Mokshada Ekadashi 2023 Vrat Katha: मोक्षदा एकादशी पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, पुण्य और मोक्ष की होगी प्राप्ति
Mokshada Ekadashi 2023 Vrat Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी मनाई जाती है.
Mokshada Ekadashi 2023 Vrat Katha: हिंदू धर्म में एकादशी का खास महत्व होता है. पंचाग के मुताबिक, हर माह में दो एकादशी तिथि आती हैं, एक शुक्ल पक्ष और एक कृष्ण पक्ष में. मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष मे आने वाली इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi 2023 Kab Hai) कहा जाता है. इस व्रत को मोक्ष देने वाला माना जाता है. इस व्रत के प्रभाव से आप अपने पूर्वजों के दुखों को खत्म कर सकते हैं. इस बार मोक्षदा एकादशी का व्रत 22 दिसंबर को रखा जाएगा. एकादशी तिथि का प्रारंभ 22 दिसंबर को सुबह 08:16 बजे से लेकर 23 दिसंबर सुबह 07:11 बजे तक है. इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को मोक्षदा एकादशी की कथा जरूर पढ़नी/सुननी चाहिए. ऐसा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, "गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था. उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे. वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था. एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं. उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया. उसने कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है. उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूं. यहां से तुम मुझे मुक्त कराओ. जबसे मैंने ये वचन सुने हैं तबसे मैं बहुत बेचैन हूं. चित्त में बड़ी अशांति हो रही है. मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता. क्या करूं?
राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है. अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए. उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके. एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है. जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते. ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है. आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे.
ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया. उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे. उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे. राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया. मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी. राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है. ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और भूत विचारने लगे. फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है. उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया. उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा.
तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए. मुनि बोले: हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें. इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी. मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया. इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया. इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो. यह कहकर स्वर्ग चले गए."
मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. इस व्रत से बढ़कर मोक्षदायी दूसरा कोई व्रत नहीं है. इसे धनुर्मास की एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन गीता जयंती भी भी मनाई जाती है. जिससे इस एकादशी का महत्व कई गुना और भी बढ़ जाता है. गीता जयंती होने के कारण इस दिन गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें. कोशिश करें कि रोजाना थोड़ी देर गीता पढ़ सकें. ऐसा करने से आपको पुण्य की प्राप्ति हो सकती है.
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