UP: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, `संविधान ने हर नागरिक को बनाया देश का राजा`
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गोरखपुर में आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह को संबोधित करते हुए तिरंगे के रंगों का अर्थ बताया.
गोरखपुर: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर गोरखपुर के सरस्वती शिशु मंदिर में झंडारोहण किया.अपने भाषण के दौरान उन्होंने तिरंगे में केसरिया रंग को श्रेष्ठता का प्रतीक बताया. उन्होंने कहा कि केसरिया त्याग का रंग है. यह रंग हमें भारत को निरंतर प्रकाश में बनाये रखने की प्रेरणा देता रहता है.
तिरंगे के सफेद रंग को उन्होंने शुद्धता, पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक बताया. मोहन भागवत ने कहा कि तिरंगे का सफेद रंग हमें पवित्र भाव से सबके कल्याण की प्रेरणा देता है. राष्ट्रीय ध्वज के हरे रंग को उन्होंने समृद्धि का प्रतीक बताया. आरएसएस प्रमुख ने कहा कि देश हमें बहुत कुछ देता है, लेकिन हम देश को क्या दे सकते हैं इसपर हमें विचार करना चाहिए.
तपस्वी विद्वानों ने दिया संविधान
संघ प्रमुख ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को देश के स्वतंत्र होने के बाद देश के तपस्वी और विद्वान नेताओं ने भारत को उसके अनरूप तंत्र देने के लिए संविधान बनाया. 26 जनवरी 1950 को इसे लागू कर तय कर दिया गया कि भारत चलेगा तो अपने तंत्र से चलेगा.
मोहन भागवत ने कहा, 'बाबा साहब ने संसद में संविधान को रखते समय दो भाषण दिए, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमें किस प्रकार अनुशासन में रहना है. 'आपको बता दें कि आरएसएस प्रमुख पूर्वी उत्तर प्रदेश के संघ कार्यकर्ताओं की बैठक में हिस्सा लेने के लिए गोरखपुर पहुंचे हैं.
तिरंगे के रंगों का बताया अर्थ
संघ प्रमुख ने तिरंगे के तीनों रंगों के बारे में बताते हुए कहा कि राष्ट्रीय ध्वज में निहित रंग ज्ञान, कर्म, भक्ति और कर्तव्य बताने वाले हैं. सबसे ऊपर भगवा रंग त्याग का, बीच का सफेद रंग पवित्रता और हरा रंग मां लक्ष्मी यानी समृद्धि का प्रतीक है. भगवा रंग देखते ही मन में सम्मान पैदा होता है. यह बताता है कि हमारा जीवन स्वार्थ का नहीं परोपकार का है. हमें कमाना है दीन दुखियों, वंचितों को देने के लिए. इतना देना है कि सबकुछ देने के बाद भी देने की इच्छा रह जाये. पवित्रता और शुद्धता जीवन में ज्ञान, धन और बल के सदुपयोग के लिए जरूरी है.
'समृद्धि अहंकार के लिए नहीं'
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि समृद्धि अहंकार के लिए नहीं बल्कि विश्व कल्याण के लिए होनी चाहिए. मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा, 'संविधान ने देश के हर नागरिक को राजा बनाया है. राजा के पास अधिकार हैं, लेकिन अधिकारों के साथ नागरिक अपने कर्तव्य और अनुशासन का भी पालन करें. तभी अपने बलिदान से देश को स्वतंत्र कराने वाले क्रांतिकारियों के सपनों के अनुरूप भारत का निर्माण होगा. ऐसा भारत जो दुनिया और मानवता की भलाई को समर्पित है.'
'भारत बढ़ेगा तो दुनिया बढ़ेगी'
मोहन भागवत ने कहा कि ज्ञान तो रावण के पास भी था लेकिन मन मलिन था. शुद्धता रहेगी तो ज्ञान का प्रयोग विद्यादान, धन का सेवा और बल का दुर्बलों की रक्षा के लिए होगा. हमारा देश त्याग में विश्वास करता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यहां दारिद्रय रहेगा. समृद्धि चाहिए लेकिन हमारी समृद्धि अहंकार के लिए नहीं दुनिया से दुख और दीनता खत्म करने के काम आएगी. इस समृद्धि के लिए परिश्रम करना होगा. जैसे किसान परिश्रम करता है तभी अच्छी फसल पाता है, वैसे ही सब परिश्रम करेंगे तो देश आगे बढ़ेगा. भारत बढ़ेगा तो दुनिया बढ़ेगी.