अरुण सिंह/फर्रुखाबाद: आज भारत में कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है. शहीद वीर सपूतों को याद कर आज 24 साल बाद भी हम भारतीयों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. इस जंग में जीत हासिल करने के दौरान भारत मां ने अपने 527 बेटों को खो दिया. जबकि, 1363 जवान घायल हुए थे. इन रणबांकुरों के शौर्य की कहानियां आज भी हमें गर्व महसूस करवाती हैं. इन वीर जवानों की गौरवगाथा में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के दो सपूत भी शामिल हैं, जो युद्ध के अग्रिम मोर्चे पर दुश्मन से लोहा लेते हुए शहीद हो गए. उनका परिवार आज भी तिरंगे में लिपटे पार्थिव शरीर के घर आने का मंजर याद कर सिहर उठता है. 


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कारगिल के ऐतिहासिक युद्ध के बलिदानी लांस नायक राकेश यादव और अशोक यादव को उनकी जांबाजी और बहादुरी के लिए पूरा देश याद करता है. शहीद नायक राकेश यादव और लांस नायक अशोक यादव के परिवार को सेना की ओर से मिली धनराशि और पेट्रोल पंप ने आर्थिक संबल जरूर दिया, लेकिन उन्हें खोने का दर्द आज भी परिजनों की आंखों में नजर आता है. मासूम बच्चों को पिता का चेहरा तक याद नहीं है. पति को खोकर एक तस्वीर के सहारे बच्चों की परवरिश में जिंदगी काट देने वाली वीर नारियों की सूनी आंखें आज भी देशवासियों का बलिदानियों के प्रति सम्मान और प्रेम देख कृतज्ञता से नम हो जाती हैं. 


पिता की तरह बेटा भी करना चाहता है देश की सेवा
जनपद के गांव नगला जब्ब निवासी शहीद राकेश यादव 18 ग्रिनेडियर ब्रिग्रेड में नायक थे. उनकी पत्नी मिथलेश बताती हैं कि जब 28 मई 1999 को कारगिल की जंग में नायक राकेश यादव जब दुश्मनों से लोहा लेते वीरगति को प्राप्त हुए तब उनका बड़ा बेटा राजन यादव सात वर्ष का था. उनकी इकलौती बेटी प्रियंका चार वर्ष और छोटा बेटा चंदन एक वर्ष का था. अब चंदन अपने पिता की तरह फौज में जाने के लिए सीडीएस एग्जाम तैयारी कर रहा है. वहीं, प्रियंका की शादी हो चुकी है. वह अब सिरसागंज स्थित अपनी ससुराल में है. वहीं बड़ा बेटा पेट्रोल पंप संभाल रहा है. वह बताती हैं कि पति की शहादत के बाद उन्होंने जिंदगी को ही रणभूमि मान लिया. 


बेटे को आर्मी में भेजने का अरमान नहीं हो सका पूरा
13 कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात वीर सपूत लांस नायक अशोक कुमार यादव का जन्म रूप नगर तिलहानी में हुआ था. उन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान 04 सितंबर 1999 को दुश्मन के छक्के छुड़ाते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. उनकी पत्नी हेमलता यादव बताती हैं कि जब अशोक शहीद हुए तब उनका बड़ा बेटा प्रशांत ढाई वर्ष का था. बेटी अंजलि डेढ़ वर्ष की और छोटा बेटा अनिल मात्र दो माह का ही था. अब प्रशांत पेट्रोल पंप का व्यापार संभाल रहा है. बेटी अंजली एमएड कर रही है. जबकि छोटा बेटा  नीट एग्जाम की तैयारी कर रहा है. उन्होंने कहा कि पति की तरह बेटे को भी फौज में भेजने का अरमान था. बड़ा बेटा प्रशांत भर्ती भी हो गया था, लेकिन प्रशिक्षण के दौरान ही चिकित्सीय कारणों से उसे सेना छोड़नी पड़ी. बेटी अंजली ने बताया कि उसे पिता का चेहरा तो याद नहीं, हां तिरंगे में जरूर पिता का अक्स दिखता है. 


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