Schools Fees: राजस्थान में निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों की फीस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला किया है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने एक बड़े फैसले में स्कूलों को आदेश दिया है कि वो छात्रों से सत्र 2020-21 की वार्षिक फीस ले सकते हैं, लेकिन इसमें 15 फीसदी की कटौती करें क्योंकि छात्रों ने उनसे वो सुविधा नहीं ली हैं जो स्कूल आने पर लेते थे.


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सुप्रीम कोर्ट में सोमवार राजस्थान के शैक्षणिक सत्र 2020-21 स्कूल फीस के मसले पर सुनवाई हुई. स्कूल प्रशासन और अभिभावकों को कोर्ट की ओर से कई निर्देश दिए गए. जस्टिस खानविलकर ने फैसले में उल्लेख किया कि इस तरह के आर्थिक संकट में बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां चली गईं.


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जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि स्कूल चाहें तो छात्रों को अधिक रियायत दे सकते हैं. पीठ ने 128 पन्नों के अपने  फैसले के मुताबिक 5-8-2021 से पहले छह समान मासिक किस्तों में अभिभावक फीस का भुगतान करेंगे.


Supreme Court ने इस फैसले में साफ किया गया है कि फीस का भुगतान न होने पर किसी भी छात्र को वर्चुअल या हालात सामान्य होने पर क्लास में शामिल होने से नहीं रोका जाएगा वहीं उसका परीक्षा परिणाम भी नहीं रोका जाना चाहिए.


कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) के आदेश को बरकरार रखा जिसमें राजस्थान विद्यालय (शुल्क नियमन) कानून 2016 और स्कूलों में फीस तय करने से संबंधित कानून के तहत बनाए गए नियम की वैधता को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया गया था.
 
क्या था मामला?
मामला राजस्थान 36 हजार सहायता प्राप्त Private स्कूलों और 220 सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक स्कूलों का है. Rajasthan सरकार ने स्कूलों को आदेश दिया था कि लॉकडाउन को देखते हुए स्कूल छात्रों से 30 फीसदी कटौती करें. स्कूलों को फीस में कटौती करने का आदेश डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, 2005 की धारा 72 के तहत दिया गया था. इस आदेश को स्कूलों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.


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हाईकोर्ट ने सुनाया था ये फैसला
राजस्थान हाई कोर्ट ने गत वर्ष 18 दिसम्बर को फैसला सुनाते हुए कहा था कि प्रदेश की निजी स्कूल जो माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से सम्बद्ध रखती हैं वे 60 फीसदी ट्यूशन फीस और जो स्कूलें सीबीएसई से एफिलेटेड हैं वे 70 फीसदी ट्यूशन फीस वसूल कर सकती हैं. 


पिछले साल कई राज्यों में फीस का मामला कोर्ट में पहुंचा. अलग-अलग राज्य सरकारों की ओर से फीस को लेकर आदेश दिए गए जिसको लेकर कहीं स्कूल प्रशासन तो कहीं अभिभाभवक ही कोर्ट पहुंचे. फिर फीस का मामला देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच गया.


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