नई दिल्ली: 21वीं सदी का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण शुक्रवार (27 जुलाई) को पड़ रहा है. ये चंद्र ग्रहण लगभग 1 घंटे 43 मिनट तक रहेगा. ये ग्रहण पूरे भारत में दिखाई देगा और इसे बिना किसी उपकरण के आसानी से देखा जा सकेगा. इस पर दुनियाभर की निगाहें टिकी हैं. भारत में पूर्ण चंद्रग्रहण दिखाई देगा. देशभर के कई इलाके में पूर्ण चंद्रग्रहण को देखने के लिए कई तरह के इंतजाम किए गए हैं. बताया जा रहा है कि भारत में चंद्रग्रहण का असर देर रात 11 बजकर 54 मिनट 02 दो सेकेंड पर होगी. चंद्र ग्रहण 28 जुलाई को सुबह 3:49 बजे समाप्त होगा. इस चंद्र ग्रहण में चंद्रमा लाल रंग का दिखेगा, जिसे ब्लड मून भी कहा जाता है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

भारत में देर रात से चंद्रग्रहण का असर दिखना शुरू हो जाएगा. धीरे-धीरे चांद का रंग लाल होता जाएगा और एक समय ऐसा आएगा जब चांद पूरी तरह से गायब हो जाएगा. भारतीय समय अनुसार, देर रात 1 बजकर 51 मिनट पर चंद्रग्रहण अपने सर्वोच्च स्तर पर होगा, ये ही पूर्ण चंद्रग्रहण होगा. धीरे-धीरे ग्रहण का असर कम होगा. शानिवार सुबह 4 बजे के पास इसका अरस खत्म होगा.


ये भी पढ़ें:  27 जुलाई को लग रहा है सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण, जानिए क्या होगा इसका असर


चंद्रग्रहण के कारण ही देशभर के कई बड़े मंदिर दोपहर बाद ही बंद हो जाएंगे. मंदिरों में दिन में ही पूजा अर्चना की जाएगी. जानकारी के मुताबिक, हरिद्वार, वाराणसी और इलाहाबाद में हर शाम होने वाली गंगा आरती भी दोपहर को होगी. चंद्रग्रहण के कारण ही दोपहर एक बजे गंगा आरती का विशेष आयोजन किया जाएगा. देश के कई बड़े मंदिरों में दोपहर दो बजे के बाद दर्शन नहीं हो पाएंगे. 


चंद्रग्रहण के कारण बदरीनाथ और केदारनाथ मन्दिर के कपाट शुक्रवार दोपहर से शनिवार (28 जुलाई) सुबह तक बन्द रहेंगे. चंद्र ग्रहण के सूतक काल से पहलेही दोनों मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाएंगे. दूसरे दिन यानि शनिवार सुबह ग्रहण समाप्त होने के बाद नियमित पूजा अर्चना के लिए उन्हें फिर से खोल दिए जाएंगे.


ये भी पढ़ें:  चंद्र ग्रहण: 27 जुलाई को पड़ रहा है सदी का सबसे लंबा ग्रहण, जानें क्या कहता है साइंस


हिंदू धर्म में ग्रहण को लेकर कई तरह की पौराणिक मान्यताएं हैं. चंद्र ग्रहण के पीछे भी एक कहानी प्रचलित है. कहा जाता है कि एक बार राहु और देवताओं के बीच लड़ाई हो रही थी. देवता और राक्षस दोनों ही अमरता का वरदान प्राप्त करना चाहते थे और अमृत को प्राप्त करना चाहते थे. तभी विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण करके राहु को मोहित कर लिया और उससे अमृत हासिल कर लिया. राहु ने भी अमृत पाने के लिए देवताओं की चाल चलने की सोची. उसने देवता का भेष धारण किया और अमृत बंटने की पंक्ति में अपनी बारी का इंतजार करने लगा. लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया. विष्णु भगवान ने राहु का सिर काट दिया और वह दो ग्रहों में विभक्त हो गया- राहु और केतु. सूर्य और चंद्रमा से बदला लेने के लिए राहु ने दोनों पर अपना छाया छोड़ दी जिसे हम सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के नाम से जानते हैं. इसीलिए ग्रहण काल को अशुभ और नकारात्मक शक्तियों के प्रभावी होने का समय माना जाता है. 


ज्योतिष के अनुसार ग्रहण का असर हर जीव पर पड़ता है इसलिए इस दौरान ज्यादा शारीरिक-मानसिक कार्यों से बचने सलाह दी जाती है. सनातनी परम्परा में देवदर्शन और यज्ञादि कर्म निषेध रखे जाते हैं. इसी के साथ इस दौरान भजन कीर्तन करने की सलाह दी जाती है. सूतक के समय भोजन आदि ग्रहण नहीं करना चाहिए और जल का भी सेवन नहीं करना चाहिए. ग्रहण से पहले ही खाने-पीने की चीजों में तुलसी के कुछ पत्ते डाल देने चाहिए. ग्रहण के बाद पानी को बदल लेना चाहिए.