Holika Dahan 2023: UP के इस गांव में नहीं होता होलिका दहन, महिलाएं दूसरे गांव जाकर करती हैं पूजन
Holika Dahan 2023: सहारनपुर के बरसी गांव में होलिका दहन नहीं होता है. यहां मान्यता है कि होलिका दहन की आग भगवान शिव के पैर जला सकता है. इस गांव की महिलाएं दूसरे गांव में जाकर होलिका दहन की पूजा करती हैं.
Holika Dahan 2023: देशभर में 8 मार्च को होली (Holi 2023) का त्योहार बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाएगा. होली से एक दिन पहले होलिका दहन (Holika Dahan 2023) होता है. इस दिन का हिंदू धर्म में खास महत्व है. जगह-जगह होलिका बनाकर पूजन किया जाता है. मान्यता है कि होलिका पूजन करने से घर में सुख शांति एवं समृद्धि आती है. होलिका दहन कर बुराई का अंत किया जाता है. होली-दिवाली समेत सभी त्योहारों को मनाने की शहरों एवं गांवों में अलग-अलग परंपराएं होती हैं. ऐसी ही एक अनोखी परंपरा सहारनपुर (Saharanpur Holika Dahan) के एक गांव में देखने को मिलती है, जहां होली का त्योहार तो धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन होलिका पूजन और दहन नहीं किया जाता है.
जानें क्या है मान्यता?
सहारनपुर जिले का यह गांव जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर है. इस गांव का नाम बरसी है. स्थानीय लोग होली की पूर्व संध्या पर 'होलिका दहन' की पूजा करने के लिए बगल के गांव में जाते हैं. मान्यता है कि इस गांव में महाभारत कालीन स्वंय-भू शिवलिंग स्थापित है. इस गांव के लोगों की मान्यता है कि होलिका दहन की अग्नि से भोलेनाथ के पांव झुलस जाते हैं. यही वजह है कि महाभारत काल से इस गांव में होलिका दहन नहीं किया जाता है. रीति रिवाज के मुताबिक, गांव की महिलाएं पड़ोस के गांव में होली पूजन करके अपना त्योहार मनाती हैं. ग्रामीण आगे भी इस परंपरा को कायम रखने की बात करते हैं. हालांकि ग्रामीण और गांव के युवा रंग और गुलाल लगाकर होली जरूर खेलते हैं.
बरसी गांव के नाम के पीछे का रोचक है इतिहास
ग्रामीणों ने बताया कि बरसी में महाभारत कालीन सिद्धपीठ शिव मंदिर है, जहां स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है. बताया जाता है कि इस मंदिर को कौरवों ने बनवाया था, लेकिन कुरुक्षेत्र के युद्ध में जाते समय भीम ने इसके मुख्य द्वार में गदा फंसाकर पूर्व से पश्चिम की ओर घुमा दिया था, जिसके चलते यह देश का एक मात्र पश्चिममुखी शिव मंदिर माना जाता है. यह भी मान्यता है कि कुरुक्षेत्र जाते समय भगवान कृष्ण भी इस गांव में रुके थे. उन्होंने इस गांव को ब्रज जैसा बताया था, तभी से इस गांव का नाम बरसी पड़ गया.
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