इगलास की मशहूर `चमचम` के स्वाद के आगे फीके सब पकवान, आजादी से पहले शुरू हुई थी दुकान
चमचम के बारे में अगर कोई नहीं जानता हो तो इसे गुलाब जामुन ही समझेंगे. इसका रंग रूप काफी हद तक गुलाब जामुन से मिलता है. आसपास के इलाकों में चमचम का काफी क्रेज है.
Taste of UP: आज हम बात करेंगे इगलास की मशहूर मिठाई चमचम की. है न मजेदार नाम और हां, ये खाने में भी उतनी ही मजेदार है. चमचम मिठाई, अलीगढ़ की तहसील इगलास में बनाई जाती है. दूध के छैना से बनने वाली ये मिठाई इतनी स्वादिष्ट होती है कि जो इसे एक बार खा ले वह दोबारा जरूर खाना चाहेगा. इगलास की 'चमचम' मिठाई यहां की सुप्रसिद्ध मिठाई है. खास बात है कि ये चमचम सिर्फ यहीं बनती है.
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दूध से तैयार होती है चमचम
चमचम दूध से बनने वाली यहां की प्रसिद्ध मिठाई है. वैसे तो यह इगलास के अलावा ये मिठाई कहीं नहीं बिकती, अगर कहीं बिकती भी है तो इगलास की मशहूर चमचम कहकर ही बेचा जाता है. जब भी कोई इधर से होकर गुजरता है तो यहां से चमचम खरीदना नहीं भूलता. यूपी से सटे अन्य प्रदेशों में भी इगलास की चमचम काफी फेमस है. अब बात करते हैं इसके इतिहास की किसने और कब ये मिठाई बनानी शुरू की....
चमचम का इतिहास
रघुवरदयाल ने किया था आविष्कार
साल 1944 में चमचम मिठाई बनाने की शुरुआत यहां के प्रसिद्ध हलवाई स्व. लाला रघुवरदयाल उर्फ रग्घा सेठ ने की थी. उस समय सारा काम हाथ से किया जाता था. उनकी मिठाई इतनी मशहूर हो गई कि कई ब्रांच खुल गईं. उनकी दुकान की चमचम की ख्याति आज भी दूर-दूर तक फैली हुई है. अब यह दुकान उनके बेटे चला रहे हैं.
चमचम बनाने के लिए दूध को फाड़कर पहले छैना तैयार किया जाता है. फिर इसे सीधे चीनी की चासनी में पकाया जाता है. बता दें कि चमचम में घी या रिफाइंड का इस्तेमाल नहीं होता है. चमचम की बिक्री पूरे साल होती है पर दीवाली पर इसकी डिमांड बढ़ जाती है. मथुरा-वृंदावन आने वाले भक्तगण भी चममच के स्वाद के लिए इगलास तक चले आते हैं.
काले गुलाब जामुन की तरह दिखती है चमचम
चमचम अगर कोई नहीं जानता हो तो इसे गुलाबजामुन ही समझेंगे. इसका रंग रूप काफी हद तक गुलाब जामुन से मिलता है. आसपास के इलाकों में चमचम का काफी क्रेज है. ये बहुत महंगी भी नहीं होती है. चमचम 180 रुपये से 220 रुपये प्रतिकिलो के आसपास मिलती है.
इगलास अलीगढ़ जिले की तहसीलों में से एक
इगलास अलीगढ़ शहर से 24 किमी की दूरी पर अलीगढ़-मथुरा रोड के साथ स्थित है. यह अलीगढ़ जिले की तहसीलों में से एक है. नगर क्षेत्र करबन नदी (मथुरा की ओर) से पुरानी नहर (अलीगढ़ की ओर) तक फैला हुआ है. इगलास खैर शहर से 28 किमी और हाथरस शहर से 16 किमी दूर है. यह सासनी से 14 किमी और मथुरा शहर से 40 किमी दूर, भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है.
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