विशांत श्रीवास्तव/वाराणसी: वैक्सीन के 'मिक्स एंड मैच' डोज से दुनिया भर में टीके की किल्लत खत्म हो सकती है. इसी के साथ बेहतर एंटीबॉडी विकसित होने की बात भी कही जा रही है. कई यूरोपीय देशों ने तो इसकी शुरुआत भी कर दी है. हांलाकि, भारत में इसे अभी तक मंजूरी नहीं मिली है. जर्नल लैंसेट में स्पेनिश वैज्ञानिकों की रिसर्च पब्लिश होने के बाद से ही मिक्स एंड मैच की बात उठने लगी. इसका अर्थ है कि वैक्सीन के दोनों डोज दो अलग-अलग कंपनियों की हों. यानी, मान लीजिए पहली डोज कोवैक्सीन की ली गई हो, तो दूसरी कोविशील्ड की ली जाए. 


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मिक्स एंड मैच में ज्यादा बनीं एंटीबॉडी
स्पेन ने स्टडी में पाया है कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की पहली खुराक के बाद फाइजर की डोज ली गई. इसके 14 दिन बाद लोगों में एंटीबॉडी का स्तर उनके मुकाबले ज्यादा पाया गया जिन्होंने दोनों खुराक एस्ट्राजेनेका की ही ली थीं. इन लोगो की एंटीबॉडी का लैब टेस्ट हुआ तो पता लगा कि वे कोरोना वायरस की पहचान कर उसे खत्म करने में ज्यादा सक्षम थे. इस स्टडी के बाद भारत के साइंटिस्ट भी इस एक्सपेरिमेंट में अपना हाथ आजमा सकते हैं.


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BHU के वैज्ञानिकों के मुताबिक-
बीएचयू के जीन वैज्ञानिक ज्ञानेश्वर चौबे का कहना है कि वैक्सीनेशन का यह तरीका अधिक कारगर और दीर्घकालिक माना जा रहा है. बताया जा रहा है कि वैक्सीन सभी वैरिएंट्स पर जब कारगर नहीं है तो ऐसी स्थिति में वैक्सीन के मिक्स एंड मैच डोज कोरोना के नए खतरनाक स्ट्रेन पर भी भारी पड़ सकती है. जल्द से जल्द ट्रायल कर भारत में भी इस वैक्सीनेशन को शुरू किया जाना चाहिए.


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