ALMORA: उत्तराखंड के कण- कण में देवताओं का वास है इसलिए इस जगह को देवभूमि कहा जाता है. यहां के गांवों में कई प्रकार के रहस्यों की कहानियां बसी हुई हैं. ऐसा ही एक रहस्य सामने आया है अल्मोड़ा जनपद से. इस कहानी को जानकर पूरी दूनियां के लोग हैरान हैं कि क्या आज भी ऐसे चमत्कार होते हैं. क्या कोई व्यक्ति दो विदेश में बढ़िया नौकरी कर रहा हो वो सिर्फ एक पत्थर के लिए अपना सब कुछ छोड़कर गांव आ सकता है. क्या एक पत्थर गांव का पलायन रोक सकता है. आपके इस प्रकार के सभी सवालों के जवाब आपको आगे इस लेख में मिल जाएंगे.


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पूरी कहनी
यह कहानी है अल्मोड़ा जनपद के सल्ट मानीला के रहने वाले विक्रम सिंह बांगरी की. विक्रम लंदन में नौकरी करते थे. विक्रम का बचपन और पढ़ाई गांव में ही हई. लंदन में नौकरी के दौरान एक दिन अचानक विक्रम के सपने में गांव का एक पत्थर आया. वो इसको महज एक संयोग मानकर भूल गए. कुछ दिनों बाद वो पत्थर फिर उनके सपने में आया और अब यह पत्थर बार- बार इनके सपने में आने लगा. एक दिन तो उनको हैरान करने वाला सपना हुआ. उन्होंने उस विशालकाय पत्थर को सपने में इतना साफ देखा कि उसके कण-कण इनको दिखने लगे. उसके बाद वो पत्थर विक्रम से बोलने लगा कि लोग मुझे भूल गए हैं. मेरी सुध लो औऱ अपने घर वापस आयो. यहां आकर पहाड़ो को संवारों.  यह पत्थर लगातार विक्रम को संकेत देने लगा. इसके बाद विक्रम ने लंदन छोड़ दिया और दिल्ली आकर नौकरी करने लगे. लेकिन वहां भी इस पत्थर ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. 


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लंदन से दिल्ली, और फिर गांव वापस
यह पत्थर लगातार इनके सपनों में आता रहा और गांव वापस लौटने के संकेत देने लगा. इतना सब होने के बाद विक्रम ने सब कुछ छोड़कर गांव जाने का निर्णय किया औऱ गांव में जाकर बस गए. गांव वापस जाने के बाद विक्रम ने सबसे पहले उस पत्थर के आस- पास साफ- सफाई की. उन्होंने इस पत्थर की पूजा- अर्चना भी की. विक्रम का कहना है कि इस पत्थर के दर्शन के बाद उनके अंदर अलग ही ऊर्जा का संचार हुआ. इसके बाद विक्रम ने तय किया कि वो यहीं गांव में रहकर काम करेंगे और लोगों को भी पलायन करने रोकेंगे. शुरुआत में उनके गांव के लोग ही उन पर जमरप हंसते थे. लेकिन धीरे- धीरें विक्रम ने अपनी मेहनत से गांव में एक होमस्टे खोल लिया. 


समय के साथ- साथ लोगों को इस जादुई पत्थक के बारे में पता चला और लोग यहां आने लगे. गांव की बंद पड़ी दुकानों में चहल पहल दिखने लगी. जो लोग गांव से पलायन करने की सोच रहे थे उनको गांव में ही रोजगार मिलने लगा.  जो भी होमस्टे में आता है इस पत्थऱ के दर्शन करने जरूर जाता. गांव वालों का  कहना है कि जिस गांव में कुछ साल पहले तक इंसान नहीं दिखता था. आज वहीं साल- भर में हजारों लोग यहां आते हैं. गांव वालों के लिए यह पत्थर किसी चमत्कारी पत्थर से कम नहीं है. विक्रम की ही मेहनत का फल है कि यहां अब हर साल 14 जनवरी को उत्तरैणी का मेला भी लगता है. इस मेले को देखने के लिए हजारों लोग यहां आते हैं. 


अपने एक इंटरव्यू में विक्रम सिंह ने बताया कि इस पत्थर ने उन्हें गांव वापस आने के लिए प्रेरणा दी. गांव के लोगों ने देर से सही पर उनका साथ दिया. अब इस पत्थर को देखने के लिए टिकट की व्यवस्था लागू कर दी है. खास बात ये है कि इससे होने वाली कमाई गांव के विकास पर ही खर्च होती है. गांव के लोग इस पत्थर को ठुल ढुंग नाम से जानते हैं. 


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