नई दिल्ली: आज के समय में कोई भी फिल्म बिना महिलाओं के अधूरी मानी जाती है. बात चाहे कैमरे के पीछे की हो या ऑन कैमरा की हो, हर जगह महिलाओं का अहम योगदान है. आज हमारी फिल्म इंडस्ट्रीज़ में ऐसी कई एक्ट्रेसज़ हैं, जो देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा चुकी हैं. क्या आप जानते हैं भारत की पहली फिल्म में कोई भी एक्ट्रेस नहीं थी. ऐसा नहीं था कि उस फिल्म में महिलाओं का रोल नहीं था. दरअसल, उस समय किसी भी महिला का पर्दे पर आना गिरा हुआ काम माना जाता था.


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आपको जानकर हैरानी होगी कि पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र में महिला का किरदार भी पुरुष ने निभाया था. आज इस आर्टिकल में उसी महिला किरदार से जुड़े कुछ किस्से बताने जा रहे हैं, तो आइये जानते हैं...


108 साल पहले रिलीज हुई थी ये फिल्म 
अगर आप सिनेमा लवर हैं, तो धुंडिराज गोविंद फाल्के उर्फ दादासाहेब फाल्के (Dadasaheb Phalke) के नाम से बखूबी वाकिफ होंगे. ये ही वो शख्सियत थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा की नींव रखी. दादासाहेब फाल्के ने 108 साल पहले देश को पहली फिल्म दी थी, जिसका नाम राजा हरिश्चंद्र (Raja Harishchandra) था. 



वेश्याओं ने भी कर दिया था मना 
दादा साहब फाल्के को अपनी पहली फिल्म के लिए हीरो मिल गया था. इस फिल्म में दत्तात्रेय दामोदर दबके ने राजा हरिश्चंद्र का रोल किया. लेकिन हीरोइन के लिए दादा साहब को काफी पापड़ बेलने पड़े. दरअसल, जिस समय यह फिल्म बनी उस दौरान महिलाओं का पर्दे पर आना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था. आपको जानकर हैरानी होगी कि हीरोइन की तलाश में दादा साहब मुंबई की हर गली-कूचे से लेकर रेड लाइट एरिया तक गए, लेकिन उन्हें कोई एक्ट्रेस नहीं मिली. यहां तक की वेश्याओं ने भी फिल्म में काम करने से मना कर दिया था. 



ऐसे मिली दादा साहब फाल्के को उनकी फिल्म की हीरोइन 
एक दिन दादा साहब फाल्के एक ढाबे में चाय-पानी के लिए रुके. जहां एक वेटर उन्हें चाय देने पहुंचा. दादा को वेटर की उंगलियों और चालढ़ाल में नज़ाकत नजर आई. दादा को लगा कि अगर इस आदमी को महिलाओं के कपड़े पहना दिए जाएं, तो ये बिल्कुल हीरोइन दिखेगा. ये वेटर ही अण्णा सालुंके थे. 



कैमरे पर आने को नहीं हो रहे थे तैयार 
अण्णा को उस ढाबे में काम करने के लिए हर महीने 5 रुपये मिलते थे. इस पर दादा ने पांच रुपये रोज देने का वादा करते हुए अपनी फिल्म की हीरोइन के तौर पर कास्ट कर लिया. हालांकि, इसके बाद भी काफी अड़चने आईं. अण्णा औरत की वेशभूषा में कैमरे के सामने आने को तैयार नहीं थे और ना ही अपनी मूंछों को कटवा रहे थे, लेकिन दादा साहब के मान मनौव्वल के बाद वो राज़ी हो गए. इसके बाद उन्होंने हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती का किरदार निभाया. ऐसे में कहा जा सकता है कि भारतीय सिनेमा में पर्दे पर नजर आने वाली पहली हीरोइन अण्णा सालुंके ही हैं.  



दर्शकों को भी नहीं लग पाया था पता 
3 मई 1913 को राजा हरिश्चंद्र पर्दे पर रिलीज हुई. इस फिल्म ने खूब वाहवाही लूटी. रोचक बात ये है कि जिसने भी इस फिल्म को देखा किसी को शक भी नहीं हुआ कि रानी तारामति का रोल कोई पुरुष अभिनेता निभा रहा है. फिल्म में अण्णा सालुंके के हाव-भाव बिल्कुल लड़कियों की तरह ही थे. यही कारण है कि इसके बाद भी उन्हें एक और फिल्म मिली 'लंका दहन', जो भारत की पहली डबल रोल फिल्म मानी जाती है. इसमें अण्णा ने राम और सीता दोनों का किरदार निभाया था. किसी भारतीय फिल्म में डबल रोल की शुरुआत करने वाले सालुंके पहले भारतीय कलाकार थे.



फिल्म से जुड़े कुछ तथ्य 
1. भारत में बनी पहली फुल लेंथ वाली फीचर फिल्म है. 
2. इस फिल्म का 21 अप्रैल, 1913 को मुंबई के ओलंपिया थिएटर में प्रीमियर हुआ था.
3. यह एक साइलेंट मूवी थी. 
4. दादा साहब फाल्के के छोटे बेटे बालचंद्र डी. फाल्के ने फिल्म में छोटे राजकुमार का रोल प्ले किया और पहले मेल चाइल्ड आर्टिस्ट बने. 


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