UP Vidhansabha Chunav 2022: ठाकुरद्वार सीट का बेताज बादशाह रहा है यह BJP नेता, 2014 से सपा का है कब्जा
मुरादाबाद जिले में पड़ता विधानसभा सीट नंबर 26 ठाकुरद्वार. यह सीट कांठ की तरह ही मुरादाबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आती है. ठाकुरद्वारा अनारक्षित सीट है. इस निर्वाचन क्षेत्र का अस्तित्व 1951 से है.
मुरादाबाद: मुरादाबाद जिले में पड़ता विधानसभा सीट नंबर 26 ठाकुरद्वार. यह सीट कांठ की तरह ही मुरादाबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आती है. ठाकुरद्वारा अनारक्षित सीट है. इस निर्वाचन क्षेत्र का अस्तित्व 1951 से है. यह विधानसभा क्षेत्र मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंदर पड़ता है, इसलिए यहां स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था ठीक ठाक है. सड़कें, सार्वजनिक परिवहन की सुविधा भी उपलब्ध है. रामगंगा नदी के खादर के कारण जमीन उपजाऊ है. इसलिए इस इलाके के किसान खासे संपन्न हैं.
यहां चीनी मिल के साथ कई छोटे बड़े उद्योग धंधे भी हैं. मुरादाबाद पीतल हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है. यहां के स्थानीय कारीगरों द्वारा तैयार पीतल हस्तशिल्प का निर्यात सिर्फ भारत में ही नहीं अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी और मध्य पूर्व एशिया के देशों में भी होता है. इसलिए स्थानीय लोगों को रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ता है. कांठ के लोगों की रोजी रोटी भी पीतल उद्योग के कारण ठीक चल जाती है.
ठाकुरद्वार असेंबली सीट पर धार्मिक-जातिगत समीकरण
इस सीट पर मुस्लिम बहुसंख्यक हैं. हिंदू जनसंख्या करीब 50,000 कम है. साल 2011 की राष्ट्रीय जनसंख्या के मुताबिक ठाकुरद्वार की पॉपुलेशन 504,560 है. इनमें 226,171 मुस्लिम और 275,143 हिंदू हैं. भारतीय चुनाव आयोग के आंकड़ों की मानें तो ठाकुरद्वार सीट पर कुल 3,09,372 रजिस्टर्ड वोटर्स हैं. इसमें 1,68,790 पुरुष और 1,40,571 महिला मतदाता हैं. ठाकुरद्वार में मुस्लिम और दलित मतदाता चुनाव में उम्मीदवार की किस्मत का फैसला करते हैं. यदि मुस्लिम वोट एकमुश्त किसी पार्टी के पक्ष में गए तो उसका जीतना तय होता है. यदि मुस्लिम वोटों में बंटवारा हुआ और हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण तो भाजपा को फायदा मिलता है.
ठाकुरद्वार सीट का राजनीतिक इतिहास, 2017 के नतीजे
ठाकुरद्वार सीट पर 1989 तक कांग्रेस काफी मजबूत हुआ करती थी. वर्ष 1951, 1957 और 1962 के चुनाव में यहां से कांग्रेस उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचे. फिर 1967 और 1969 के चुनावों में स्वतंत्र पार्टी का इस सीट पर कब्जा रहा. वर्ष 1974 में फिर इस सीट को कांग्रेस उम्मीदवार ने जीता, जो 1977 में जनता पार्टी के पास चली गई. इसके बाद 1980 में इंदिरा कांग्रेस और 1985 में जगजीवन कांग्रेस ने ठाकुरद्वार सीट से जीत हासिल की. साल 1989 में यह सीट बहुजन समाज पार्टी के पास चली गई. इसके बाद 1991 से लेकर 2002 तक ठाकुरद्वार सीट भाजपा के पास रही. यहां से कुंवर सर्वेश कुमार सिंह लगातार 4 बार विधायक चुने गए.
साल 2007 में बहुजन समाज पार्टी के विजय कुमार यादव यहां से विजयी हुए. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में कुंवर सर्वेश कुमार सिंह ने महानदल के विजय कुमार यादव को 37,974 मतों से हराकर इस सीट पर फिर से कमल खिला दिया. साल 2014 में भाजपा ने कुंवर सर्वेश को मुरादाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया और वह जीतकर संसद पहुंच गए. इसके बाद ठाकुरद्वार सीट पर उपचुनाव हुआ और समाजवादी पार्टी के नवाब जान ने भाजपा के हाथ से यह सीट छीन ली. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा के नवाब जान ने भाजपा उम्मीदवार राजपाल सिंह चौहान को करीब 13000 मतों से हराकर ठाकुरद्वार पर अपना कब्जा बरकरार रखा.
वर्तमान विधायक नवाब जान के बारे में
राजनीतिक रूप से ठाकुरद्वारा क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय रहे। कांग्रेस सहित अन्य दलों में भी रहे. वर्ष 2014 में ठाकुरद्वारा के विधायक सर्वेश सिंह के सांसद चुने जाने के बाद हुए उपचुनाव में सपा ने नवाब जान को अपना उम्मीदवार बनाया. उन्होंने जीत हासिल की. 2017 में फिर से चुनाव जीतकर विधान सभा सदस्य चुने गए. उनके परिवार में पत्नी, एक बेटा और एक बेटी हैं. विधायक नवाब जान ने बताया कि उन्हाेंने अपनी निधि से 25 लाख रुपये जरूरतमंद लोगों के उपचार के लिए खर्च किए. 25 लाख रुपये क्षेत्र के विकास कार्य पर खर्च किए. इसके साथ ही डिलारी सामुदायिक स्वास्थ्य और शरीफनगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर आक्सीजन प्लांट लगाने के लिए विधायक निधि से राशि प्रदान की.
विधायक नवाब जान का दावा है कि ठाकुरद्वारा विधानसभा क्षेत्र में अपने पिछले कार्यकाल में जितने कार्य कराए थे उनका एक फीसद कार्य इस बार नहीं करा पाए. नवाब जान इसका कारण बताते हैं कि तब सपा की सरकार थी. अब भाजपा की सरकार है और वह मुख्य विपक्षी पार्टी के विधायक हैं, इसलिए उनके निर्वाचन क्षेत्र की अनदेखी की जाती है. सपा सरकार में उनके विधानसभा क्षेत्र में विकास के लिए 200 करोड़ रुपये के कार्य स्वीकृत हुए थे, जबकि इस बार उन्होंने केवल ढाई करोड़ रुपये की सड़के बनवाई हैं. पिछली कार्यकाल में स्वीकृत हुई आइटीआई और पॉलीटेक्निक का निर्माण अधूरा पड़ा हुआ है. डिग्री कॉलेज और दो इंटर कालेज का निर्माण पूरा नहीं हो पाया है.
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