Part-2: हम दान नहीं ले रहे हैं समर्पण मांग रहे हैं, दुनिया में भारतीय इंजीनियरिंग की मिसाल बनेगा राम मंदिरः चंपत राय
ZEE उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड (ZEE UPUK) के एडिटर दिलीप तिवारी के साथ श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय के Interview का दूसरा पार्ट
ZEE उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड (ZEE UPUK) के एडिटर दिलीप तिवारी के साथ श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय के Interview का दूसरा पार्ट
दिलीप तिवारी: चंपत जी आप कह रहे हैं, देवरहा बाबा के शब्दो में कि वो वक्त आएगा जब एक समाज दूसरे समाज की बातों को मानते हुए, उनके प्रमुख धार्मिक स्थल उनको सौंप देगा. क्या आपको लगता है कि राम मंदिर निर्माण के होते ही ये दिन अच्छे से आएं?
चंपत राय: देवरहा बाबा की ही बात सत्य निकलेगी. वो कोई रोज समाज के बीच में रहने वाले साधु नहीं थे. वो समाज से दूर जंगल में रहते थे.
दिलीप तिवारी: एक जो शक विरोधी कर रहे हैं वो ये कर रहे हैं कि आप लोग टाइमिंग देख रहे हैं, अगले चुनाव के लिहाज से. हालांकि, आप राजनीति से दूर हैं. लेकिन जो आपका संगठन है राजनीतिक, वो है बीजेपी. बीजेपी के नेता, जो कुछ भी करते हैं, सोच समझ कर करते हैं. आप लोग कहते हैं कि भगवान राम के नाम पर राजनीति नहीं होगी. हमारी आस्था का केंद्र है. वो भी यही कहते हैं. विरोधी कहते हैं कि हमेशा नारे लगते थे कि मंदिर वहीं बनाएंगे, तारीख नहीं बताएंगे. लेकिन अब तारीख कोर्ट के फैसले के बाद तय हो गई है. आप लोगों ने अपना काम शुरू कर दिया है. विरोधी कह रहे हैं कि अब भी जो धन संग्रह का अभियान है, जो समर्पण का अभियान है, वो भी एक तरह की राजनीतिक रचना है.
चंपत राय: देखो, अगर किसी के मन में शंका है, तो वह शंका दूर होनी चाहिए. लेकिन शंका कोई तीसरा आदमी दूर नहीं करता है. शंका स्वयं दूर होती है, जब आत्मचिंतन होता है. अगर शंका दूर नहीं हो, तो आदमी को शांत बैठे रहना चाहिए, शंका दूर कर लेने तक. शंका भी रहे और काम भी करता रहे. तो भगवान कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है, संशयात्मा विनश्यति. हमें कोई शंका नहीं है. शंका उनको है. नंबर दो, राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र का कोई राजनीतिक दल नहीं है. विश्व हिंदू परिषद का भी कोई राजनीतिक दल नहीं है. हम किसी राजनीतिक दल के कल्चरल या सोशल विंग नहीं हैं. लेकिन इस भारत मां और भारत के हित की दृष्टि हम लोगों की एक है. यही, एक हमको बांधने वाला धागा है. चूंकि, भारत के सम्मान के लिए हमको जोड़ने वाला तत्व एक है. इसलिए सारे लोग इस काम में लगे हैं. आखिर राम सबके, सब राम के.
इस राष्ट्र की कल्पना राम को निकालकर संभव ही नहीं है. और राष्ट्र नागालैंड, मिजोरम और मणिपुर में भी रहता है. यह समाज अंडमान निकोबार में भी रहता है. वो तो नहीं आ सकता. लेकिन हम वहां जा सकते हैं. इसलिए हिंदुस्तान का कोई गांव अछूता न रहे. हर गांव में जाएं, हर घर में जाने की कोशिश करें ये हमारी इच्छा है. काम करना है गृहस्थों को, कोई Appointment देकर भेजना नहीं है किसी को. जब वॉलेंट्री स्प्रिट से काम होगा, तो मनुष्य को अपना घर भी चलाना है, व्यापार-संस्थान भी चलाना है, समाज का भी काम करना है तो उसका संतुलन बनाएगा. अब संतुलन में हमने 42 दिन की अवधि तय कर दी. तो इसमें मुझे लगता है कि 120 करोड़ को तो नहीं छू पाएंगे, लेकिन आधी आबादी तक जरूर पहुंच जाएंगे. 12 से 13 करोड़ घरों तक हम जरूर पहुंच जाएंगे. यही इसका व्यापक आधार है. किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करेंगे. करना है, सभी स्थानीय कार्यकर्ता को किसी गांव में, तो उसी गांव के लोग होंगे. हां, हमने यही निवेदन किया है कि सबके घरों में जाओ. सबका सम्मान, सबका समर्पण श्रद्धा से स्वीकार करो.
