जितेन्द्र सोनी/जालौन: आज फूलन देवी का जन्मदिन है. वही फूलन जिसे बैंडिट क्वीन के नाम से जाना जाता है. गांव की पगडंडियों पर बेखौफ घूमने वाली फूलन को नहीं पता था कि उसके जीवन में वो पल भी आएगा जब उसके हाथ में बंदूक होगी. किसी की नजर में वह जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने वाली महिला है तो किसी की नजर में नरसंहार करने वाली डकैत. 


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जालौन में हुआ था फूलन का जन्म
बता दें कि 10 अगस्त 1963 को जालौन जिले के शेखपुर गुढा गांव में फूलन का जन्म हुआ था. फूलन बचपन से ही बेहद गुस्सैल स्वभाव की थी. अपने मां-बाप के 6 बच्चों में फूलन दूसरे नंबर पर थी. इस वजह से पिता को चिंता भी जायज थी. पिता देवी दीन ने 11 साल की उम्र में अधेड़ पुत्तीलाल मल्लाह से फूलन शादी तय कर दी.


ऐसे पड़ी फूलन से बैंडिट क्वीन बनने की नींव
पुत्तीलाल मल्लाह फूलन से तीन गुना उम्र में बड़ा था. इस शादी का फूलन ने विरोध करना चाहा लेकिन परिवार की खुशियों के आगे फूलन को समझौता करना पड़ा. आखिरकार अपना नसीब मानकर फूलन देवी ने शादी को स्वीकार कर लिया. लेकिन ससुराल पक्ष से उसे निराशा हाथ लगी. तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए फूलन जिंदगी के पड़ाव में आगे बढ़ी तो 20 साल की उम्र में फूलन को अगवा कर उसका बलात्कार किया गया और फिर यहां से फूलन से बैंडिट क्वीन बनने का सफर शुरू हुआ.


20 की उम्र में फूलन ने उठा लिए हथियार
करीब 20 साल की उम्र में अपने एक रिश्तेदार की मदद से फूलन डाकुओं की गैंग में शामिल हो गई. डाकुओं के गिरोह में आने पर भी फूलन देवी की मुसीबतें कम नहीं हुईं. गिरोह के सरदार बाबू गुर्जर फूलन को पाने को बेताब था. अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए फूलन देवी को हासिल करने की कोशिश में लगा रहा. लेकिन जब उसे सफलता नहीं मिली तो उसने फूलन के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की.


गैंग के सदस्य विक्रम मल्लाह ने सरदार बाबू गुर्जर को रोकने का प्रयास किया, नहीं माना तो विक्रम मल्लाह ने बाबू गुर्जर की हत्या कर दी. बाबू गुर्जर की मौत के बाद विक्रम मल्लाह गैंग का सरदार बन गया. विक्रम मल्लाह की गैंग में दो सगे भाई श्री राम और लाला राम ठाकुर शामिल हुए थे. फिर बाद में विक्रम मल्लाह की उन्होंने हत्या कर दी और फूलन देवी को अपने गांव बेहमई ले गए. बेहमई लाकर फूलन देवी के साथ बंद कमरे में गैंगरेप किया. गैंगरेप का पता चलने पर पुराने साथी छिपते हुए बेहमई पहुंचे और फूलन देवी को वहां से आजाद करा लाए. 


भूख-प्यास से तड़पी फूलन,कई बार जिस्म को नोचा गया
बेहमई गांव में फूलन को एक कमरे में भूखे प्यासे बंद कर दिया गया था और वहां मौजूद सभी ने बारी-बारी से उसके जिस्म को जानवरों की तरह नोचा. फूलन ने इतना दर्द सहा कि शायद कोई औरत होती तो वह टूट कर बिखर जाती या फिर जीते जी समाज उसे मार देता, लेकिन किस्मत ने उसके लिए कुछ और ही चुना था. बेहमई से निकलने के कुछ दिन बाद ही फूलन ने अपने साथी मान सिंह मल्लाह की सहायता से अपने पुराने मल्लाह साथियों को इकट्ठा कर गैंग बनाया और गिरोह की सरदार बन बैठी.


प्रतिशोध की आग में, फूलन ने सामूहिक हत्याकांड को दिया अंजाम
14 फरवरी 1981 को फूलन देवी पुलिस की वर्दी में बेहमई गांव पहुंची. गांव में शादी समारोह माहौल था. फूलन देवी की गिरोह ने गांव को घेर कर ठाकुर जाति के 21 लोगों को लाइन में खड़ा कर दिया. लाइन में फूलन देवी के साथ गैंगरेप करने वाले नहीं थे. उसने सभी से लालाराम खान के बारे में पूछा जवाब नहीं मिलने पर लाइन में खड़े 21 लोगों की हत्या करने का गैंग को आदेश दे दिया. 


बैंडिट क्वीन से जाना जाने लगा बीहड़
गैंग की फायरिंग में ठाकुर जाति के 21 लोगों की मौत हो गई. 21 लोगों को मौत के घाट उतारकर फूलन देवी ने गैंगरेप का बदला लिया और इस हत्याकांड के बाद बीहड़ों में फूलन को बैंडिट क्वीन के नाम से जाना जाने लगा. कुछ वर्षों बाद फूलन ने अपनी शर्तों पर साथियों के साथ सरेंडर कर दिया और हथियार डाल दिए.