Significance of kalpvas: तीर्थनगरी प्रयागराज में हर वर्ष माघ के महीने में माघ मेले का आयोजन किया जाता है. हर छह वर्ष में अर्घकुंभ और 12 वर्षों में कुंभ मेला लगता है. ऐसी मान्यता है कि कुंभ विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक सम्मेलन है. जिसमें करोड़ों की संख्या में लोग आते हैं. प्रयागराज में हर साल पौष पूर्णिमा से संगम तट पर श्रद्धालु एक महीने का कल्पवास करते हैं. यह पर्व पौष माह की पूर्णिमा के दिन पहले स्नान से प्रारंम्भ होता है. कल्पवास की परंपरा सदियों से चली आ रही है. हिंदू धर्म में कल्पवास का बहुत महत्व है. आइए जानते हैं कल्पवास करने के महत्व, उससे जुड़ी मान्यताएं और नियम


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कल्पवास का महत्व
इस पर्व के महत्व को समझने से पहले हमें इसका अर्थ समझना होगा. इसका मतलब है कि एक महीने संगम के तट पर रहते हुए वेदाध्यान और पूजा-अर्चना करना. प्रयागराज में अब से माघ मेला शुरू हो गया है. ऐसी मान्यता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही कल्पवास के शुभ मुहुर्त का आरंम्भ होता है. शास्त्रों में कल्प का अर्थ ब्रह्मा जी का दिन बताया गया हैं. कल्पवास का महत्व रामचरितमानस और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रथों मे भी मिलता है. 


कल्पवास कैसे होता है
कल्पवास के लिए प्रयाग के संगम के तट पर श्रद्धालु डेरा डालकर कुछ विशेष नियम धर्म के साथ पूरे महीने को व्यतीत करते हैं. कुछ लोग कल्पवास मकर संक्रांति से भी आरंम्भ करते हैं. मान्यताओं की मानें तो कल्पवास के जरिए मनुष्य अपना आध्यात्मिक विकास करना चाहता है. कल्पवास करने वाले को इच्छानुसार फल के साथ जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति मिलती है. महाभारत के अनुसार सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने के बराबर पुण्य माघ मेले में कल्पवास करने से ही प्राप्त हो जाता है. कल्पवास के दौरान आप दुनिया की चमक धमक से बिल्कुल दूर सिर्फ सफेद और पीले रंग के वस्त्र ही धारण कर सकते हैं. शास्त्रों के अनुसार कल्पवास करने की न्यूनतम अवधि 1 रात, 3 रात, तीन महीना, छह महीना, छह वर्ष, 12 वर्ष या फिर जीवनभर भी कल्पवास किया जा सकता है.


कल्पवास के नियम
कल्पवास का महत्व कुंभ मेले के समय और भी अधिक हो जाता है. इस जिक्र हमें अपने वेदों और पुराणों में मिलता है. कल्पवास कोई आसान प्रकिया नहीं है. जाहिर है कि मोक्ष कोई आसान विधि की साधना तो  नही सकता. कल्पवास के दौरान कल्पवासियों को अपने आप पर पूरा नियंत्रण रखना चाहिए. पद्म पुराण में कल्पवास के नियमों को बारे में विस्तार से चर्चा की गई है. जिसके अनुसार 45 दिन का कल्पवास करने वाले व्यक्ति को 21 नियमों का पालन करना चाहिए.


पहला नियम सत्यवचन, दूसरा इंद्रियों पर नियंत्रण, तीसरा अहिंसा चौथा ब्रहमचर्य का पालन करना चाहिए, पांचवां सभी जीवों पर दयाभाव, छठा ब्रह्म मुहुर्त में जगना, नित्य तीन बार पवित्र गंगा स्नान करना, वयसनों का त्याग, पिंतरों का पिण्डदान, अन्तर्मुखी जप, सत्संग, सन्यासियों की सेवा, एक समय का भोजन करना, जमीन पर सोना, देव पूजन, संकल्पित क्षेत्र से बाहर न जाना और कल्पवास के दौरान किसी की निंदा ना करना. इन सभी में सबसे ज्यादा महत्व ब्रह्मचर्य, सत्संग, देव पूजन, उपवास और दान को माना गया है.  मान्यता है कि माघ मेले में तीन बार स्नान करने से दस हजार अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है


ऐसी मान्यता है कि कल्पवास का पालन करने से अत: करण और शरीर दोनों का कायाकल्प होता है. कल्पवास के पहले दिन तुलसी और भगवान शालिग्राम की स्थापना के साथ पूजन की जाती है और कल्पवास के दौरान जौ रोपा जाता है. जब कल्पवास की अवधि पूरी हो जाती है, तो रोपे हुए जौ को साथ लेकर चले जाते हैं, जबकि तुलसी जी को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो एक महीने कल्पवास कर लेता है, उसके लिए स्वर्ग में एक स्थान सुरक्षित हो जाता है. एक मान्यता ये भी है कि जो व्यक्ति कल्पवास की प्रतिज्ञा करता है. वह अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है.