दिलीप तिवारी: लोग ये भी सवाल पूछ रहे हैं कि क्या मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी या ममता बनर्जी, ये भी तो देश के नागरिक हैं, इनके यहां भी जाएंगे?
चंपत राय: मैंने इसके लिए कह दिया कि सब स्थानीय लोगों को करना है. हमने किसी को Exclude करने की चर्चा नहीं की है. लेकिन प्रदर्शन भी हम नहीं चाहते हैं. सहजता होनी चाहिए. सर्व सामान्य नागरिक की दुकान पर खड़े हो, ऐसे में जा सकते हैं. किसी के घर में जाना है, तो अनुमति लेकर जाना पड़ता है. राष्ट्रपति महोदय के घर गए, तो उनसे समय लिया गया. स्थानीय लोगों ने लिया. राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री के रूप में हमने नहीं लिया. मैं कल यहां था भी नहीं. जो कुछ करना है, स्थानीय लोगों को करना है. बड़े व्यक्तियों के पास जाएंगे, तो उनसे समय मांगेंगे. समय उनको देना है. इसकी सूचना, इसका निर्देश दिल्ली से नहीं होता.
दिलीप तिवारी: मुद्दा ये उठता है. हालांकि, आपने कहा कि आपका न तो कोई राजनीतिक संगठन है, न आप किसी राजनीतिक संगठन का हिस्सा हैं. लेकिन शिवसेना जैसी पार्टी, जो इस आंदोलन के दौरान या जो इस पूरे संघर्ष के दौरान आपके संगठन के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खड़ी रही. वो राजनीतिक दल है, लेकिन आपके साथ थी. लेकिन अब वो कहती है कि ये अभियान राजनीतिक है बीजेपी का. स्वभाविक तौर पर आपका आंदोलन हो, वीएचपी का आंदोलन हो, कोई भी काम होगा, उसका स्वभाविक फायदा बीजेपी उठाती है. इसलिए शिवसेना ने कहा ये राजनीतिक है.
चंपत राय: अब शिवसेना में किसने कहा, उसकी प्रतिष्ठा कैसी है, उसकी समझदारी कैसी है, उसके बारे में मालूम नहीं हमको. लेकिन तो भी, जहां ये कहा गया होगा, वहां के लोग उस पर विचार कर लेंगे. हम नहीं सोचेंगे. हमारी तो एक दृष्टि है. सारी आलोचनाओं को या तो सुनों मत, सुनते हो तो उससे प्रभावित नहीं होना. काम करते रहो. चरैवेति-चरैवेति.
दिलीप तिवारी: अच्छा कुछ लोग ये कहते हैं कि राम पर, भगवान पर, हिंदुत्व पर क्या बीजेपी ने पेटेंट कर रखा है? क्या वीएचपी ने पेटेंट कर रखा है? क्योंकि कमलनाथ जैसे नेता हैं, जो कहते हैं कि मैंने भी अपने गांव में और अपने क्षेत्र में हनुमान जी सबसे ऊंची प्रतिमा के साथ भव्य मंदिर का निर्माण किया है. मैं प्रचार नहीं करता. लेकिन बीजेपी का कोई पेटेंट है क्या. अखिलेश यादव कहते हैं कि परशुराम जी की भव्य प्रतिमाएं पूरे प्रदेश में लगवाएंगे और कृष्ण तो हमारे हैं. ये भगवान का बंटवारा क्यों हो जाता है?
