Bhai Dooj 2023: यम द्वितीया पर यमराज और यमुना जी के मंत्र और आरती का करें पाठ, टल जाएगी अकाल मृत्यु
Yamuna and Yamraj Story: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यम द्वितीया के नाम से जाना जाता है. यम द्वितीया पर यमराज और यमुना जी के मंत्र और आरती का पाठ करना चाहिए. ऐसा करने से अकाल मृत्यु टल सकती है.
Yam Dwitiya 2023 Puja: हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यम द्वितीया मनाया जाता है. इस बार यह पर्व 11 नवंबर को मनाया जा रहा है. इस दिन मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन यमुना के पूजा का विधान है. पौराणिक कथा के अनुसार, इसी दिन अपनी बहन यमुना के सत्कार से प्रसन्न होकर यमराज ने उन्हें एक वरदान दिया था कि जो कोई यम द्वितीया के दिन यमुना नदी में स्नान करेगा उसे अकाल मृत्यु और नर्क की यतनाओं से मुक्ति मिलेगी. तब से ही कार्तिक माह में विशेष रूप से यमुना स्नान और पूजन का विधान है. यम द्वितीया के दिन यमुन स्नान कर यमुना जी और धर्मराज की आरती और मंत्र पढ़ने चाहिए. ऐसा करने से सभी प्रकार के रोग और दोष से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है. इसके साथ ही सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
यमुना का मंत्र
यमुना नदी में डुबकी लगाते समय इस मंत्र का जाप करें. "यमस्वसर्नमस्तेऽसु यमुने लोकपूजिते। वरदा भव मे नित्यं सूर्यपुत्रि नमोऽस्तु ते।।"
यमुना जी की आरती
ॐ जय यमुना माता, हरि ॐ जय यमुना माता,
जो नहावे फल पावे सुख सुख की दाता
ॐ पावन श्रीयमुना जल शीतल अगम बहै धारा,
जो जन शरण से कर दिया निस्तारा
ॐ जो जन प्रातः ही उठकर नित्य स्नान करे,
यम के त्रास न पावे जो नित्य ध्यान करे
ॐ कलिकाल में महिमा तुम्हारी अटल रही,
तुम्हारा बड़ा महातम चारों वेद कही
ॐ आन तुम्हारे माता प्रभु अवतार लियो,
नित्य निर्मल जल पीकर कंस को मार दियो
ॐ नमो मात भय हरणी शुभ मंगल करणी,
मन 'बेचैन' भय है तुम बिन वैतरणी
ॐ जय यमुना माता, हरि ॐ जय यमुना माता।
धर्मराज का मंत्र
धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज। पाहि मां किंकरैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते।।
यमराज आरती
धर्मराज कर सिद्ध काज,
प्रभु मैं शरणागत हूँ तेरी ।
पड़ी नाव मझदार भंवर में,
पार करो, न करो देरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
धर्मलोक के तुम स्वामी,
श्री यमराज कहलाते हो ।
जों जों प्राणी कर्म करत हैं,
तुम सब लिखते जाते हो ॥
अंत समय में सब ही को,
तुम दूत भेज बुलाते हो ।
पाप पुण्य का सारा लेखा,
उनको बांच सुनते हो ॥
भुगताते हो प्राणिन को तुम,
लख चौरासी की फेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
चित्रगुप्त हैं लेखक तुम्हारे,
फुर्ती से लिखने वाले ।
अलग अगल से सब जीवों का,
लेखा जोखा लेने वाले ॥
पापी जन को पकड़ बुलाते,
नरको में ढाने वाले ।
बुरे काम करने वालो को,
खूब सजा देने वाले ॥
कोई नही बच पाता न,
याय निति ऐसी तेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
दूत भयंकर तेरे स्वामी,
बड़े बड़े दर जाते हैं ।
पापी जन तो जिन्हें देखते ही,
भय से थर्राते हैं ॥
बांध गले में रस्सी वे,
पापी जन को ले जाते हैं ।
चाबुक मार लाते,
जरा रहम नहीं मन में लाते हैं ॥
नरक कुंड भुगताते उनको,
नहीं मिलती जिसमें सेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
धर्मी जन को धर्मराज,
तुम खुद ही लेने आते हो ।
सादर ले जाकर उनको तुम,
स्वर्ग धाम पहुचाते हो ।
जों जन पाप कपट से डरकर,
तेरी भक्ति करते हैं ।
नर्क यातना कभी ना करते,
भवसागर तरते हैं ॥
कपिल मोहन पर कृपा करिये,
जपता हूँ तेरी माला ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
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