Mahashivratri 2023: हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का खास महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व हर साल फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. मान्यता है कि इस दिन भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने और जलाभिषेक करने से भक्तों के सारे दुख दूर होते हैं. शिव जी की कृपा से जीवन में खुशहाली आती है. 


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महाशिवरात्रि से जुड़ी मान्यताएं (Mahashivratri 2023 Significance)
महाशिवरात्रि से जुड़ी दो मान्यताएं काफी प्रचलित है. पहली मान्यता है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात में शिव जी अग्नि स्तंभ के रूप में ब्रह्मा जी और विष्णु जी के सामने प्रकट हुए थे. दूसरी मान्यता के अनुसार, इस तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. शिव-पार्वती जी के विवाह के संबंध में शिवपुराण में लिखा है कि शिव-पार्वती विवाह मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि सोमवार को हुआ था. उस समय चंद्र, बुध लग्र में थे और रोहिणी नक्षत्र था. शिव जी और माता सती का विवाह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि रविवार को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हुआ था. 


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शिवलिंग पर जल की धारा, दूध, बिल्व पत्र क्यों चढ़ाते हैं..?
पूजा के दौरान शिव जी को जल की धारा, दूध, बिल्व पत्र अर्पित किया जाता है. कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय शिव जी ने विष पान किया था. जिसकी वजह से भोलेनाथ के शरीर में गर्मी बहुत बढ़ गई थी. जिसे शांत करने के लिए शिवलिंग पर जल की धारा चढ़ाई जाती है. इसके अलावा बिल्व पत्र (बेलपत्र), दूध, घी आदि चीजें भी इसलिए ही चढ़ाई जाती है, क्योंकि ये शीतलता देती हैं. 


शिवलिंग पर भस्म क्यों चढ़ाते हैं?
भोलेनाथ अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं. भस्म यानी राख, इस संसार का और हर एक प्राणी का सार है. पूरी सृष्टि जब भी नष्ट होगी तो अंत में राख ही बचेगी. यही राख शिव जी धारण करते हैं. यानी सृष्टि खत्म होने के बाद, प्राणी की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा शिव जी में समा जाती है. शिव जी को भस्म चढ़ाने का संदेश यही है कि भगवान के लिए सभी एक समान है और अंत में सभी शिव में समा जाएंगे. 


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शिवलिंग पर क्यों नहीं चढ़ाया जाता तुलसी दल?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी शंखचूड़ नाम से असुर की पत्नी थीं. तुलसी पतिव्र थीं, जिसकी वजह से शंखचूड़ को कोई भी देवता पराजित नहीं कर पा रहा था. उस समय भगवान विष्णु ने तुलसी की पतिव्रता को खंडित किया. जिसके बाद शिव जी ने शंखचूड़ का वध कर दिया. यही वजह है कि शिवलिंग पर तुलसी दल नहीं अर्पित किया जाता है. 


चार पहर की होती है पूजा 
महाशिवरात्रि के दिन रात्रि पूजन भी किया जाता है, लेकिन इससे महत्वपूर्ण चार पहर की पूजा होती है. मान्यता है कि चार पहर की पूजा करने से व्यक्ति जीवन के पापों से मुक्त हो जाता है. भक्त को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. महाशिवरात्रि के दिन चार पहर की पूजा संध्या काल से शुरू होकर अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त तक की जाती है. सामान्य गृहस्थ को महाशिवरात्रि के दिन शुभ और मनोकामना पूर्ति के लिए सुबह और संध्या काल में शिव की आराधना करनी चाहिए.


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