चंपत राय: उनको इस आंदोलन की आत्मा की जानकारी नहीं है. ये कोई परशुराम, ये कोई कृष्ण, हनुमान जी की प्रतिमा लगाने का विषय नहीं है. ये ऐसे स्थान को वापस प्राप्त करके मंदिर बनाना, जहां मंदिर पहले से Existकरता था, और जिस मंदिर को एक विदेशी आक्रांता ने तोड़ा. विदेशी आक्रांताओं की सेना के सामने, उस काल की भारत की सेना और सुरक्षा बल कमजोर पड़ गए. एक राजा ने दूसरे राज्य को जीत लिया. मंदिर क्यों तोड़ा? राज करता, जनता से टैक्स वसूल करता. उस टैक्स से कुछ अपना मजा लूटता और कुछ जनता की भलाई करता. मंदिर क्यों तोड़ा? अगर एक विदेशी आक्रांत एक इमारत या एक श्रद्धा के केंद्र को गिराता है तो इसका अर्थ निकालना होगा. हमने इसको राष्ट्र का अपमान माना है. हम राष्ट्र के अपमान का परिमार्जन कर रहे हैं. ये मंदिर का निर्माण 1528 के कलंक को हटाना. अन्यथा हनुमान जी का मंदिर क्या, अयोध्या में भी कई मंदिर बनते रहते हैं. इसकी आत्मा को अनुभव करो.
दिलीप तिवारी: चंपत राय जी, बीच में कुछ लोगों ने फ्रॉड करने की कोशिश की. बैंक से कुछ पैसे निकाले. आप लोगों ने उसकी एफआईआर (FIR) भी दर्ज कराई. और अब इतना बड़ा अभियान है. आपको 12 करोड़ घरों तक पहुंचना है. लगभग 60 कोरोड़ की आबादी तक आप पहुंच जाएंगे. लेकिन कहते हैं न कि गलत तत्व भी इसका फायदा उठा लेते हैं. इसको रोकने के लिए कोई व्यवस्था है?
चंपत राय: स्थानीय कार्यकर्ताओं के हाथ में ओरिजिनल मैटेरियल पहुंचा है. अगर कोई डुप्लीकेट छपेगा, स्थानीय लोगों की पकड़ में आएगा, हमारी पकड़ में आ जाएगा, तो प्रशासन को कहेंगे. रोक लिया जाएगा. जिसका जैसा कर्म है, हम किस-किस का फ्रॉड रोकेंगे. बैंको में फ्रॉड हो रहे हैं. सारे कानून बने हैं, तो भी कोई रोक नहीं पता. किसको रोकोगे. हमारे फ्रॉड में कोई कितना कर लेगा. कोई हजार-दो हजार कर लेगा. करोड़ कोई कर नहीं सकता. आज समाज अपरचित, अंजान चेहरों को धन नहीं देता है. हां, दो-चार रुपये की भीख हर एक को मिल जाती है. हम उससे प्रभावित नहीं हैं.
दिलीप तिवारी: चंपत जी जब ये तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट बनाया गया. आपको महामंत्री बनाया गया. तब कई और लोग भी दावेदार थे. जो चाहते थे कि उनको ट्रस्ट का मेंबर बनाया जाए. कुछ लोग नाराज होकर बैठ गए. कुछ ने कहा कि जिनका महत्वपूर्ण योगदान था, उनको किनारे कर दिया गया. क्या भगवान के काम में भी राजनीति?
चंपत राय: मुझे मालूम नहीं है. ट्रस्ट बनाया है सरकार ने. 11 लोग रखे हैं और 15 से 20 हजार संत महात्माओं को योगदान है इसमें. लाखों लोगों का योगदान है. उन लाखों व्यक्तियों में से, 15-20 हजार संत-महात्माओं में से 11 लोग छांटने थे. 11 छंटने के बाद अगर किसी की इच्छा रही होगी, तो हो सकता है दुख हो. भगवान के काम में ज्यादा इच्छाएं नहीं पालनी चाहिए. इच्छाएं कभी पूरी भी नहीं होतीं, ऐसा मैं जानता हूं.
