नई दिल्लीः Manmohan Singh: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को यूपीए सरकार की 'विफलता का स्मारक' कहा था, वह मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल में शुरू की गईं महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक थी और 2020 में कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान यह ग्रामीण श्रमिकों के लिए जीवनरेखा साबित हुई थी.
साल 2005 में हुई थी मनरेगा की शुरुआत
यूपीए सरकार ने तब इसे 'देश के सामने मौजूद गरीबी की चुनौती को समाप्त करने की दिशा में हमारे इतिहास का महत्वपूर्ण पड़ाव' कहा था. कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) ने भी 'काम के अधिकार' पर आधारित मनरेगा को आकार देने में अहम भूमिका निभाई थी.
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार जब 2014 में आई थी तो उसने ग्रामीण रोजगार गारंटी की इस योजना की आलोचना की थी. मोदी ने 2015 में लोकसभा में कहा था कि मनरेगा को समाप्त नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि 60 साल में गरीबी को समाप्त करने में कांग्रेस की विफलता का यह 'जीता-जागता स्मारक' है.
इन सुधारों दिखाया अपना महत्वः निखिल डे
पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि देते हुए कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा, 'मनमोहन सिंह को ऐसा व्यक्ति माना जाता है जिसने 1990 के दशक की शुरुआत में भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की. उनके नेतृत्व वाली संप्रग सरकार 2004 में भारत के मतदाताओं के इस संदेश के साथ सत्ता में आई कि बड़ी संख्या में लोगों के लिए भारत चमक नहीं रहा है और बाजार ने उन्हें आर्थिक विकास का लाभ नहीं पहुंचाया है.'
उन्होंने कहा कि यूपीए शासन के दौरान किए गए सुधारों ने 'बाद की सरकारों' की शत्रुता को झेला है और विशेष रूप से आर्थिक मंदी के दौर में, जिसमें कोविड भी शामिल है, इन सुधारों ने अपना महत्व दिखाया है.
'कैबिनेट में भी हुआ था इनका विरोध'
डे ने कहा, 'जबकि उनके मंत्रिमंडल में भी कई लोगों ने इन उपायों की आलोचना की और इनका विरोध किया, यह स्पष्ट था कि डॉ. मनमोहन सिंह ने खुद महसूस किया था कि वितरणात्मक विकास के लिए बाजार पर भरोसा नहीं किया जा सकता है और भारत में गरीबी, कुपोषण और अभाव को दूर करने के लिए आम लोगों को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना होगा.'
कोविड के समय जीवनरेखा बनी मनरेगा
साल 2020 में जब कोविड-19 महामारी के कारण लॉकडाउन लागू किया गया था, तब मनरेगा कई लोगों के लिए जीवन रेखा साबित हुई थी, जिससे गांवों की ओर बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो गया था.
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा मनरेगा और सहयोगात्मक अनुसंधान और प्रसार (सीओआरडी) पर नागरिक समाज संगठनों के राष्ट्रीय संघ के साथ साझेदारी में किए गए 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, इस योजना ने सबसे कमजोर परिवारों के लिए लॉकडाउन के कारण हुई आय हानि के 20 प्रतिशत से 80 प्रतिशत के बीच की भरपाई करने में मदद की.
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