लखनऊ: शिया धर्मगुरु कल्बे जव्वाद (Kalbe jawad) का मॉब लिंचिंग (Mob lynching) पर भड़काऊ बयान आया है. मौलाना कल्बे जव्वाद (Kalbe jawad) ने आत्मरक्षा के नाम पर लोगों को हथियार खरीदने की नसीहत दी है. उन्होंने कहा कि मॉब लिंचिंग मुसलमानों के एनकाउंटर का नया रूप है. 26 जुलाई को मॉब लिंचिंग से आत्मरक्षा के नाम पर लखनऊ में ट्रेनिंग आयोजित करने की घोषणा की है. जव्वाद ने कहा है कि 26 जुलाई को क़ानूनी तौर पर हथियारों रखने की ट्रेनिंग के लिए कैंप का आयोजन किया जाएगा. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

मॉब लिंचिंग यानी भीड़ तंत्र का कानून, जिसके बारे में सोचकर ही दिल कांप उठता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की हिदायत देते रहे हैं. उत्तर प्रदेश समेत कई राज्य मॉब लिंचिंग के खिलाफ कड़े कानून भी लाने पर विचार कर रहे हैं, लेकिन कानून से अलग जाकर हथियारों से मॉब लिंचिंग का मुकाबला करने के लिए लोगों को सरेआम भड़काने की कोशिश की जा रही है. वह भी संविधान में मिले अधिकारों की दुहाई देकर.


'मॉब लिंचिंग' से बचाएगा 'हथियार'?
मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का सख्त निर्देश है, बावजूद इसके एक-दो घटनाएं समाज को परेशान करती हैं. जब इन घटनाओं को मुद्दा बनाकर सियासत की जाए, तो वे ज्यादा परेशानी का सबब बन सकती हैं.


लाइव टीवी देखें-:


शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद (Kalbe jawad) और सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा जैसे बुद्धजीवी लोगों को हथियार खरीदने की नसीहत दे रहे हैं. इन बुद्धिजीवियों का तर्क है कि संविधान ही नहीं मुस्लिम धर्म ग्रंथ भी सेल्फ डिफेंस में हथियार रखने की इजाजत देता है.


मॉब लिंचिंग करने वालों का कोई ईमान धर्म नहीं होता है. मौके का फायदा उठाकर कुछ लोग भीड़ को मरने और मारने के लिए उकसा देते हैं, इनके खिलाफ कानून भी है. कानून अपना काम भी करता है. मॉब लिंचिंग के आरोपियों को सलाखों के पीछे भी भेजता है, लेकिन सवाल ये है कि इस भीड़ के खिलाफ अगर हथियार उठाने की वकालत की जाएगी, तो क्या हम हिंसक समाज की ओर कदम नहीं बढ़ा रहे हैं.


महमूद प्राचा सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते हैं, कानून के अच्छे जानकार हैं, इसलिए कानून के तहत हथियार खरीदने और लाइसेंस लेकर चलने की सलाह दे रहे हैं. 


महमूद प्राचा संविधान के नाम पर हथियार की वकालत कर रहे हैं. इस मुहिम में मुसलमानों के साथ दलितों को भी जुड़ने की अपील कर रहे हैं, हथियार के लिए अगर कीमती सामान बेचने की जरूरत हो तो बेच देने की सलाह दे रहे हैं.


वकील महमूद प्राचा कहते हैं कि भीड़ की कोई शक्ल नहीं होती और इसी बात का फायदा हमेशा मॉब लिंचिंग करने वाली भीड़ उठाती है. अब इस उन्मादी भीड़ के खिलाफ हथियार लेकर चलने को उकसाने की क्या ये कोशिश नहीं है. क्या डर इस बात का नहीं है. अगर कानून हर हाथ का खिलौना हो जाएगा तो फिर पुलिस, अदालत और इंसाफ जैसे शब्द के मतलब क्या रह जाएंगे.


मुस्लिमों के साथ दलितों को भड़काकर किस तरह सियासी फायदा उठाने की कोशिश की जा रही है, भीम आर्मी की नसीहत को भी जरूर सुनना चाहिए. कमजोर वर्गों को सुरक्षा के नाम पर कीमती चीजें बेचकर भी हथियार खरीदने की सलाह क्या ठीक है? अपनी सियासत चमकाने के लिए लोगों को सुरक्षा के नाम हथियार उठाने की नसीहत देना खुद उनकी जिंदगी को खतरे में डालना नहीं है. 


इनपुट: कणिराम यादव, अहमर हुसैन