वाराणसी: स्पेन की मारिया रुईस को भाषा और अध्यात्म से तो प्रेम हुआ ही, साथ ही शिवनगरी काशी से भी प्यार हो गया है. नई भाषा सीखने का जज्बा ऐसा था कि उन्होंने संस्कृत में अध्ययन करने का मन बनाया और ऐसी महारथ हासिल की कि वाराणसी के पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उन्हें राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया. बता दें, मारिया ने बार्सिलोना से सोशल वर्क में बीए भी किया है. 


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लोगों की सलाह पर काशी आ गईं मारिया
मारिया रुईस का कहना है कि वह हमेशा सोचती हैं कि भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई. इस सवाल का जवाब ढूंढते-ढूंढते उनकी रुचि अध्यात्म और दर्शन में बढ़ गई. लेकिन स्पेन में रहकर उन्हें उत्तर नहीं मिले. उसी दौरान मारिया को विदेश में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिली. कुछ लोगों ने उन्हें सलाह दी कि भाषा की उत्पत्ति के बारे में जानना है तो भारत जाएं. सलाह मानते हुए मारिया काशी आ गईं और संस्कृत पढ़ने के लिए संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया. 


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पूर्व मिमांसा में आचार्य करने का बनाया मन
संस्कृत पढ़ने में उन्हें मजा आने लगा और यहीं से मारिया ने शास्त्री किया. इसके बाद उन्होंने पूर्व मीमांसा में आचार्य करने का मन बनाया. मारिया ने इस कोर्स में भी सबसे ज्यादा अंक लाकर इतिहास रच दिया.


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मारिया का कहना- 'काशी स्वर्ग है'
मौजूदा समय में मारिया रुईस एक गुरुकुल में रहती हैं. उनका मन हमेशा से ही योग, अध्यात्म, दर्शन और भारतीय संस्कृति में लगा है. वह शुद्ध हिंदी में बात करती हैं और अब अपने देश स्पेन वापस नहीं जाना चाहतीं. मारिया 8 साल से वाराणसी में रह रही हैं और उनका कहना है, 'काशी स्वर्ग है'. 


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घरवाले चाहते हैं स्पेन आ जाएं मारिया
मारिया के घर स्पेन में उनकी मां और दो भाई हैं, जो चाहते हैं कि वह वापस आ जाएं, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया. मारिया का कहना है कि अगर घरवाले ज्यादा फोर्स करेंगे, तो वह सबको यहीं बुला लेंगी. मारिया ने कहा कि उन्हें काशी बहुत पसंद है और उन्हें यहीं साधना करनी है. अभी तक वह जितना भी पढ़ पाई हैं या सीख पाई हैं, उसका प्रसार-प्रचार करना चाहती हैं. उन्होंने बताया कि संस्कृत पढ़कर उन्हें उस हर सवाल का जवाब मिल गया, जिसके लिए वह भारत आई थीं.


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