नाम कर दिया. हयात उल्लाह 55 साल से संस्कृत पढ़ा रहे हैं. वे सनातन धर्म के चारों वेदों में इतने पारंगत हैं लोग अब उन्हें हयात उल्लाह चतुर्वेदी कहते हैं.
Kaushambi Muslim Sanskrit Teacher: कौशाम्बी जिले के हयात उल्ला, एक ऐसा नाम है जो धर्म और भाषा की दीवारों को तोड़ते हुए समाज को नई दिशा दिखा रहे हैं. मुस्लिम परिवार में जन्मे हयात उल्ला ने पिछले 55 वर्षों से संस्कृत के प्रति अपने अद्वितीय समर्पण और प्रेम से लोगों के दिलों में खास जगह बनाई है.
हयात उल्ला चतुर्वेदी से जानते हैं लोग
82 वर्ष की उम्र पार कर चुके हयात उल्ला ने अपनी ज़िंदगी संस्कृत के प्रचार और प्रसार के लिए समर्पित कर दी है, जो हयात उल्ला चतुर्वेदी के नाम से जाने जाते हैं. चतुर्वेदी की उपाधि उन्हें दशकों पहले उनकी विद्वता के सम्मान में दी गई थी. संस्कृत भाषा में उनके अद्वितीय योगदान और चारों वेदों में पारंगतता के कारण उन्हें यह उपाधि प्राप्त हुई.
मजहबी दीवारों को गिराता है भाषा का ज्ञान
हयात उल्ला का मानना है कि संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो मजहबी दीवारों को तोड़कर एक नए हिंदुस्तान का निर्माण कर सकती है. वे कहते हैं कि भाषा का ज्ञान मजहब की दीवार को गिरा देता है, जो आज के समय की बुनियादी जरूरत है. इसीलिए, 82 वर्ष की उम्र में भी, वे स्कूल-दर-स्कूल जाकर बच्चों को संस्कृत पढ़ाते हैं और अपनी इस जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाते हैं.
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हयात उल्लाह को बचपन से संस्कृत से लगाव
छीता हर्रायपुर निवासी हयात उल्ला, बरकत उल्ला के पुत्र हैं. उन्हें संस्कृत के प्रति गहरा लगाव बचपन से ही था और इसी लगाव ने उन्हें संस्कृत में मास्टर डिग्री प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। एमआर शेरवानी इंटर कॉलेज में संस्कृत पढ़ाते हुए, उन्होंने 2003 में सेवानिवृत्ति ली, लेकिन पढ़ाने का मोह नहीं छोड़ा. इसके बाद भी वे महगांव इंटर कॉलेज में छात्रों को पढ़ाते रहे और संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर प्रयास करते रहे.
संस्कृत में कई किताबें लिखी
हयात उल्ला चतुर्वेदी ने संस्कृत में कई किताबें लिखी हैं और हाईस्कूल की परिचायिका को अनुवादित कर सरल बनाया है. उन्होंने राष्ट्रीय एकता के लिए भी काफी प्रयास किए हैं. वे मानते हैं कि संस्कृत का ज्ञान सभी धर्मों के लोगों को प्राप्त होना चाहिए, जिससे धर्म और मजहब की कड़वाहट को खत्म किया जा सके.
अनोखा और प्रभावी है पढ़ाने का तरीका
उनके छात्रों का कहना है कि हयात उल्ला का पढ़ाने का तरीका बहुत ही अनोखा और प्रभावी है. वे हिंदी, उर्दू और संस्कृत का मिश्रण कर बच्चों को पढ़ाते हैं, जिससे बच्चे आसानी से समझ पाते हैं. छात्रों के लिए हयात उल्ला एक धरोहर के समान हैं और उन्हें गर्व है कि वे इस अद्वितीय शिक्षक से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.
"हिंदू और मुस्लिम व्यर्थ में लड़ रहे"
हयात उल्ला का मानना है कि हिंदू और मुस्लिम व्यर्थ में लड़ रहे हैं और संस्कृत के माध्यम से यह भेदभाव समाप्त किया जा सकता है. उनका कहना है कि संस्कृत को मदरसों में भी पढ़ाया जाना चाहिए, जिससे लोग वेद और कुरान के ज्ञान के बारे में समझ सकें और दोनों धर्मों के बीच सामंजस्य स्थापित हो सके.
संस्कृत के मुस्लिम सिपाही की कहानी एक प्रेरणा
संस्कृत के इस मुस्लिम सिपाही की कहानी वास्तव में एक प्रेरणा है, जो दिखाती है कि शिक्षा और ज्ञान किसी भी धर्म या मजहब की सीमा नहीं मानता. हयात उल्ला चतुर्वेदी ने अपनी लगन और समर्पण से यह सिद्ध कर दिया है कि भाषा और शिक्षा के माध्यम से हम समाज में एकता और शांति ला सकते हैं.
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