स्वर्ग लोक से आकर राधा ने धरती पर झेला कृष्ण से वियोग, जानें क्या था वो श्राप
जब भी प्रेम का जिक्र होता है तो राधा-कृष्ण के प्रेम का उदाहरण दिया जाता है.जब भी प्रेम का जिक्र होता है तो राधा-कृष्ण के प्रेम का उदाहरण दिया जाता है.
राधा अष्टमी का पर्व
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के 15 दिन बाद देवी राधा का जन्मदिन राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है, जो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है.
व्रत और पूजा-अर्चना
इस दिन भक्तजन व्रत रखते हैं और घरों और मंदिरों में श्रीकृष्ण और राधा जी की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. इस साल राधा अष्टमी 11 सितंबर को मनाई जा रही है.
राधा जी की जन्म कथा
देवी राधा का जन्म और श्रीकृष्ण के साथ उनकी प्रेम कहानी बहुत ही रोचक है, जो भक्तों के बीच विशेष रूप से प्रसिद्ध है.
स्वर्गलोक की कथा
एक दिन देवी राधा स्वर्गलोक से बाहर चली गईं, और श्रीकृष्ण अपनी सखी विरजा के साथ उद्यान में घूमने लगे. राधा के वापस आने पर उन्हें देखकर वह क्रोधित हो गईं.
विरजा का अपमान
क्रोध में देवी राधा ने विरजा को अपमानित किया, जिसके परिणामस्वरूप विरजा एक नदी के रूप में परिवर्तित हो गईं. यह देखकर सुदामा ने राधा को अनुचित बताया.
श्राप की घटना
राधा के व्यवहार से क्रोधित होकर सुदामा ने उन्हें श्राप दे दिया, जिसके फलस्वरूप राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा और श्रीकृष्ण का वियोग सहना पड़ा.
सुदामा का दानव योनि में जन्म
राधा के श्राप के कारण सुदामा ने शंखचूड़ दानव के रूप में जन्म लिया, जिसका अंत भगवान शिव के हाथों हुआ था.
राधा के अवतार की कथा
कुछ पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि द्वापर युग में भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार के समय, माता लक्ष्मी ने राधा के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया.
राधा अष्टमी व्रत का महत्व
इस दिन भक्तजन देवी राधा के नाम का व्रत रखते हैं, जिसे हिन्दू धर्म में विशेष महत्व प्राप्त है. ऐसा माना जाता है कि सच्ची श्रद्धा से व्रत रखने वाले भक्तों की आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं.
कृपा प्राप्ति का उपाय
शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तों को देवी राधा के नाम का जाप करना आवश्यक है, जो उन्हें भवसागर पार करने में मदद करता है.