Mendhak Shiv Mandir: यूपी का इकलौता मंदिर जहां मेंढक की पीठ पर विराजमान हैं भगवान शिव, जानें खड़े नंदी की कहानी

Mendhak Mandir: हमारे देश में ऐसे कई मंदिर हैं, जो अपने आप में काफी अनोखे हैं. यूपी में कई मंदिर ऐसे हैं जिनके बारे में सुनकर दंग रह जाएंगे. मंदिरों में अलग-अलग देवताओं की पूजा के बारे में आपने खूब सुना होगा, लेकिन क्या आपने कभी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है, जहां मेंढक की पूजा होती है?

प्रीति चौहान Jul 26, 2024, 12:03 PM IST
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भारत का एकमात्र मंदिर

भारत अद्भुत संस्कृति से भरा हुआ है. यहां आपको हजारों रंग देखने को मिल जाएंगे. इन्ही रंगों में आपको कई अजीबोगरीब मंदिर भी हैं, जिनके बारे में पढ़कर या देखकर आप हैरान हो जाएंगे. उत्तर प्रदेश के लखीमपुर ज‍िले के ओयल में भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भोलेनाथ मेंढक पर विराजमान हैं.

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मेंढक पर विराजे महादेव

यहां प्रदेश ही नहीं दूर-दराज से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.  मंदिर की खास बात है कि यह 'मांडूक तंत्र' (Manduk Tantra) पर आधारित है.  मेंढक पर विराजे महादेव का देश में यह इकलौता पूजा स्थल है.

 

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मेंढ़क मंदिर से जुड़ी मान्यताएं

 मेंढक मंदिर से जुड़ी मान्यता के अनुसार सूखे और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए इस धार्मिक स्थल का निर्माण हुआ था.  मेंढक मंदिर में दिवाली और महाशिवरात्रि, सावन के अवसर पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.

 

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ऐसा है मंदिर

मंदिर की दीवारों पर तांत्रिक देवी-देवताओं के मूर्तियां लगी हुई हैं.  मंदिर के अंदर भी कई विचित्र चित्र भी लगे हुए हैं, जो मंदिर को शानदार रूप देते हैं. इस मंदिर के सामने ही मेंढक की मूर्ति है और पीछे भगवान शिव का पवित्र स्थल है. 

 

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नंदी की प्रतिमा खड़ी मुद्रा में

आम तौर से शिव मंदिरों में भगवान भोलेनाथ के वाहन नंदी की मूर्ति बैठी मुद्रा में होती है लेकिन मेंढक शिव मंदिर में नंदी की प्रतिमा खड़ी मुद्रा में स्थापित है. बताया जाता है कि ओयल का मेंढक शिव मंदिर एकलौता ऐसा शिव मंदिर है, जहां नंदी खड़ी मुद्रा में स्थापित हैं.

 

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क्या है इतिहास ?

ऐसा कहा जाता है कि यहां के शासक भगवान शिव के बड़े उपासक थे.  इसीलिए कस्बे के बीच में मंडूक तंत्र पर आधारित शिव मंदिर की स्थापना की थी.

 

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ओयल साम्राज्य ने करवाया था स्थापित

यूपी के लखीमपुर खीरी जिला स्थित यह क्षेत्र 11वीं सदी से 19वीं सदी तक चाहमान शासकों (Chahamana Dynasty) के अधीन था.  चाहमान वंश के राजा बख्श सिंह ने करीब 200 साल पहले इस मंदिर का निर्माण कराया था.

 

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तंत्रवाद पर आधारित है मंदिर

इतिहासकार बताते हैं कि, इस मंदिर की वास्तु परिकल्पना कपिला के एक महान तांत्रिक ने की थी. इसलिए मेंढक मंदिर की वास्तु संरचना तंत्रवाद पर आधारित है. इस मंदिर की अपनी विशेष शैली के कारण लोगों को आकर्षित करती है.  इस मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में खुलता है, जबकि दूसरा द्वार दक्षिण में।

 

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बदलता है शिवलिंग का रंग

यहां का शिवलिंग रंग बदलता है. भगवान शिव के भक्त अपने आराध्य से जुड़े इस अजूबे को देखने आते हैं. शिवलिंग पर अर्पित किया जाने वाला जल नलिकाओं के जरिए मेंढक के मुंह से निकलता है. सावन के महीने में श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ती है.

 

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मेंढक मंदिर की वास्तु संरचना

मेंढक मंदिर की वास्तु संरचना अपने आप में विशिष्ट है. विशेष शैली के कारण लोकप्रिय है. मेंढक की पीठ पर तकरीबन 100 फीट का ये मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए विख्यात है.  उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि भारत में बने अन्य शिव मंदिरों में यह सबसे अलग है.

 

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हर मनोकामना होती है पूरी

ऐसी मान्यता है कि मेंढक मंदिर में पूजा करने पर हर किसी की मनोकामना पूरी होती है और विशेष फलों की प्राप्ति होती है. 

 

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कैसे पुहंचे

मेंढक मंदिर यूपी की राजधानी लखनऊ से 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. मंदिर के लिए पहले लखीमपुर आना होगा.  लखीमपुर से ओयल महज 11 किलोमीटर दूर है.  लखीमपुर पहुंचकर आप बस या टैक्सी के जरिए ओयल जा सकते हैं.  यदि, आप हवाई यात्रा कर या ट्रेन से आना चाहते हैं तो यहां से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन लखनऊ है.

 

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Disclaimer

यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.

 

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