दिलीप तिवारी: कुछ लोग बंगाल में कह रहे कि चुनाव आने वाले हैं. और अब ये जो घर-घर समर्पण राशि मांगने का अभियान शुरू हुआ है. तो प्रभु श्रीराम नाम के नाम पर बंगाल में काम हो बीजेपी का, ऐसा बीजेपी चाहती है?
चंपत राय: चुनाव तो हिंदुस्तान में चलते ही रहते हैं. मार्च में उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत के चुनाव हैं. चुनाव इस देश के रक्त में आ गया है. इस पर भी देश को विचार करना ही चाहिए कि सारे देश के चुनाव की एक समय-सीमा तय हो जाए. अन्यथा देश में कोई भी अच्छा काम नहीं हो पाएगा. चुनाव का हमारे अभियान से कोई रिश्ता नहीं है.
दिलीप तिवारी: भव्य और नई अयोध्या, नई अयोध्या की परिकल्पना कैसे आई चंपत जी?
चंपत राय: कल्पानाएं आज नहीं बताई जा सकती हैं. आज इतना ही बताया जा सकता है कि आज-कल 1 जनवरी को 42-45 हजार व्यक्ति एक ही दिन में दर्शन करने आए. आज कल 15000 के आस-पास की संख्या रोज आ रही है. मंदिर बनता दिखने लगेगा, अखबारों में फोटो छपेगी तो संख्या कहां जाएगी? तो रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, हवाई अड्डा, सड़के कितनी चौड़ी हों. गाड़ियों से आएंगे, तो उनकी पार्किंग कहां हो. इतने लोग रहेंगे, तो रहने की व्यवस्था क्या है. सैनिटेशन क्या है. वाटर सप्लाई कैसी है. ये लोग भोजन कहां करेंगे. ये जो बेसिक रिक्वायरमेंट है. जब आएंगे सड़के बहुत छोटी हैं, शहर बहुत पुराना है, लोग कैसे चल पाएंगे. इन व्यवस्थाओं को ही अगर हमने भविष्य का दर्शन करके, कल्पना करके कि कितने लोग आएंगे. चार-तीन मेले होते हैं. एक-एक मेले में आज भी 35-40 लाख लोग आते हैं. तीन साल बाद अगर 1 करोड़ लोग आने लगेंगे, तो क्या करोगे. इसकी दृष्टि से भौतिक विकास करना, ये प्राथमिक चीज है. इसके बाद धीरे-धीरे चिंतन होगा.
दिलीप तिवारीः तो आपको सरकार ने एक जिम्मेदारी सौंपी है. एक बड़ी जिम्मेदारी है. आपको लगता है कि लंबे संघर्ष की परिणिती और सब कुछ जानने का आपका जो अनुभव है इस वजह से सरकार ने आपको जिम्मेदारी दी?
चंपत रायः ये तो अब सरकार ही बताए कि उन्होंने क्यों मुझे रखा कि तुमको ये काम करना है. सरकार ने जो बेसिक ट्रस्ट बनाया था उसमें मेरा नाम कहीं नहीं था, उसमें नृत्य गोपाल दास जी का भी नाम नहीं था. लेकिन जब ट्रस्ट की बैठक हुई तो ट्रस्ट के लोगों ने मुझे और नृत्य गोपाल दास जी को सदस्य के रूप में नामित किया. उन्होंने जिम्मेदारी सौंपी है. मैं सरकार को भी नहीं कह सकता कि सरकार ने हमें बनाया है. तकनीकी बात तो ये ठीक नहीं है, सिक्वेंस में नहीं आती है.
दिलीप तिवारीः तो आपका मिशन क्या है अब? आपके जीवन में आप एक मिशन लेकर आए थे. वीएचपी के साथ जुड़े. वीएचपी के साथ लंबे समय तक आपने काम किया और अब आपको राम मंदिर का जो ट्रस्ट बनाया गया है उसकी जिम्मेदारी दी गई है. आपके जीवन का अब मिशन क्या है?
चंपत रायः उस आदमी का क्या मिशन होगा, मिशन बदल जाते हैं. मिशन के साथ जीते हैं, जब तक चलता रहेगा चलता रहेगा. अगला मिशन अगले जन्म में सोचेंगे. अभी कुछ नहीं है. अभी सब ठीक ठाक हो जाए उसके बाद हरि भजन.
