Putrada Ekadashi: पुत्रदा एकादशी व्रत पर करें कथा का पाठ, मोक्ष प्राप्ति के साथ पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं
Paush Putrada Ekadashi: पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
Paush Putrada Ekadashi: हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व माना गया है. पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस बार यह 21 जनवरी 2024 को है. पढ़िए पुत्रदा एकादशी व्रत कथा.
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का राजा था. उसका कोई पुत्र नहीं था, उसकी पत्नी का नाम शैव्या था. पुत्र न होने के कारण हमेशा चिंतित रहा करती थी, राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा, वह भी सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा. बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा. जिस घर में पुत्र न हो उस घर में अँधेरा ही रहता है. इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए.
जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है. उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है, उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं. पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं. राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था. एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया. एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा.
उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं. हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है. इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं. वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया. इसी प्रकार आधा दिन बीत गया. वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों?
राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा. थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा. उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे. उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे. उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे. राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया.
राजा को देखकर मुनियों ने कहा - हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो...राजा ने पूछा - महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं. कृपा करके बताइए...मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं. यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए.
मुनि बोले - हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है. आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा. मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया. इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया. कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ. वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ. श्रीकृष्ण बोले: हे राजन! पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए. जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
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