Shri Kuber Chalisa: हिंदू धर्म में कुबेर देव को धन का देवता (Kuber Dev Khush Karne Ke Upay) कहा गया है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, उन्हें धन के देवता का वरदान भोलेनाथ से मिला है. माना जाता है कि कुबेर देव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में धन-दौलत से जुड़ी कोई परेशानी नहीं आती है. धनतेरस और दीपावाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ श्री कुबेर जी की भी पूजा की जाती है. उनके आशीर्वाद से धन-सम्पति (Dhan Prapti Upay) और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है. ऐसे में अगर आप भी आर्थिक तंगी से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो हर शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ कुबेर देव की भी अराधना करें. श्री कुबेर के प्रति भक्ति दिखाने के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए चालीसा का पाठ करें. 


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कुबेर चालीसा के पाठ से होता है चमत्कारी लाभ (Kuber Dev Ko Khush Karne Ke Upay)
श्री कुबेर चालीसा का पाठ करना शुभ फलदायक होता है. यूं तो आप किसी भी दिन इसका पाठ कर सकते हैं, लेकिन शुक्रवार को इसका विशेष लाभ मिलता है. शुक्रवार को प्रातः काल या संध्या काल में श्री कुबेर चालीसा का पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ कर सकते हैं. कुबेर चालीसा का पाठ करने से साधक को धन एवं वैभव की प्राप्ति होती है. आर्थिक समस्याओं जैसे कर्ज चुकाने में मदद मिलती है. अच्छे निवेश निर्णय लेने और नुकसान से बचने की बुद्धि प्रदान होती है. 


॥ दोहा ॥
जैसे अटल हिमालय, और जैसे अडिग सुमेर ।
ऐसे ही स्वर्ग द्वार पै, अविचल खड़े कुबेर ॥
विघ्न हरण मंगल करण, सुनो शरणागत की टेर ।
भक्त हेतु वितरण करो, धन माया के ढ़ेर ॥


॥ चौपाई ॥
जय जय जय श्री कुबेर भण्डारी । धन माया के तुम अधिकारी ॥१॥
तप तेज पुंज निर्भय भय हारी । पवन वेग सम सम तनु बलधारी ॥२॥
स्वर्ग द्वार की करें पहरे दारी । सेवक इन्द्र देव के आज्ञाकारी ॥३॥
यक्ष यक्षणी की है सेना भारी । सेनापति बने युद्ध में धनुधारी ॥४॥


महा योद्धा बन शस्त्र धारैं । युद्ध करैं शत्रु को मारैं ॥५॥
सदा विजयी कभी ना हारैं । भगत जनों के संकट टारैं ॥६॥
प्रपितामह हैं स्वयं विधाता । पुलिस्ता वंश के जन्म विख्याता ॥७॥
विश्रवा पिता इडविडा जी माता । विभीषण भगत आपके भ्राता ॥८॥


शिव चरणों में जब ध्यान लगाया । घोर तपस्या करी तन को सुखाया ॥९॥
शिव वरदान मिले देवत्य पाया । अमृत पान करी अमर हुई काया ॥१०॥
धर्म ध्वजा सदा लिए हाथ में । देवी देवता सब फिरैं साथ में ॥११॥
पीताम्बर वस्त्र पहने गात में । बल शक्ति पूरी यक्ष जात में ॥१२॥


स्वर्ण सिंहासन आप विराजैं । त्रिशूल गदा हाथ में साजैं ॥१३॥
शंख मृदंग नगारे बाजैं । गंधर्व राग मधुर स्वर गाजैं ॥१४॥
चौंसठ योगनी मंगल गावैं । ऋद्धि सिद्धि नित भोग लगावैं ॥१५॥
दास दासनी सिर छत्र फिरावैं । यक्ष यक्षणी मिल चंवर ढूलावैं ॥१६॥


ऋषियों में जैसे परशुराम बली हैं । देवन्ह में जैसे हनुमान बली हैं ॥१७॥
पुरुषों में जैसे भीम बली हैं । यक्षों में ऐसे ही कुबेर बली हैं ॥१८॥
भगतों में जैसे प्रहलाद बड़े हैं । पक्षियों में जैसे गरुड़ बड़े हैं ॥१९॥
नागों में जैसे शेष बड़े हैं । वैसे ही भगत कुबेर बड़े हैं ॥२०॥


कांधे धनुष हाथ में भाला । गले फूलों की पहनी माला ॥२१॥
स्वर्ण मुकुट अरु देह विशाला । दूर दूर तक होए उजाला ॥२२॥
कुबेर देव को जो मन में धारे । सदा विजय हो कभी न हारे ॥२३॥
बिगड़े काम बन जाएं सारे । अन्न धन के रहें भरे भण्डारे ॥२४॥


कुबेर गरीब को आप उभारैं । कुबेर कर्ज को शीघ्र उतारैं ॥२५॥
कुबेर भगत के संकट टारैं । कुबेर शत्रु को क्षण में मारैं ॥२६॥
शीघ्र धनी जो होना चाहे । क्युं नहीं यक्ष कुबेर मनाएं ॥२७॥
यह पाठ जो पढ़े पढ़ाएं । दिन दुगना व्यापार बढ़ाएं ॥२८॥


भूत प्रेत को कुबेर भगावैं । अड़े काम को कुबेर बनावैं ॥२९॥
रोग शोक को कुबेर नशावैं । कलंक कोढ़ को कुबेर हटावैं ॥३०॥
कुबेर चढ़े को और चढ़ादे । कुबेर गिरे को पुन: उठा दे ॥३१॥
कुबेर भाग्य को तुरंत जगा दे । कुबेर भूले को राह बता दे ॥३२॥


प्यासे की प्यास कुबेर बुझा दे । भूखे की भूख कुबेर मिटा दे ॥३३॥
रोगी का रोग कुबेर घटा दे । दुखिया का दुख कुबेर छुटा दे ॥३४॥
बांझ की गोद कुबेर भरा दे । कारोबार को कुबेर बढ़ा दे ॥३५॥
कारागार से कुबेर छुड़ा दे । चोर ठगों से कुबेर बचा दे ॥३६॥


कोर्ट केस में कुबेर जितावै । जो कुबेर को मन में ध्यावै ॥३७॥
चुनाव में जीत कुबेर करावैं । मंत्री पद पर कुबेर बिठावैं ॥३८॥
पाठ करे जो नित मन लाई । उसकी कला हो सदा सवाई ॥३९॥
जिसपे प्रसन्न कुबेर की माई । उसका जीवन चले सुखदाई ॥४०॥


जो कुबेर का पाठ करावै । उसका बेड़ा पार लगावै ॥४१॥
उजड़े घर को पुन: बसावै । शत्रु को भी मित्र बनावै ॥४२॥
सहस्त्र पुस्तक जो दान कराई । सब सुख भोग पदार्थ पाई ॥४३॥
प्राण त्याग कर स्वर्ग में जाई । मानस परिवार कुबेर कीर्ति गाई ॥४४॥


॥ दोहा ॥
शिव भक्तों में अग्रणी, श्री यक्षराज कुबेर ।
हृदय में ज्ञान प्रकाश भर, कर दो दूर अंधेर ॥
कर दो दूर अंधेर अब, जरा करो ना देर ।
शरण पड़ा हूं आपकी, दया की दृष्टि फेर ॥
॥ इति श्री कुबेर चालीसा संपूर्णम् ॥


Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है.  सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक पहुंचाई गई हैं. हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है. इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी. ZEE UPUK इसकी जिम्मेदारी नहीं लेगा. 


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