दिलीप तिवारीः तो खुश तो आप हैं?
चंपत रायः मैं कभी निराश जीवन में नहीं हुआ. इस आंदोलन में सफलता असफलता इसने मुझे कभी संकट में नहीं डाला. कभी संदेह में नहीं रहा मैं. इसीलिए अप्रसन्नता कभी आई ही नहीं. मैं सदैव खुश हूं.
दिलीप तिवारीः राम के काम में हमने देखा कि वानर सेना ने राम सेतु बना दिया. जिस राम सेतु को लेकर विवाद था, कांग्रेस ने कहा था कि राम का अस्तित्व ही नहीं है. राम सेतु की तो बात छोड़ ही दीजिए. अब तो आपने अस्तित्व भी बता दिया, मंदिर भी बनावने जा रहे हैं. अब तो आप खुश होंगे कि नहीं इस समय?
चंपत रायः नहीं.नहीं मैं सदैव ही खुश था. भगवान का काम करना है तो पहले दिन से कर रहे हैं. और हम तो समाज का काम, परमात्मा का काम छोटी उम्र से ही त्वदीयाय कार्याय. त्वदीयाय कार्याय यही कर रहे हैं. तो त्वदीयाय मतलब किसका तो अगर समाज को इकट्ठा करने का, संगठन का काम करते हैं तो वो भी हमने कहा ये तुम्हारा है. त्वदीयाय कार्याय तो हमने तो हमेशा जो कुछ किया है. भगवान की ही सेवा मानकर किया है. इसमें कोई अप्रसन्नता का, विशेष प्रसन्नता का ये प्रश्न नहीं मानता मैं. हो गया बहुत अच्छा हो गया. यही होना था.
दिलीप तिवारीः लेकिन राम के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े हुए. इस देश की संसद में भी ये जवाब दिए गए सरकार की तरफ से?
चंपत रायः देखो बाद में उनको अपनी गलती का अहसास हुआ. उन्होंने वापस कर लिया, खत्म हो गई बात. मेरे विचार से 72 घंटे में ही वापस हो गया था, तो खत्म हो गया. उन्होंने किया कि उनसे जबरदस्ती करा दिया. अन्यथा मनमोहन सिंह को अश्रद्धालु तो नहीं कह सकते. वो श्रद्धावान व्यक्ति हैं. उनकी गुरुनानक देव जी महाराज में श्रद्धा है और गुरुनानक देव जी ने अयोध्या में जाकर भगवान के दर्शन किए. अश्रद्धा कैसे हो सकती है. किसी ने कर दिया, हो गया. गलती ध्यान में आ गई, वापस हो गया, उसको भूलने की आवश्यकता है.
दिलीप तिवारीः चंपत जी अब तो राम सेतु का भी अध्ययन शुरू हो गया है. बताएंगे कि कैसे बना, कब बना, क्या संरचना है, क्या आधार है?
चंपत रायः बहुत अच्छा है, देर आए दुरुस्त आए.
दिलीप तिवारीः चलते.चलते आखिरी सवाल आपसे मेरी तरफ से. कुछ लोग कह रहे हैं कि नया आंदोलन, आपने कहा कि अब क्या मिशन होगा, अब तो मिशन को पूरा करना है, आगे बढ़ना है, हरि भजन करना है. लेकिन कुछ लोग कह रहे हैं कि हार मानने का, घर में बैठ जाने का वक्त नहीं है. याचिका लग चुकी है मथुरा के लिए, याचिका लग चुकी है और भी जगहों के लिए कि भाई अब ये स्थान भी छोड़ दो.
चंपत रायः जिन्होंने लगाई है वो शायद मेरे से आधी उम्र के हैं. मैं जब राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ा था तो मैं सोचता था कि मेरी आयु कितनी होगी. 1946 और 1985 तो 39 साल की. अब मेरी आयु हो गई है 75 साल की. तो 39 साल के लोग जुड़े हैं तो भगवान उनको सफलता प्रदान करें.