सुनील सिंह/संभल: देश के नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से न कराए जाने को लेकर विवाद चल रहा है. देश के कई बड़े राजनीतिक दलों के नेताओं ने नए राष्ट्रपति से उद्घाटन ना कराए जाने पर कार्यक्रम के बहिष्कार का ऐलान किया है. इस मामले में उत्तर प्रदेश की सियासत में अपने विवादित बयानों के लिए अक्सर सुर्खियों में रहने वाले समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्र रहमान बर्क की भी एंट्री हो गई है. सपा सांसद ने नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से न कराए जाने पर उद्घाटन कार्यक्रम के बॉयकॉट का ऐलान किया है. साथ ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है.


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"संसद भवन के उद्घाटन का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति का"
सपा सांसद बर्क ने कहा कि नए संसद भवन के उद्घाटन का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति का है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने नाम और शोहरत के लिए उद्घाटन का काम खुद करना चाहते हैं. यह हिंदुस्तान की रवायत और कानून के खिलाफ है. उन्होंने नए संसद भवन में अंग्रेज सरकार का राजदंड रखे जाने के मामले में भी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि यह कोई मजहबी मामला नहीं है. यह सियासी मामला है, लेकिन यह मुल्क की रवायत के खिलाफ है. 


बसपा सुप्रीमो ने दिया समर्थन
बसपा सुप्रीमो ने नई संसद के उद्घाटन पर मोदी सरकार को समर्थन दिया है. उन्होंने कहा, " केन्द्र में पहले चाहे कांग्रेस पार्टी की सरकार रही हो या अब वर्तमान में बीजेपी की, बीएसपी ने देश व जनहित निहित मुद्दों पर हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उनका समर्थन किया है. 28 मई को संसद के नये भवन के उद्घाटन को भी पार्टी इसी संदर्भ में देखते हुए इसका स्वागत करती है.राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा नए संसद का उद्घाटन नहीं कराए जाने को लेकर बहिष्कार अनुचित है. सरकार ने इसको बनाया है इसलिए उसके उद्घाटन का उसे हक है. इसको आदिवासी महिला सम्मान से जोड़ना भी अनुचित है. यह उन्हें निर्विरोध न चुनकर उनके विरुद्ध उम्मीदवार खड़ा करते वक्त सोचना चाहिए था."


राहुल गांधी ने उठाया था मुद्दा
गौरतलब है कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने 18 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नए भवन का उद्घाटन करने के लिए निमंत्रण दिया था. इस पर विपक्ष ने विरोध किया. उनका कहना है कि यह संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उद्घाटन न कराना, उनके पद का अपमान है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा कि राष्ट्रपति से संसद का उद्घाटन न करवाना और न ही उन्हें समारोह में बुलाना, यह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान है. संसद अहंकार की ईंटों से नहीं, संवैधानिक मूल्यों से बनती है. 


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