आगरा: खेरागढ़ विधानसभा क्षेत्र (Kheragarh Vidhansabha seat) तीन ब्लॉकों में बंटा है. खेरागढ़, जगनेर और सैंया. सैयां में त्यागी समाज के चालीस गांव हैं. इस क्षेत्र को त्यागी चालीसी कहते हैं. कोई सा भी चुनाव हो, हर प्रत्याशी चालीसी में अपनी हाजिरी जरूर लगाता है. यही 40 गांव तय करते हैं कि विधानसभा सीट जीतकर कौन राजधानी लखनऊ जाएगा. 


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बीजेपी ने साल 2017 में हुए विधानसभा के चुनावों में कुल 403 सीटों में से 312 सीटें जीती थीं. जबकि सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी को 54 सीटें और बहुजन समाज पार्टी को 19 सीटों पर जीत मिली थी. साल 2017 में उत्तर प्रदेश की 17वीं विधानसभा के लिए 11 फरवरी से 8 मार्च 2017 तक सात चरणों में चुनाव हुए थे.


इस सीट का राजनीतिक मिजाज हमेशा परिवर्तनकारी रहा है. समाजवादी पार्टी को छोड़ दें तो लगभग हर बड़े दल ने इस विधानसभा क्षेत्र में जीत पाई है. कांग्रेस इस सीट से 8 बार जीती है, लेकिन अब बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी यहां मजबूत स्थिति में हैं. खेरागढ़ सीट आगरा जिले में कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, वक्त के साथ राजनीतिक समीकरण काफी बदल चुके हैं. यहां भाजपा और बसपा मजबूत स्थिति में हैं. बसपा इस सीट को लगातार दो बार जीत चुकी है. जबकि भाजपा ने 3 बार जीत हासिल की है. बीजेपी के महेश गोयल यहां से विधायक हैं.


रावत पहले विधायक, जिनके काम आज भी जनता नहीं भूलती 
जगन प्रसाद रावत खेरागढ़ के पहले विधायक थे. उन्होंने विधानसभा क्षेत्र का गजब का विकास किया. इसी के बदौलत वो चार बार चुनाव जीते. इधर मंडलेश्वर सिंह भी चार बार विधायक बने. उनकी छवि क्षेत्र में दबंग गुर्जर नेता के रूप में थी. बात 1977 की है. देश-प्रदेश में जनता पार्टी की लहर थी. तब सीट वीआईपी हो गई थी. जनता पार्टी के बड़े नेता चौधरी चरण सिंह के दामाद गुरुदत्त सिंह सोलंकी को यहां से चुनाव लड़ाया गया. उन्होंने कांग्रेस के बहादुर सिंह बुरी तरह से हराया था.


राम लहर से ही गोयल परिवार खत्म किया था बीजेपी का सूखा
खेरागढ़ विधान सभा सीट बीजेपी का सूखा राम लहर के बाद खत्म हुआ. साल 1991 में उसके प्रत्याशी बाबूलाल गोयल ने जनता दल के मंडलेश्वर सिंह को हराया. बाबूलाल गोयल के परिवार से ही महेश गोयल भाजपा से वर्तमान विधायक हैं.


क्या है जातीय समीकरण
इस सीट पर कुल 3 लाख 75 हजार वोटर्स हैं. इस क्षेत्र में क्षत्रिय (75 हजार), ब्राह्मण (50 हजार) मजबूत स्थिति में हैं. इसके बाद वैश्य (35 हजार), कुशवाहा (35 हजार), जाटव (36 हजार), जाट (26 हजार), मुस्लिम (18 हजार) और गुर्जर (12 हजार) की स्थिति है. इस हिसाब से या तो बीजेपी जीतती है या फिर बसपा का कैंडिडेट. इस बार भी इन्हीं दोनों पार्टियों की स्थिति यहां मजबूत दिख रही है. 


ये रहे हैं विधायक
वर्ष नाम  पार्टी
1952 जगन प्रसाद रावत (कांग्रेस)
1957 कृष्णदत्त पालीवाल (निर्दलीय)
1962 जगन प्रसाद रावत (कांग्रेस)
1967 जगन प्रसाद रावत (कांग्रेस)
1969 जगन प्रसाद रावत (कांग्रेस)
1974 शिव प्रकाश गुप्ता (कांग्रेस-एस)
1977 गुरुदत्त सोलंकी (जनता पार्टी)
1980 मंडलेश्वर सिंह (कांग्रेस)
1985 बहादुर सिंह (कांग्रेस)
1989 मंडलेश्वर सिंह (जनता दल)
1991 बाबूलाल गोयल (भाजपा)
1993 मंडलेश्वर सिंह (कांग्रेस)
1996 मंडलेश्वर सिंह (कांग्रेस)
2002 रमेशकांत लवानियां (भाजपा)
2005 अमर सिंह परमार (रालोद)
2007 भगवान सिंह कुशवाह (बसपा)
2012 भगवान सिंह कुशवाह (बसपा)
2017 महेश गोयल (भाजपा)


पिछले दो चुनावों का गणित क्या था?
सोलहवीं विधानसभा चुनाव यानी साल 2012 में बीएसपी के भगवान सिंह कुशवाहा ने समाजवादी पार्टी की रानी पक्षलिका सिंह को हराया था. रालोद के उमेश चंद सेंथिया तीसरे, जबकि बीजेपी के अमर सिंह चौथे स्थान पर रहे थे. उन्हें कुल 69533 वोट मिले थे. वहीं दूसरे नम्बर पर समाजवादी (सपा) की रानी पक्षलिका सिंह रही थीं. उन्हें खेरागढ़ की जनता से कुल 62427 वोट मिले थे.


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जबकि साल 2017 के विधानसभा चुनावों में इस सीट पर बीजेपी ने कमल खिलाया था. खेरागढ़ सीट से बीजेपी के महेश कुमार गोयल को करीब 32 हजार वोटों से जीत प्राप्त हुई थी. उन्हें कुल 93510 वोट मिले थे. वही बसपा के भगवान सिंह कुशवाहा, 61511 वोटों के साथ दूसरे नम्बर पर रहे थे.


क्या रही जीत की वजह?
बीजेपी की जबरदस्त लहर ही थी. पार्टी ने राम मंदिर निर्माण का नारा बुलंद किया था. इसका सीधा फायाद महेश कुमार गोयल को हुआ था. चूंकि गोयल उसी परिवार से थे जिस परिवार से पार्टी को पहली बार इस सीट से जीत मिली थी, वो राम लहर के वक्त. राम मंदिर की घोषणा होते ही बीजेपी कैंडिडेट को सीधा फायदा इस सीट से हुआ. जनता ने विकास के बजाय राम के नाम पर वोट दिया था.

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