निमिषा श्रीवास्तव/ललितपुर: वह निर्दोष था. 20 साल पहले जब वह महज 23 साल का था, तो भी निर्दोष था. और 20 साल बाद आज जब वह जेल में सजा काट कर, बूढ़ा हो कर वापस लौटा है, तो भी निर्दोष है. तो सजा उसे किस बात की मिली? एक मासूम को 20 साल ऐसी जिंदगी क्यों जीनी पड़ी, जिसके हकदार सिर्फ दुर्दांत अपराधी होते हैं? 


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न्यायिक सिद्धांत में अक्सर कहा जाता है कि भले ही 100 गुनहगार छूट जाएं, लेकिन किसी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए. यह न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि बेकसूर को सजा न हो. लेकिन सिस्टम की लापरवाही की वजह से एक जवान, समझदार और मासूम व्यक्ति विष्णु की जिंदगी बर्बाद हो गई. केवल उसने नहीं, बल्कि उसके माता-पिता, भाई-भाभी, भतीजों ने भी 20 साल घुट-घुट कर यह सजा काटी है.


झूठे केस में फंसाया गया, 20 साल जेल में रहा
रेप के झूटे आरोप में जेल की सजा काटने के 20 साल बाद अब हाईकोर्ट ने विष्णु तिवारी को बेकसूर करार दिया है. आज विष्णु आजाद है, लेकिन उसका कहना है कि जब कोई जिंदगी बची ही नहीं, तो वह जिएगा क्या? जेल में जानवरों जैसा बर्ताव किया गया. न कभी फोन करने दिया गया, न घरवालों को चिट्ठी तक लिखने दी. विष्णु कहते हैं कि मर-मर के उसने इस उम्मीद में यह 20 साल काट लिए कि कभी परिवारवालों से मिल पाएगा. लेकिन, वह जो हरा-भरा परिवार छोड़ कर गया था, उसे सामाजिक तिरस्कार ने बर्बाद कर दिया. बेटे का जेल जाना माता-पिता झेल नहीं पाए और उनकी मौत हो गई. समाज के बुरे बर्ताव की वजह से दोनों भाइयों की हार्ट अटैक से जान चली गई. भाई के छोटे-छोटे बच्चे, जिन्हें वह पीछे छोड़ कर गया था, अब वही उसका सहारा हैं. उन्होंने भी अपना जीवन कैसे गुजारा, वही जानते हैं. 


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अनपढ़ विष्णु समझ नहीं पाया कब सजा सुना दी गई
विष्णु ने बताया कि 20 साल पहले एक गाय और पशुओं को लेकर छोटी सी कहासुनी हुई थी, लेकिन राजनीतिक ताकत की वजह से दूसरे पक्ष ने उसपर SC/SC एक्ट के तहत केस दर्ज कर दिया. विष्णु अनपढ़ था, कुछ समझ नहीं पाया. गरीब था इसलिए अपनी तरफ से वकील भी खड़ा नहीं कर सकता था. एक दिन कोर्ट ने उसके पक्ष में सरकारी वकील खड़ा कर उसे आजीवन कारावास की सजा सुना दी. विष्णु ने बताया कि जब जज ने जेल भेजने का निर्णय सुनाया, तो सामने बैठे होने के बावजूद उसको पता नहीं चला कि उसे सजा दे दी गई है. 


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3 साल तक मां की मौत का नहीं चला पता
पिता ने उसे बचाने के लिए सारी ताकत लगा दी. वकीलों ने कहा पैसा दो तो विष्णु की जमानत हो जाएगी. इस चक्कर में पिता ने जमीन तक बेच दी. लेकिन विष्णु ने बताया कि सारा पैसा वकील गप कर गए और कोई कार्रवाई नहीं हुई. बेटे की चिंता ने पिता की जान ले ली. कुछ साल बाद, 2014 में मां भी चली गईं. दोनों भाई भी मर गए. उसे तो 3 साल तक पता भी नहीं चला कि उसकी मां नहीं रहीं. 2017 में छोटे भाई की मौत के बाद भतीजे ने खत लिखकर भाई और मां के बारे में बताया. परिवार के चार लोगों को खोने के बाद भी विष्णु को एक भी बार किसी की अर्थी में शामिल नहीं होने दिया गया. आज भाभियां और भतीजे किराए के मकान में मुश्किलों से जीवन व्यतीत कर रहे हैं. 


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सरकार से बस एक अपील
अब विष्णु का कहना है कि उसका परिवार, मकान, जमीन सब खत्म हो गया. वह सरकार से एक ही अपील करता है कि उसे दोबोरा अपने पैरों पर खड़ा करने में मदद करें. विष्णु ने उस जुर्म की सजा काटी, जो उसने कभी किया ही नहीं था. न्यायपालिका की देरी की वजह से जो नाइंसाफी हुई है, विष्णु और उसका परिवार न्याय की उम्मीद में बैठा है. 


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