Jitiya Vrat 2024 Katha: संतान की लंबी आयु के लिए कैसे और कब रखें व्रत, पढ़ें जितिया व्रत कथा पूजा और विधि विधान

सनातन धर्म में जितिया व्रत को अहम माना गया है. इस दिन महिलाएं अपनी संतान की उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती है और विधि विधान से पूजा करती है. इस व्रत को लेकर कुछ खास नियम बनाए गए हैं, जिसका पालन सभी के लिए जरूरी है. इस व्रत के लिए कथा भी काफी अहम है. जानिए इसका कथा

पूजा सिंह Tue, 24 Sep 2024-10:54 am,
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Jitiya Vrat 2024 Katha: सनातन धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत को खास महत्व दिया गया है, इसे जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है. इस साल ये व्रत दिन बुधवार 25 सितंबर, 2024 को रखा जाएगा. मान्यता है कि ये व्रत माताएं अपनी संतान की सलामती के लिए रखती हैं.

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स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्त

इस कठिन व्रत का पालन करने से बच्चों को स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्त होती है. इस व्रत में जितिया व्रत कथा का पाठ भी जरूर करना चाहिए. पढ़िए जितिया व्रत की कथा

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जितिया व्रत कथा

पौराणिक कथाओं की मानें तो एक समय की बात है कि गंधर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन अपने परोपकार और पराक्रम के लिए जाने जाते थे. एक बार जीमूतवाहन के पिता उन्हें राजसिंहासन पर बिठाकर वन में तपस्या के लिए चले गए.

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भाइयों को राज्य की जिम्मेदारी सौंपी

राजसिंहासन पर बैठने के बाद जीमूतवाहन का मन राजपाट में नहीं लगा, जिसके चलते वे अपने भाइयों को राज्य की जिम्मेदारी सौंप कर अपने पिता के पास उनकी सेवा के लिए जा पहुंचे, जहां उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या से हुआ.

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बुजुर्ग महिला से भेंट

पौराणिक कथा के मुताबिक, जब एक दिन भ्रमण करते हुए उनकी भेंट एक बुजुर्ग महिला से हुई, जो नागवंश से थी. वह बहुत ज्यादा दुखी और डरी हुई थी. उसकी ऐसी हालत देखकर जीमूतवाहन ने उनका हाल पूछा.

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पक्षीराज गरुड़ को वचन

हाल पूछे जाने पर उस बुजुर्ग महिला ने कहा कि नागों ने पक्षीराज गरुड़ को यह वचन दिया है कि वे हर दिन एक नाग को उनके आहार के रूप में उन्हें देंगे. उस स्त्री ने रोते हुए बताया कि उसका एक बेटा है, जिसका नाम शंखचूड़ है. आज उसे पक्षीराज गरुड़ के पास आहार के रूप में जाना है.

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दबोच कर ले गए गरुड़

जैसे जीमूतवाहन ने वृद्धा की हालत देखी उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वो उसके बेटे के प्राणों की रक्षा जरूर करेंगे. अपने कहे हुए वचनों के मुताबिक, जीमूतवाहन पक्षीराज गरुड़ के समक्ष गए और गरुड़ उन्हें अपने पंजों में दबोच कर साथ ले गए.

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जीमूतवाहन को प्राणदान

उस दौरान उन्होंने जीमूतवाहन के कराहने की आवाज सुनी और वे एक पहाड़ पर रुक गए, जहां जीमूतवाहन ने उन्हें पूरी घटना बताई. तब पक्षीराज उनके साहस और परोपकार को देखकर दंग रह गए और प्रसन्न होकर उन्होंने जीमूतवाहन को प्राणदान दे दिया.

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क्यों जरूरी है कथा?

उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि वे अब किसी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे. तभी से संतान की सुरक्षा और उन्नति के लिए जीमूतवाहन की पूजा का विधान है, जिसे लोग आज जितिया व्रत के नाम से भी जानते हैं. मान्यता है कि इस कथा के बिना जितिया व्रत अधूरा होता है, इसलिए इसका पाठ जरूरी है.

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Disclaimer: यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.

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