Margashirsha Purnima 2023: हर महीने शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि के अगले दिन पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि का हिंदू धर्म में खास महत्व माना गया है. मार्गशीर्ष महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा साल 2023 की आखिरी पूर्णिमा होगी. इस साल यह 26 दिसंबर 2023 को है. इस दिन गंगा स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. मान्यतानुसार ऐसा करने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है. इस पर सत्यनारायण भगवान की कथा का पाठ करना चाहिए, इससे कष्ट दूर होते हैं और पापों का नाश होता है. पढ़िए सत्यनारायण भगवान की कथा. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार नारद जी भगवान विष्णु के पास बहुत ही दुखी होकर पहुंचे और कहा कि उनसे दुखी मनुष्यों के कष्टों को देखा नहीं जा रहा. उन्होंने भगवान से कहा कि आप कोई ऐसा आसान उपाय बताएं, जिससे कि लोगों का कल्याण हो. यह सुनकर भगवान श्रीहरि ने कहा कि जो भी व्यक्ति सांसारिक सुख और मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करना चा​हता है, उसे श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा व व्रत करना चाहिए. भगवान विष्णु ने फिर सत्यनारायण व्रत के बारे में विस्तार से बताया.


सत्यनारायण कथा का प्रारंभ भगवान विष्णु और नारद जी के वार्तालाप से होते हुए श्रीहरि के सत्यनारायण व्रत एवं पूजन की विधि के वर्णन के साथ राजा उल्कामुख, गरीब लकड़हारा, निर्धन ब्राह्मण, साधु वैश्य, लीलावती, कलावती, धनवान व्यवसायी, राजा तुङ्गध्वज एवं गोपगणों की कथा तक है. कथासार ग्रहण करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि जिस किसी ने सत्य के प्रति श्रद्धा-विश्वास किया, उन सबके कार्य सिद्ध हो गए. जैसे लकड़हारा, गरीब ब्राह्मण, उल्कामुख, गोपगणों ने सुना कि यह व्रत सुख, सौभाग्य, संतति, संपत्ति सब कुछ देने वाला है तो सुनते ही श्रद्धा, भक्ति तथा प्रेम के साथ सत्यव्रत का आचरण करने में लग गये और फलस्वरूप इहलौकिक सुख भोगकर परलोक में मोक्ष के अधिकारी हुए.


साधु वैश्य ने भी यही प्रसंग राजा उल्कामुख से विधि-विधान के साथ सुना, किंतु उसका विश्वास अधूरा था. श्रद्धा में कमी थी. वह कहता था कि संतान प्राप्ति पर सत्यव्रत-पूजन करूंगा. समय बीतने पर उसके घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया. उसकी श्रद्धालु पत्नी ने व्रत की याद दिलायी तो उसने कहा कि कन्या के विवाह के समय करेंगे. समय आने पर कन्या का विवाह भी हो गया किंतु उस वैश्य ने व्रत नहीं किया. वह अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए चला गया. उसे चोरी के आरोप में राजा चन्द्रकेतु द्वारा दामाद सहित कारागार में डाल दिया गया. पीछे घर में भी चोरी हो गयी. पत्नी लीलावती व पुत्री कलावती भिक्षावृत्ति के लिए विवश हो गयीं.


एक दिन कलावती ने किसी विप्र के घर श्री सत्यनारायण का पूजन होते देखा और घर आकर मां को बताया. तब मां ने अगले दिन श्रद्धा से व्रत-पूजन कर भगवान से पति और दामाद के शीघ्र वापस आने का वरदान मांगा. श्रीहरि प्रसन्न हो गये और स्वप्न में राजा को दोनों बंदियों को छोडऩे का आदेश दिया. राजा ने उनका धन-धान्य तथा प्रचुर द्रव्य देकर उन्हें विदा किया. घर आकर पूर्णिमा और संक्रांति को सत्यव्रत का जीवन पर्यन्त आयोजन करता रहा, फलत: सांसारिक सुख भोगकर उसे मोक्ष प्राप्त हुआ.


इसी प्रकार राजा तुङ्गध्वज ने वन में गोपगणों को श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा, किंतु प्रभुता के मद में चूर राजा न तो पूजास्थल पर गया, न दूर से ही प्रणाम किया और न ही गोपगणों द्वारा दिया प्रसाद ग्रहण किया. परिणाम यह हुआ कि राजा के पुत्र, धन-धान्य, अश्व-गजादि सब नष्ट हो गये. राजा को अकस्मात् यह आभास हुआ कि विपत्ति का कारण सत्यदेव भगवान का निरादर है. उसे बहुत पश्चाताप हुआ. वह तुरंत वन में गया. गोपगणों को बुलाकर काफी समय लगाकर सत्यनारायण भगवान की पूजा की. 


फिर उसने उनसे ही प्रसाद ग्रहण किया तथा घर आ गया. उसने देखा कि विपत्ति टल गयी और उसकी सारी संपत्ति तथा जन सुरक्षित हो गये. राजा प्रसन्नता से भर गया और सत्यव्रत के आचरण में निरत हो गया तथा अपना सर्वस्व भगवान को अर्पित कर दिया. श्री सत्यनारायण व्रत से शिक्षा मिलती है कि सत्यरूप ब्रह्म जीवात्मा रूप में हमारे अंदर विद्यमान है. हम सब सत्य के ही स्वरूप हैं, पर माया के वश में आकर नष्ट होने वाली वस्तुओं को संग्रह करने की सोचकर संसार में मग्न हो रहे हैं. इस अज्ञान को दूर करके सत्य को स्वीकार करना और प्रभु की भक्ति‍ करना ही मानव का धर्म है.


Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.