उत्तराखंड का वो स्थान, जहां रावण ने घनघोर तपस्या कर भगवान शिव को किया था प्रसन्न
Dussehra 2024: 12 अक्टूबर को पूरे देश में दशहरे का पर्व मनाया जा रहा है. ये पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का है. रावण बहुत शक्तिशाली था. वह शिव का बहुत बड़ा भक्त था. सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों के अनुसार रावण ने उत्तराखंड में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए 10 हजार साल तक तपस्या की थी और इस मंदिर में आज भी उसकी निशानियां आज भी मौजदू हैं.
Dussehra 2024
पौराणिक मान्यताओं की मानें तो देवभूमि के पहाड़ों में ही दशानन रावण ने भगवान शिव को नौ शीश समर्पित किए थे. जिस स्थान पर रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया था वह स्थान उत्तराखंड के गोपेश्वर में दशोली गढ़ में है।
रावण की तपस्या
उत्तराखंड के गोपेश्वर स्थित दशोली गढ़ में रावण के तपस्या करने की दंत कथाएं प्रचलित हैं. मान्यता है कि रावण ने करीब दस हजार साल तक तपस्या की थी और जब अपने एक एक कर सिर को महादेव के नाम समर्पित किया था.
रावण भगवान भोलेनाथ का परम भक्त
रावण भगवान भोलेनाथ का परम भक्त था. सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों के अनुसार रावण ने उत्तराखंड में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए 10 हजार साल तक तपस्या की थी और इस मंदिर में आज भी उसकी निशानियां आज भी मौजदू हैं.
रावण से जुड़ी निशानियां
स्कंद पुराण के केदार खंड में भी दसमोलेश्वर के नाम से वैरासकुंड क्षेत्र का उल्लेख मिलता है. यहां रावण से जुड़ी निशानियां आज भी मौजूद है.
वैरासकुंड में किया था रावण ने तप
मान्यता के अनुसार दशोली गढ़ में वैरासकुंड में रावण ने तप किया था और यहीं पर रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप 10 हजार सालों तक तप कर अपने नौ सिरों की आहुति दी थी.
रावण ने तपस्या की थी
वैरासकुंड में जिस स्थान पर रावण ने तपस्या की थी वह कुंडए यज्ञशाला और शिव मंदिर आज भी यहां मौजूद है.
खुदाई में मिलती हैं प्राचीन चीजें
यहां के लोगों के मुताबिक कुछ समय पहले यहां एक खेत में खुदाई की गई थी. जहां से एक और कुंड मिला था. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब भी यहां आस-पास के क्षेत्रों में जब भी खुदाई होती है कुछ न कुछ प्राचीन काल की चीजें मिलती हैं.
रावण शिला और यज्ञ कुंड
यहां रावण शिला और यज्ञ कुंड है, जहां भगवान शिव के साथ रावण की पूजा भी होती है. शिव मंदिर में भगवान शिव का स्वयंभू लिंग भी है.
नौ सिर किए थे कुंड को समर्पित
स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार यहां रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी और इस दौरान अपने नौ सिर यज्ञ कुंड को समर्पित कर दिए थे.
भगवान शिव प्रकट हुए
जैसे ही रावण 10वें सिर की आहूति देने लगा तो भगवान शिव प्रकट हुए और प्रसन्न होकर रावण को मनवांछित वरदान दिया. दस दौरान रावण ने भगवान शिव से इस स्थान पर हमेशा के लिए विराजने का वर मांगा था. तब से इसे भगवान शिव का स्थान माना जाता है.
बैरासकुंड के पास रावण शिला
बैरासकुंड के पास रावण शिला है. जहां रावण की भी पूजा की जाती है. स्थानीय लोगों के मुताबिक दशोली शब्द रावण के 10वें सिर का अपभ्रंश है. इसलिए इस इलाके का नाम दशोली पड़ा. इसके साथ ही दशहरे पर यहां रावण के पुतले का दहन नहीं किेया जाता है.
Disclaimer
यहां दी गई सभी जानकारियां सामान्य जानकारियां, धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं,वास्तुशास्त्र पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता हइसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.