जितिन प्रसाद: यूं ही कोई तीन दशकों का संबंध नहीं तोड़ता, कुछ तो वाजिब वजह रही होगी
कांग्रेस से तीन पीढ़ियों से चला आ रहा रिश्ता जितिन प्रसाद ने यूं ही नहीं तोड़ा. इसकी भूमिका 2019 के लोकसभा चुनाव से ही बनने लगी थी, जब उनका लोकसभा क्षेत्र बदलने की बात उठी थी.
लखनऊ: कांग्रेस पार्टी के मिशन 'यूपी 2022' को तगड़ा झटका लगा है. यूपी में पार्टी के ब्राह्मण चेहरा रहे जितिन प्रसाद ने भाजपा जॉइन कर ली है. कांग्रेस से तीन पीढ़ियों से चला आ रहा रिश्ता जितिन प्रसाद ने यूं ही नहीं तोड़ा. इसकी भूमिका 2019 के लोकसभा चुनाव से ही बनने लगी थी, जब उनका लोकसभा क्षेत्र बदलने की बात उठी थी.
2019 लोकसभा चुनाव से शुरू हो गई थी अनबन
कांग्रेस की यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने जितिन को धौरहरा की बजाय लखनऊ लोकसभा सीट से उतारने का प्रस्ताव रखा था. धौरहरा से तीन बार चुनाव लड़ चुके जितिन अचानक अपना लोकसभा क्षेत्र बदले जाने से खुश नहीं थे और उन्होंने अपनी आपत्ति भी दर्ज कराई थी, लेकिन उनकी सुनी नहीं गई. उन्होंने पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ता की तरह लखनऊ जाने का निर्णय लिया. उनके सामने राजनाथ सिंह के रूप में बड़ी चुनौती थी.
धौरहरा से लगातार दूसरी बार हारे जितिन प्रसाद
लेकिन जितिन के समर्थकों के अपने नेता का लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र बदले जाने का पुरजोर विरोध किया. इसको कांग्रेस आलाकमान ने गंभीरता से लिया और जितिन को धौरहरा से टिकट दिया. राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यहीं से जितिन प्रसाद व प्रियंका गांधी वाड्रा के संबंधों में खटास शुरू हुई. दोनों के बीच दूरी बढ़ने लगी. उनके चुनाव प्रचार में प्रियंका गांधी ने रोड शो जरूर किया, लेकिन राहुल गांधी नहीं आए. जितिन प्रसाद लगातार दूसरी बार धौरहरा से भाजपा प्रत्याशी रेखा वर्मा के हाथों चुनाव हार गए.
चुनाव हारे तो अनदेखी शुरू हो गई
इसके बाद कांग्रेस में उनकी अनदेखी शुरू हो गई. उन्हें उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष बनाने के लिए जोर-शोर से मांग उठी. ब्राह्मण चेहरा होने के कारण उनकी ताजपोशी पक्की मानी जा रही थी, लेकिन प्रियंका गांधी के करीबी रहे अजय कुमार लल्लू अक्टूबर 2019 में यूपी पीसीसी चीफ अध्यक्ष बने. जितिन प्रसाद के पास पार्टी में अब कोई महत्वपूर्ण पद भी नहीं रह गया था. जितिन प्रसाद ने भी खुद को लो प्रोफाइल रखते हुए ब्राह्माणों को लामबंद करने में जुट गए.
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जी-23 में शामिल थे जितिन प्रसाद
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के बाद उनके भी भाजपा में जाने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा तो स्वयं उनका खंडन किया. अगस्त 2020 में 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्टी लिखी थी उनमें एक नाम जितिन प्रसाद का भी था. उन्होंने भी पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. इस पत्र को कांग्रेस आलाकमान ने एक तरह से 23 नेताओं का अपने खिलाफ बगावत माना, गांधी परिवार के खिलाफ बगावत माना. जो जितिन प्रसाद कभी राहुल और प्रियंका के करीबी हुआ करते थे, अब दोनों से काफी दूर हो गए थे.
जितिन को यूपी से दूर रखा गया
जितिन को बंगाल व अंडमान का चुनाव प्रभारी बनाया गया. इन दोनों ही जगहों पर कांग्रेस पार्टी पहले ही सरेंडर कर चुकी थी. बंगाल जैसे बड़े राज्य में चुनाव प्रचार के लिए प्रियंका पहुंची नहीं और राहुल गांधी ने एक सभा की. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जितिन को उत्तर प्रदेश की राजनीति से दूर रखने के लिए कांग्रेस ने जानबूझकर उन्हें बंगाल और अंडमान का चुनाव प्रभारी बनाया. जबकि पार्टी इन दोनों ही राज्यों में चुनाव से पहले ही सरेंडर कर चुकी थी.
राहुल और प्रियंका से बढ़ी दूरी
जितिन प्रसाद राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के सबसे ज्यादा करीबी थे. उन्हें राहुल गांधी से मिलने के लिए समय नहीं लेना होता था. सोनिया गांधी के सामने अपनी हर बात खुलकर रखते थे. जब प्रियंका गांधी ने यूपी की जिम्मेदारी संभाली तो जितिन को अपनी कोर टीम में रखा, लेकिन उनके कुछ करीबी जितिन का कद कम करने की कोशिशों में जुट गए. प्रियंका ने भी इग्नोर करना शुरू किया और धीरे-धीरे दूरी बढ़ती गई. जितिन युवा हैं, उनके सामने पूरा राजनीतिक करियर पड़ा है. उन्होंने अपने भविष्य के बारे में सोचकर जो उचित लगा वह कदम उठा लिया है.
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