Varanasi: द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है, काशी में बसे भगवान शिव के बारे में अधिकांश लोग जानते हैं.  शिव यहाँ के राजा हैं यहाँ के पालनहार. और काशी के कोतवाल यानि रक्षक हैं बाबा काल भैरव जिन्हे काशी का कोतवाल कहते हैं. कहा जाता है कि काशी नगरी में काल भैरव की मर्जी चलती है. मान्यता है कि काशी नगरी में काल भैरव की मर्जी चलती है. बाबा विश्‍वनाथ के मंदिर के पास एक कोतवाली भी है, जिसकी रक्षा खुद काल भैरव करते हैं. इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है.


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काशी के कोतवाल की पौराणिक कथा 
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच चर्चा छिड़ गई कि उन दोनों में से आखिर कौन बड़ा और शक्तिशाली है. दोनों अपने अपने तर्क दे रहे थे.  विवाद के बीच भगवान शिव की चर्चा होने लगी. चर्चा के दौरान ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने भगवान शिव की कुछ आलोचना कर दी. अपनी आलोचना को अपमान समझकर बाबा भोलेनाथ बहुत अधिक क्रोधित हो गए. उनके इस क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ. अर्थात काल भैरव के रूप में शिव का ही एक अंश प्रकट हो गया और इस अंश ने ब्रह्मा जी के आलोचक पांचवें मुंह पर नाखून मार दिए.  नाखून मारने के बाद काल भैरव के नाखूनों से ब्रह्मा का मुंह चिपक गया. ब्रह्मा का शीश काटने के कारण इन्हें ब्रह्म हत्या लगा. आकाश, पाताल घूमने के बाद जब बाबा काल भैरव काशी पहुचे तो ब्रह्मा का मुख हाथ से अलग हो गया, इसलिए काल भैरव ने अपने नाखून के कुण्ड की स्थापना की और यहीं स्नान कर उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली. काल भैरव को पाप से मुक्ति मिलते ही भगवान शिव वहां प्रक्रट हुए और उन्होंने काल भैरव को वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया। उसके बाद से कहा जाता है कि काल भैरव इस नगरी में बस गए. 


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शिव ने बनाया कोतवाल 
भगवान शिव ने काल भैरव को आदेश दिया कि तुम इस नगर की कोतवाली करोगे और कोतवाल कहे जाओगे. युगों तक तुम्हारी इसी रूप में पूजा की जाएगी. शिव का आशीर्वाद पाकर काल भैरव काशी में ही बस गए और वो जिस स्थान पर रहते थे वहीं काल भैरव का मंदिर स्‍थापित है. बहुत से भक्त यह भी मानते हैं कि बाबा कालभैरव में अर्जी (प्रार्थना) लगाने के बाद ही बाबा विश्वनाथ उसे सुनते है. कहा जाता है कि काशी में जिसने काल भैरव के दर्शन नहीं किए, उसको बाबा विश्वनाथ की पूजा का भी फल नहीं मिलता है.


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